Bhopal : भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्पष्ट कर दिया कि पार्टी अगले चुनाव में नेताओं के परिजनों और बच्चों को टिकट नहीं देगी। नड्डा ने कहा कि पिता अध्यक्ष और बेटा जनरल सेक्रेटरी परिवारवाद की यह पॉलिसी भाजपा में बिलकुल नहीं चलेगी। नड्डा की इस घोषणा से नगरीय निकाय और 2023 में विधानसभा चुनाव में टिकट की जुगाड़ लगा रहे नेता पुत्रों को झटका लगा है। जेपी नड्डा ने इस बात पर एतराज उठाया कि हर मामले में अफसर सीधे CM से क्यों मिलते हैं। मुख्यमंत्री तक बात मंत्रियों के माध्यम से जाना चाहिए। अफसर क्यों मुख्यमंत्री तक जाएं! यहाँ यह परंपरा ठीक नहीं है।
बुधवार को राजधानी आए भाजपा अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि पार्टी के केंद्रीय संगठन ने जो पॉलिसी बनाई है, उसके मुताबिक ही टिकट दिए जाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि संगठन ने तय किया कि एक व्यक्ति को एक ही जिम्मेदारी देना है। केवल विधानसभा चुनाव नहीं, बल्कि निकाय चुनाव में भी यही पालिसी लागू होगी। नड्डा ने उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां कई सांसदों के बेटे अच्छा काम कर रहे हैं। वे भी दावेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया। नेताओं के बेटे संगठन के काम में लगे रहें।
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भोपाल में पार्टी की बैठक में जेपी नड्डा ने कहा कि हमें परिवारवाद के कांसेप्ट को समझना होगा। हमारा मानना है कि पिता अध्यक्ष, बेटा जनरल सेक्रेटरी। पार्लियामेंट्री बोर्ड में चाचा-ताया-ताई, यही तो परिवारवाद है। परिवारवाद की पार्टियों में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस (जम्मू कश्मीर), लोकदल (हरियाणा), शिरोमणि अकाली दल (पंजाब), समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश), राष्ट्रीय जनता दल (बिहार), टीएमसी (पश्चिम बंगाल), डीएमके (तमिलनाडु), कर्नाटक में कुमार स्वामी की पार्टी, महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी हैं। ये सब परिवारवाद के रिप्रेजेंटेटिव हैं। इनकी कोशिश पिता के बाद बेटे को जगह देने की होती है। भाजपा की ऐसी पॉलिसी नहीं है।
अफसर अपने मंत्री से मिले, CM से नहीं
जेपी नड्डा ने पार्टी दफ्तर में करीब आधा घंटे मंत्रियों से भी चर्चा की। उन्होंने इस बात पर आपत्ति उठाई कि अफसर सीधे मुख्यमंत्री से क्यों मिलते हैं। कोई भी विषय मंत्रियों के माध्यम से मुख्यमंत्री तक जाना चाहिए। अफसर क्यों इसे लेकर मुख्यमंत्री तक जाएं! यहाँ परंपरा ठीक नहीं है। इससे मंत्री की कमजोरी दिखाई देती है। पार्टी अध्यक्ष ने कहा कि मंत्री समीक्षा करें, बैठकें करें और अफसरों से बात करें। कैबिनेट बैठक के दौरान भी विषयों पर चर्चा होनी चाहिए। मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बीच गैप होने का फायदा अकसर अफसर उठाते हैं।
अफसर सीधे CM से क्यों मिलते हैं?