Justice served after 22 years : कलेक्टर ने विधवा महिला को उसकी दुकान वापस दिलाई

दुकान पर 22 साल से किराएदार ने कब्ज़ा किया, न किराया दिया न खाली की

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Indore : एक वृद्ध विधवा महिला को 22 साल के संघर्ष के बाद कलेक्टर ने न्याय दिलाया। इस महिला की आड़ा बाजार की दुकान पर एक व्यक्ति ने कब्ज़ा कर रखा था। 77 साल की इस महिला ने न्याय पाने के लिए कलेक्टर से गुहार लगाई (Pleaded with the collector to get justice) इसके बाद कार्रवाई करके उस दुकान खाली करवाकर महिला को सौंपा गया (Vacated the shop and handed it over to the woman).

इस विधवा महिला का परिवार 22 साल से न्याय की यह लड़ाई लड़ रहा था। 22 साल पहले वृद्ध महिला के पति ने भाड़ा नियंत्रक अधिकारी के यहां न्याय पाने के लिए गुहार लगाई (Requested to get justice with the freight controlling officer) थी। लेकिन, इसके बाद उनका निधन हो गया और उन्हें न्याय नहीं मिल पाया।

आड़ा बाजार में रहने वाले प्रभाकर महाडिक ने अपना परिवार चलाने के लिए अपने मकान के अगले भाग में स्थित 77 वर्ग फीट की एक दुकान 30 साल पहले पुरुषोत्तम पुराणिक को किराए पर दी (A shop was rented to Purushottam Puranik 30 years ago) थी। कई सालों से यह व्यक्ति न तो किराया दे रहा था (For years this person was neither paying rent) और न दुकान खाली कर रहा था।

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प्रभाकर ने इसके विरुद्ध पहले भाड़ा नियंत्रक अधिकारी की कोर्ट में अपील की थी। पर, उन्हें न्याय नहीं मिल पाया। उनके निधन के बाद उनकी विधवा पत्नी 77 वर्षीय सुनयना महाडिक ने कई साल न्याय के लिए कलेक्टर कार्यालय के चक्कर लगाए। पिछले दिनों उन्होंने कलेक्टर मनीष सिंह से मिलकर अपनी व्यथा सुनाई।

उन्होंने बताया कि किराएदार पुरुषोत्तम पुराणिक उनके साथ अभद्र व्यवहार भी करता है। कलेक्टर की पहल पर उक्त विधवा महिला को न्याय मिल सका (On the initiative of the collector, the said widow woman could get justice). 15 दिन पहले क्षेत्रीय एसडीएम मुनीष सिकरवार ने इस दुकान को खाली करने का आदेश पारित किया। लेकिन, पुरुषोत्तम ने इस आदेश पर भी अमल नहीं किया।

इसके बाद प्रशासन ने कार्यवाही करते हुए उक्त दुकान को खाली कराकर कब्जा सुनयना महाडिक को कब्ज़ा सौंप दिया (After vacating the shop, the possession was handed over to Sunayana Mahadik). महाडिक ने कहा कि मेरी एक पुत्री के अलावा मेरा कोई नहीं है। हम दोनों दिन दिनभर न्याय के लिए कलेक्टर कार्यालय में बैठे रहते थे। उन्होंने कहा कि कलेक्टर वृद्धों और बेसहारा लोगों के लिए मसीहा से कम नहीं हैं। उनका जितना भी धन्यवाद दिया जाए कम है।

Sensitive district administration

बीते दिनों में अनेक ऐसे काम हुए जो जिला प्रशासन की दृढ़ता के साथ संवेदनशीलता का शीतल एहसास (Soft feeling of sensitivity with firmness of administration) भी दिलाते हैं। अपने जीवन की गाढ़ी कमाई लगाकर प्लॉट खरीदने वाले और फिर धोखाधड़ी के शिकार हुए मध्यम वर्गीय परिवारों को प्लॉट दिलाना हो या अपने ही मकान में किरायेदारों के जबरन मालिक बन जाने वाले तत्वों को बेदखल करना हो। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो कलेक्टर मनीष सिंह के मार्गदर्शन में अधिकारियों की संवेदनशील कार्यशैली को प्रदर्शित करते हैं।