Justice Verma Case : जस्टिस यशवंत वर्मा के पास इस्तीफ़ा ही विकल्प, संसद ने हटाया तो कुछ नहीं मिलेगा!

लोकसभा अध्यक्ष ने यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक समिति गठित की!

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Justice Verma Case : जस्टिस यशवंत वर्मा के पास इस्तीफ़ा ही विकल्प, संसद ने हटाया तो कुछ नहीं मिलेगा!

New Delhi : इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के पास अब इस्तीफ़ा देना ही एकमात्र विकल्प बचा है। क्योंकि, यदि संसद ने उन्हें हटाया, तो उन्हें पेंशन और अन्य लाभ से वंचित होना पड़ेगा। जजों की नियुक्ति और उन्हें हटने की प्रक्रिया के जानकारों के मुताबिक, यदि यशवंत वर्मा संसद के सामने अपना पक्ष रखने जाते हैं, तो वह मौखिक रूप से इस्तीफा दे सकते हैं, जिसे इस्तीफा ही माना जाएगा।
अगर वह खुद इस्तीफा दे देते हैं, तो उन्हें सेवानिवृत्त जज के रूप में पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे। लेकिन, अगर उन्हें संसद की ओर से हटाया गया, तो उन्हें ये लाभ नहीं मिलेंगे। संविधान के अनुच्छेद 217 के मुताबिक, हाई कोर्ट के जज अपना इस्तीफा दे सकते हैं। जज के इस्तीफे को किसी स्वीकृति की जरूरत नहीं होती। केवल एक पत्र ही काफी होता है। जज इस्तीफे के लिए एक संभावित तारीख भी दे सकते हैं और इस तारीख से पहले वे इस्तीफा वापस भी ले सकते हैं।

लोकसभा अध्यक्ष ने समिति गठित की
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक समिति गठित की है। ऐसे में संसद की ओर से हटाए जाने से पहले उनके पास एकमात्र विकल्प इस्तीफा देना ही बचा है। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के जज अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट चीफ जस्टिस मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील बीवी आचार्य शामिल हैं। बिरला ने लोकसभा में कहा था कि यह समिति जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। तब तक वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लंबित रहेगा। उन्होंने बताया कि 21 जुलाई को 146 लोकसभा सदस्यों ने जज वर्मा को हटाने की मांग की थी, जिसमें भाजपा के रवि शंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी शामिल थे।

तत्कालीन सीजेआई ने इस्तीफा देने को कहा था
दूसरा तरीका यह है कि संसद भी जज को हटा सकती है। तत्कालीन चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना ने वर्मा को हटाने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। यह पत्र तीन जजों की जांच समिति की रिपोर्ट पर आधारित था। खन्ना ने वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा था, लेकिन वर्मा ने इनकार किया था।

न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 के मुताबिक, जब किसी सदन में किसी जज को हटाने का प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो अध्यक्ष या उपाध्यक्ष तीन सदस्यों की समिति बनाएंगे जो आरोपों की जांच करेगी। इस समिति में सीजेआई या सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित कानूनी जानकार शामिल होंगे। समिति की रिपोर्ट सदन में पेश की जाएगी और उसके बाद बहस होगी।

आग लगने के बाद जले नोट घर में मिले
इस साल मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहते हुए वर्मा के घर में आग लगने की घटना हुई थी। इस दौरान उनके घर से नकदी के जले हुए बंडल बरामद हुए थे। जज ने नकदी की जानकारी न होने का दावा किया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समिति ने गवाहों से पूछताछ और उनके बयान के आधार पर उन्हें दोषी पाया था। इसके बाद वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गया, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है।