“कच्छतीवु” देकर गया “अविश्वास प्रस्ताव”…

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"कच्छतीवु" देकर गया "अविश्वास प्रस्ताव"...

“कच्छतीवु” देकर गया “अविश्वास प्रस्ताव”…

केंद्र की एनडीए नीत मोदी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव सभी को कुछ न कुछ देकर गया है। केंद्र की भाजपा सरकार को अविश्वास प्रस्ताव विस्वास देकर गया। 2024 में बंपर जीत दर्ज कर भारत को विश्व का तीसरा समृद्ध देश बनाने का भरोसा मोदी ने विपक्षी दलों सहित देश की 140 करोड़ आबादी में जगाने की कोशिश की है। तो अविश्वास प्रस्ताव को भाजपा सरकार के लिए लकी बताते हुए यह अपील भी कर डाली अब 2024 में केंद्र में भाजपा सरकार की वापसी अब तय है। विपक्षी दलों को अब 2028 में केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी करना चाहिए ताकि 2029 में भाजपा की सरकार बनने में संशय बाकी न रह पाए। तो कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को अविश्वास प्रस्ताव निराश और हताश कर गया। निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक लड़कर सदन में लौटे राहुल को फ्लाइंग किस ने बैकफुट पर ला दिया। विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी को सदन से बाहर का रास्ता अविश्वास प्रस्ताव देकर गया। मोदी, शाह और सिंधिया के भाषण आकर्षण बनकर 140 करोड़ आबादी में विपक्षी दलों की नकारात्मक छवि उजागर कर गए। तो केंद्र सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव यदि सबसे अनोखा तोहफा यदि पूरे भारत को देकर गया है तो वह है कच्छतीवु द्वीप का। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों को भले ही इस कच्छतीवु द्वीप की जानकारी हो, पर देश की अधिकतर आबादी को अब तक इसकी जानकारी नहीं थी। और यह अविश्वास‌ प्रस्ताव पूरे देश की आबादी में यह विश्वास पैदा कर गया कि विपक्ष को मोदी के आईना दिखाने का संकेत यही है कि अब कच्छतीवु द्वीप की वापसी के दिन करीब आ गए हैं। यह भारतवासियों के लिए अनुपम उपहार होगा। तो आइए आज हम कच्छतीवु द्वीप को जानते हैं और समझते हैं कि भारत का यह द्वीप किस तरह श्रीलंका के हिस्से में पहुंच गया। और अब वापसी की क्या गुंजाइश है?

केंद्र सरकार के खिलाफ संसद में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस पर अपने जवाब के दौरान पीएम मोदी ने कच्छतीवु का जिक्र करते हुए कांग्रेस पार्टी पर सीधा हमला किया और इंदिरा गांधी के जरिए पूरी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया। राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पर मणिपुर में भारत माता और हिंदुस्तान की हत्या होने की बात कही थी। तो पीएम मोदी ने संसद में राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए यह साबित कर दिया कि “कांग्रेस का इतिहास माँ भारती को छिन्न-भन्न करने का रहा है।” विपक्ष के सदन की कार्यवाही से वॉकआउट के बाद उन्होंने कहा, “ये जो बाहर गए हैं न… कोई पूछे इनसे (विपक्ष) कि कच्छतीवु क्या है? इतनी बड़ी बातें करते हैं न… पूछिए कि कच्छतीवु कहां है? इतनी बड़ी बातें लिखकर देश को गुमराह करने का प्रयास करते हैं।” पीएम मोदी बोले “डीएमके वाले, उनकी सरकार, उनके मुख्यमंत्री मुझे चिट्ठी लिखते हैं कि मोदी जी कच्छतीवू वापस ले आइए। ये कच्छतीवु द्वीप तमिलनाडु से आगे और श्रीलंका से पहले एक टापू है। किसने इसे श्रीलंका को दे दिया था? कब दिया था? क्या ये भारत माता नहीं थी? मोदी ने कटाक्ष किया कि वहां क्या वो माँ भारती का अंग नहीं था? इसे भी आपने तोड़ा। कौन था उस समय? श्रीमति इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुआ था। कांग्रेस का इतिहास ही माँ भारती को छिन्न-भिन्न करने का रहा है।”

कच्छतीवू भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका की मुख्य भूमि के बीच एक छोटा सा द्वीप है। इस द्वीप को वापस लेने के लिए लगातार मांगें उठती रहती हैं। हम सब अब जानते हैं कच्छतीवु द्वीप को।श्रीलंका के उत्तरी तट और भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के बीच पाक जलडमरूमध्य क्षेत्र है। इस जलडमरूमध्य का नाम रॉबर्ट पाल्क के नाम पर रखा गया था जो 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के गवर्नर थे। पाक जलडमरूमध्य को समुद्र नहीं कहा जा सकता। मूंगे की चट्टानों और रेतीली चट्टानों की प्रचुरता के कारण बड़े जहाज़ इस क्षेत्र से नहीं जा सकते। कच्छतीवू द्वीप इसी पाक जलडमरूमध्य में स्थित है. ये भारत के रामेश्वरम से 12 मील और जाफना के नेदुंडी से 10.5 मील दूर है। इसका क्षेत्रफल लगभग 285 एकड़ है। इसकी अधिकतम चौड़ाई 300 मीटर है। सेंट एंटनी चर्च भी इसी निर्जन द्वीप पर स्थित है। हर साल फरवरी-मार्च के महीने में यहां एक हफ्ते तक पूजा-अर्चना होती है। 1983 में श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान ये पूजा-अर्चना बाधित हो गई थी।

‘द गज़ेटियर’ के मुताबिक़, 20वीं सदी की शुरुआत में रामनाथपुरम के सीनिकुप्पन पदयाची ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया था और थंगाची मठ के एक पुजारी इस मंदिर में पूजा करते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने इस द्वीप पर कब्जा कर लिया। कच्छतीवु बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है।

भारत और श्रीलंका के बीच इसे लेकर गंभीर विवाद है। साल 1976 तक भारत इस पर दावा करता था और उस वक्त ये श्रीलंका के अधीन था। साल 1974 से 1976 की अवधि के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमाव भंडारनायके के साथ चार सामुद्रिक सीमा समझौते पर दस्तखत किए थे। इन्हीं समझौते के फलस्वरूप कच्छतीवु श्रीलंका के अधीन चला गया। लेकिन तमिलनाडु की सरकार ने इस समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और ये मांग की थी कि कच्छतीवु को श्रीलंका से वापस लिया जाए।

साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया और कच्छतीवु को वापस भारत में शामिल किए जाने की मांग दोहराई गई। कच्छतीवु को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच का विवाद केवल विधानसभा प्रस्तावों तक ही सीमित नहीं रहा। साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने कच्छतीवु को लेकर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा। उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कच्छतीवु समझौते को निरस्त किए जाने की मांग की। जयललिता सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से श्रीलंका और भारत के बीच हुए उन दो समझौतों को असंवैधानिक ठहराए जाने की मांग की जिसके तहत कच्छतीवु को तोहफे में दे दिया गया है।

मछुआरों की परेशानी का एकमात्र समाधान यह है कि भारत को कच्छतीवु द्वीप पर पूर्ण संप्रभुता का दावा करना चाहिए। यह समय भी उत्तम है। इस समय श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश जर्जर स्थिति में है और बाहरी मदद पर निर्भर है। भारत ने उसे न केवल आर्थिक सहायता दी है बल्कि अपनी मानवीय सहायता भी भेजी है। एक और तथ्य जो भारत को द्वीप पर अपने स्वामित्व का दावा करने में मदद कर सकता है, वह यह है कि चीन ने पहले ही श्रीलंका से हंबनटोटा को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर ले लिया है। इसलिए, यदि कोई देश चीन को अपना संप्रभु क्षेत्र छोड़ सकता है, तो उसे उस क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ने के लिए राजी किया जा सकता है, जिसका वस्तुतः उसके लिए कोई उपयोग नहीं है। भारत सरकार को इसके लिए श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर देना चाहिए।

और शायद अब वह दिन दूर नहीं जब कच्छतीवु पर एक बार फिर तिरंगा फहराएगा। और मुंह से निकल पड़ेगा कि भारत माता की जय। अमृत महोत्सव का एक साल पूरा हो रहा है और अब “अमृतकाल” की शुरूआत हो रही है। तो उम्मीद करते हैं कि 2047 तक भारत विकसित देश बनेगा और कच्छतीवु द्वीप भारत का अभिन्न अंग रहेगा…।