

Kalkaji Temple, Delhi:माँ कालिका: शक्ति,ब्रह्मांड की दिव्य मातृ शक्ति की अजस्त्र ऊर्जा
डॉ तेज प्रकाश व्यास
माँ कालिका, जिन्हें महाकाली या काली के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म की एक अत्यंत महत्वपूर्ण देवी हैं। वे मृत्यु, काल और परिवर्तन की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं और आदिशक्ति दुर्गा माता का ही एक विकराल और शक्तिशाली रूप हैं। उनका स्वरूप भय उत्पन्न करने वाला होते हुए भी अपने भक्तों के लिए कल्याणकारी और सुरक्षात्मक है। माँ कालिका बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं और सनातन धर्म में नारी शक्ति के अद्वितीय स्वरूप को दर्शाती हैं। शाक्त परंपरा में उन्हें दस महाविद्याओं में प्रमुख स्थान प्राप्त है।
माँ कालिका का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
माँ कालिका की उत्पत्ति विभिन्न असुरों के संहार के लिए हुई मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच घोर संग्राम हुआ और महिषासुर, मधु-कैटभ, शुम्भ-निशुम्भ जैसे शक्तिशाली असुरों ने देवताओं को पराजित कर दिया, तब माँ दुर्गा ने अपने विभिन्न रूपों में प्रकट होकर इन आसुरी शक्तियों का अंत किया। माँ कालिका इन्हीं रूपों में से एक हैं, जो विशेष रूप से भयानक परिस्थितियों और प्रबल शत्रुओं का नाश करने के लिए अवतरित हुईं।
माँ कालिका के अनेक रूप वर्णित हैं, जिनमें दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली, महाकाली, श्यामा काली, गृह काली, अश्र काली और भद्रकाली प्रमुख हैं। प्रत्येक रूप की अपनी विशिष्ट महिमा और उपासना विधि है। उदाहरण के लिए, दक्षिणा काली की पूजा तांत्रिक क्रियाओं में विशेष महत्व रखती है, वहीं गृह काली पारिवारिक सुख-शांति के लिए पूजी जाती हैं।
पौराणिक कथाएँ माँ कालिका के जन्म और उनके पराक्रमों से भरी पड़ी हैं। रक्तबीज नामक असुर का वध उनकी वीरता का एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जिसकी प्रत्येक रक्त बूँद से एक नया असुर उत्पन्न हो जाता था। माँ कालिका ने अपने विकराल रूप से उस असुर का रक्तपान करके उसका अंत किया।
यह भी उल्लेखनीय है कि वैष्णो देवी में स्थित तीन पिंडियों में से दाहिनी पिंडी माता महाकाली का ही स्वरूप मानी जाती है, जो उनकी सर्वव्यापी शक्ति और महत्व को दर्शाता है।
माँ कालिका की शक्ति और स्वरूप
माँ कालिका को ब्रह्मांड की उस दिव्य मातृ स्त्री ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है जो अत्यंत शक्तिशाली है और नकारात्मकता का नाश करने की क्षमता रखती है। उनका स्वरूप अवश्य ही उग्र दिखता है, लेकिन वे अपने सच्चे भक्तों के लिए अत्यंत करुणामयी और स्नेहिल हैं। वे भय और अज्ञान के अंधकार को दूर करती हैं और अपने उपासकों को साहस और सुरक्षा प्रदान करती हैं।
‘काली’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘काल’ अथवा समय से हुई है, जो सभी को अपने में समाहित कर लेता है। माँ का यह रूप विनाशकारी प्रतीत होता है, परन्तु यह विनाश केवल उन दानवीय प्रवृत्तियों और नकारात्मक शक्तियों के लिए है जिनमें कोई दयाभाव नहीं होता। माँ काली अच्छे और धर्मात्मा मनुष्यों की सदैव शुभेच्छु और पूजनीय हैं, क्योंकि वे बुराई पर अच्छाई की विजय सुनिश्चित करती हैं। इसी कारण उन्हें महाकाली भी कहा जाता है। बांग्ला में ‘काली’ का एक अन्य अर्थ स्याही या रोशनाई भी होता है, जो ज्ञान और विद्या से जुड़ा हुआ है।
माँ कालिका का एक प्रसिद्ध मंत्र, जो उनकी शक्ति और सुरक्षा का आह्वान करता है, दुर्गा सप्तशती में वर्णित है:
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते॥
(सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवी! सब भयों से हमारी रक्षा कीजिये;आपको नमस्कार है ।)
भावार्थ : हे देवी दुर्गा, जो सभी स्वरूपों में विद्यमान हैं, सभी की स्वामिनी हैं और सभी शक्तियों से संपन्न हैं, हमें सभी भयों से बचाओ, हे देवी, तुम्हें नमस्कार है।
एक अन्य प्रसंग में, जब देवराज इंद्र को शुम्भ-निशुम्भ ने पराजित कर दिया था, तब माँ पार्वती ने उनसे युद्ध किया। शुम्भ-निशुम्भ ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे माँ ने अस्वीकार करते हुए कहा कि वे उसी से विवाह करेंगी जो उन्हें युद्ध में पराजित कर देगा। इस पर भयंकर युद्ध हुआ और अंततः दोनों असुर माँ के हाथों मारे गए। इस रूप में माँ रणचंडी के रूप में भी जानी जाती हैं, जो अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देती हैं।
कालकाजी मंदिर, दिल्ली
दिल्ली में स्थित कालकाजी मंदिर भी माँ कालिका को समर्पित एक अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर कालका नामक स्थान पर स्थित है और माना जाता है कि यह महाभारत काल से भी पहले का है। किंवदंतियों के अनुसार, इस स्थान पर देवताओं ने असुरों का वध करने के लिए माँ दुर्गा की आराधना की थी। समय के साथ, यह स्थान माँ कालिका की पूजा का प्रमुख केंद्र बन गया।
वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में मराठा शासकों द्वारा करवाया गया था, हालाँकि इसके मूल स्वरूप के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। मंदिर में माँ कालिका की कई प्राचीन मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो भक्तों को गहरी श्रद्धा और भक्ति का अनुभव कराती हैं। कालकाजी मंदिर न केवल दिल्ली बल्कि पूरे भारत से भक्तों को आकर्षित करता है, जो माँ कालिका की शक्ति और आशीर्वाद की कामना करते हैं। नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष रूप से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।)
दुर्गा सप्तशती में माँ महाकाली के मंत्र
दुर्गा सप्तशती में माँ महाकाली के अनेक रूप और उनसे संबंधित शक्तिशाली मंत्र वर्णित हैं। मुख्य रूप से, प्रथम अध्याय में मधु और कैटभ के वध के प्रसंग में महाकाली के प्रचंड और शक्तिशाली स्वरूप का वर्णन आता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण मंत्र उनके अर्थ और विवरण सहित दिए गए हैं:
मधु-कैटभ विनाशिनी महाकाली का ध्यान मंत्र “या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दितनमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥” है, जिसका अर्थ है “जो देवी सर्व भूतों में विष्णु माया के रूप में विद्यमान है, उसे बार-बार नमस्कार है।”
यहाँ इस मंत्र का विस्तृत अर्थ दिया गया है:
या देवी सर्वभूतेषु: जो देवी सभी प्राणियों में,
विष्णुमायेति शब्दित: विष्णु की माया के रूप में जानी जाती है,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः: उसे बार-बार नमस्कार है.
यह मंत्र देवी के विभिन्न रूपों और शक्तियों का स्मरण कराता है, जिसमें शक्ति, दया, और ज्ञान शामिल हैं.
विवरण: यह मंत्र देवी के उस स्वरूप को नमन करता है जो भगवान विष्णु की शक्ति हैं और जिन्होंने मधु और कैटभ नामक भयानक असुरों का वध किया था। यह मंत्र सर्वव्यापी माँ की शक्ति और उनकी माया का स्मरण कराता है, जिसके द्वारा इस सृष्टि का संचालन होता है। इसका जाप भय, अज्ञान और मोह को दूर करने के लिए किया जाता है।
महाकाली का एकाक्षरी बीज मंत्र:
यद्यपि यह मंत्र दुर्गा सप्तशती में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है, परन्तु माँ काली का प्रमुख एकाक्षरी बीज मंत्र “क्रीं” है।
अर्थ: इस बीज मंत्र का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं होता, परन्तु यह माँ काली की ऊर्जा का सार है। मान्यता है कि “क्” पूर्ण ज्ञान का प्रतीक है, “र” शुभता का, “ई” वरदान देने वाली शक्ति है, मुक्ति प्रदाता है।
विवरण: यह अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है जो साधक को माँ काली की प्रत्यक्ष ऊर्जा से जोड़ता है। इसका नियमित जाप नकारात्मक ऊर्जा, भय और जीवन की विभिन्न बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है। यह कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मंत्र का जाप योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करना विशेष फलदायी होता है।
अन्य महत्वपूर्ण मंत्र दुर्गा सप्तशती पर आधारित:
दुर्गा सप्तशती में ऐसे अनेक श्लोक हैं जिनमें माँ महाकाली की स्तुति की गई है और जो मंत्र रूप में भी प्रयोग किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए:
सर्व बाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि’ का मतलब है, ‘हे सर्वेश्वरी मां दुर्गा, आप दुनिया की सभी बाधाओं को दूर करें’. यह मंत्र दुर्गा सप्तशती का है.
इस मंत्र का अर्थ:
हे सर्वेश्वरी मां दुर्गा, आप मेरे जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करें.
हे सर्वेश्वरी मां दुर्गा, मेरे कार्यों को सिद्ध करें.
हे सर्वेश्वरी मां दुर्गा, मेरे शत्रुओं का विनाश करें.
इस मंत्र का जाप करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और सभी बाधाएं दूर होती हैं.
दुर्गा मां को प्रसन्न करने के लिए ये मंत्र भी जपे जा सकते हैं:
‘अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें’.
‘ओम दम दमनाय शत्रु नाशाय फट’.
‘सर्व बाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्य सुतान्वितः’.
विवरण: यह मंत्र देवी से सभी प्रकार की बाधाओं, कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए एक शक्तिशाली प्रार्थना है। यद्यपि इसमें सीधे महाकाली का नाम नहीं है, परन्तु दुर्गा सप्तशती में वर्णित देवी का यह प्रचंड स्वरूप महाकाली का ही माना जाता है। इस मंत्र का नियमित जाप जीवन में आने वाली मुश्किलों को दूर करने और सुरक्षा प्राप्त करने में सहायक होता है।
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य, प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
” का अर्थ है, “हे देवी, जो शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली है, प्रसन्न हो, प्रसन्न हो, हे जगत की माता, प्रसन्न हो, हे विश्वेश्वरी, विश्व की रक्षा करो, हे देवी, तुम ही चराचर जगत की अधीश्वरी हो।”
व्याख्या:
देवि प्रपन्नार्तिहरे: हे देवी, जो शरणागत की पीड़ा को दूर करने वाली है।
प्रसीद प्रसीद: प्रसन्न हो, प्रसन्न हो।
मातर्जगतोऽखिलस्य: हे जगत की माता।
प्रसीद विश्वेश्वरि: हे विश्वेश्वरी, प्रसन्न हो।
पहि विश्वं: विश्व की रक्षा करो।
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य: तुम ही चराचर जगत की अधीश्वरी हो।
यह श्लोक देवी के प्रति प्रार्थना है, जिसमें उनसे जगत की रक्षा करने और भक्तों की पीड़ा दूर करने का निवेदन किया गया है
विवरण: यह मंत्र शरणागति और रक्षा की गहरी भावना से ओतप्रोत है। माँ काली अपने भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से बचाने वाली हैं। इस मंत्र का जाप सुरक्षा, शांति और माँ की कृपा की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह भक्त और देवी के बीच एक अटूट संबंध स्थापित करता है।
माँ कालिका की उपासना का महत्व
माँ महाकाली शक्ति, साहस और सुरक्षा की प्रतीक हैं। उनकी उपासना नकारात्मक शक्तियों का नाश करने, भय को दूर करने और आध्यात्मिक प्रगति में अत्यंत सहायक होती है। दुर्गा सप्तशती में उनके अद्भुत चरित्र का श्रवण और उनके शक्तिशाली मंत्रों का जाप अत्यंत फलदायी माना गया है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी मंत्र का जाप पूर्ण श्रद्धा, भक्ति और सही उच्चारण के साथ करना चाहिए। यदि आप किसी विशेष उद्देश्य के लिए मंत्र जाप कर रहे हैं, तो किसी योग्य गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना उचित होता है, जो आपको सही विधि और नियमों से अवगत करा सके।
माँ कालिका न केवल मृत्यु और परिवर्तन की देवी हैं, बल्कि वे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने और आंतरिक शक्ति को जागृत करने की भी प्रेरणा हैं। उनका उग्र स्वरूप बुराई के विनाश का प्रतीक है, जबकि उनका करुणामय हृदय अपने भक्तों के लिए सदैव खुला रहता है। गढ़ कालिका देवी मंदिर, धार और कालकाजी मंदिर, दिल्ली जैसे पवित्र स्थान उनकी महिमा और भक्तों की अटूट आस्था के जीवंत प्रमाण हैं। माँ कालिका सनातन धर्म में नारी शक्ति का एक अद्वितीय और प्रेरणादायक उदाहरण हैं, जिनकी उपासना से भय, नकारात्मकता और अज्ञान का नाश होता है और सत्य, धर्म और न्याय की स्थापना होती है।
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