कन्यादान: कन्या का दान या फिर कुछ और…

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कन्यादान: कन्या का दान या फिर कुछ और…

शैलेंद्र तिवारी की विशेष रिपोर्ट
एक खबर पढ़कर मन विचलित है। मध्यप्रदेश में नवोदित आईएएस हैं तपस्या परिहार। उन्होंने अपनी शादी में कन्यादान कराने से इनकार ​कर दिया। मुझे उनके इनकार से कोई आपत्ति नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए, यह उनका निजी अधिकार भी है। वो अपनी शादी में कौन सी रस्म करना चाहती हैं और कौन सी छोड़ना चाहती हैं। इस पर किसी दूसरे को ज्ञान देने का अधिकार कतई नहीं है।
लेकिन मुझे आपत्ति है, उनके बयान से और अपनी करनी को एतिहासिक बताने से। उन्होंने कहा कि मैंने कन्यादान इसलिए नहीं कराया, क्योंकि मैं दान की विषयवस्तु नहीं हूं। बय यही बात मुझे चुभ रही है, लग रहा है कि एक बार कुछ बातें स्पष्ट की जाएं। खासकर, वो जिन्हें लोग जानते भी नहीं हैं और बिना जाने उसके बारे में कोई भी तर्क—वितर्क करने लगते हैं। खासकर, ज्यादा पढ़े लिखे लोग। विवाह में 22 संस्कार होते हैं। यह सिर्फ सामाजिक नहीं हैं, बल्कि हर संस्कार के पीछे एक मनोविज्ञान है। स्त्री और पुरुष दोनों को विवाह के मूल से जोड़ना और आगे की संभावनाओं के प्रति सजग बनाना।
उन संस्कारों में एक संस्कार होता है ‘कन्यादान’, इसके बारे में तपस्या का कहना है कि मैं बेटी हूं कोई दान की वस्तु नहीं। तो पहली बात यह कि कन्यादान का मतलब यह कतई नहीं होता है कि कन्या का दान किया जा रहा है। या कन्या कोई दान या समझौते की विषयवस्तु है। अपितु यह दान उसके गोत्र का है।
कन्यादान माने कन्या के गोत्र का दान। यानि जिस कन्या का विवाह हो रहा है तो उस समय उसका पिता परंपरा अनुसार पूजन करता है और उसमें पूरे कुटुम्ब और समाज के सामने अपनी बिटिया के गोत्र का दान करता है। मतलब, वह लड़की आज के बाद पिता नहीं बल्कि पति के गोत्र से पहचानी चाहिए। गोत्र का मतलब तो पढ़े लिखे लोगों को साइंस में ही समझना चाहिए, जो जेनेटिक साइंस है…उसी को हमारे पुरखे गोत्र में पिरोकर गए हैं। हम सदियों से इसके सहारे विज्ञान के सिद्धांत का पालन करते आ रहे थे। हालांकि विवाह करने वाले आधुनिक युवा विज्ञान और शास्त्र दोनों की ही बातों से परवाह नहीं करते।
खैर, बात वहीं तपस्या की। अब गोत्र का दान क्यों किया जाता है, इसको भी समझ लेते हैं। दरअसल, विवाह के बाद कन्या आने वाले वक्त में जब किसी सन्तान को जन्म देगी तो वह सन्तान किस गोत्र की वंशवृद्धि करेगी। यही वजह है कि कन्या के मूल गोत्र का दान किया जाता है और उसका हाथ उसके पति के हाथ में देते हुए पिता कहता है कि आज के बाद मेरी यह कन्या का गोत्र आपके गोत्र में दान दिया जा रहा है। आज के बाद कन्या आपके गोत्र से पहचानी जाएगी और आने वाले कल में आपके परिवार के लिए शुभंकर और लक्ष्मी बनकर रहेगी।
पीला रंग, हमारी शुभकामनाओं का रंग है। हमारी समृद्धता का रंग है और यही वजह है कि लड़की के हाथों में पीली हल्दी लगाकर उसे आगे विदा किया जाता है। क्योंकि हल्दी सबसे शुभ है और उस लड़की को आने वाले कल में अपने पति के साथ मिलकर एक नया कल लिखना होता है और उसके लिए यह शुभकामनाओं का रंग है, जो पूरा परिवार मिलकर उसे देता है।
अब आप तय कर लीजिए कि आपको क्या करना है। आप कोई परंपरा निभाइए…मत निभाइए। लेकिन उसके बारे में गलत तर्क तो मत दीजिए। आप ज्यादा पढ़े—लिखे हैं, लेकिन इस देश में एक अंधी फौज है जो दिनभर परंपराओं को गाली देने का काम करती है, बजाय उस परंपरा के पीछे छुपे विज्ञान और मनोविज्ञान को जाने हुए। परंपराएं निहायत व्यक्तिगत मसला हैं, आपको जो बेहतर लगे करें। लेकिन उन परंपराओं को दुर्भाषित तो कतई न करें।