करवा चौथ 2025: 200 वर्षों बाद बन रहा दुर्लभ संयोग, इस बार चंद्रमा के दर्शन से खुलेंगे सौभाग्य के द्वार

विवाहिता स्त्रियों का उपवास, श्रद्धा और प्रेम का पर्व इस वर्ष खगोलीय दृष्टि से होगा अत्यंत शुभ, जानिए करवा चौथ 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

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करवा चौथ 2025: 200 वर्षों बाद बन रहा दुर्लभ संयोग, इस बार चंद्रमा के दर्शन से खुलेंगे सौभाग्य के द्वार

नई दिल्ली। इस वर्ष का करवा चौथ (10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार) अत्यंत विशेष होने जा रहा है, क्योंकि इस बार 200 वर्षों बाद एक दुर्लभ खगोलीय संयोग बन रहा है। ज्योतिषविदों के अनुसार, इस दिन चंद्रमा का उदय “रोहिणी नक्षत्र” में होगा, जो प्रेम, सौभाग्य और वैवाहिक सुख का सूचक है।

धर्मशास्त्रों में कहा गया है- “चतुर्थ्यां तु करकायां चन्द्रदर्शनं महत्फलम्”- अर्थात्, करवा चौथ के दिन चंद्रदर्शन से अनंत पुण्य और सौभाग्य प्राप्त होता है।

यह पर्व न केवल पति की दीर्घायु के लिए बल्कि दांपत्य जीवन में विश्वास, संयम और समर्पण की भावना को मजबूत करने का प्रतीक भी है। आधुनिक युग में भी यह परंपरा शहरों और गांवों में समान उत्साह के साथ मनाई जाती है।

*करवा चौथ 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त*

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-तिथि: शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

-सर्गी का समय: प्रातः 4:45 बजे से 5:45 बजे तक

-व्रत प्रारंभ: प्रातः 6:19 बजे

-पूजन मुहूर्त: शाम 5:57 बजे से 7:11 बजे तक

-चंद्र उदय व अर्घ्य का समय: रात 8:13 बजे

-व्रत समाप्ति: चंद्र दर्शन के साथ

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस बार करवा चौथ पर चंद्रमा और गुरु की युति से सौभाग्य योग बन रहा है, जिससे व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है। यह संयोग अगले दो शताब्दियों तक दोबारा नहीं बनेगा।

*सर्गी का महत्व: ऊर्जा और स्नेह का प्रतीक*

करवा चौथ की शुरुआत सास द्वारा दी गई सर्गी से होती है। इसमें फल, मेवे, मिष्ठान्न, परांठे और मीठे पकवान शामिल होते हैं।

सास द्वारा दी गई सर्गी केवल भोजन नहीं, बल्कि प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक होती है।

सर्गी के बाद महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं- यानी पूरे दिन जल तक नहीं पीतीं, और सूर्यास्त के बाद चंद्रदर्शन तक पूजा-पाठ में लीन रहती हैं।के

*पूजा-विधि और करवा चौथ कथा*

करवा चौथ की पूजा शाम को पारिवारिक वातावरण में की जाती है। महिलाएं सजधज कर व्रत कथा सुनती हैं और मंगल कामनाओं के गीत गाती हैं।

“पूजा सामग्री: मिट्टी या पीतल का करवा, दीपक, जल का पात्र, चांदी की छलनी, सिन्दूर, अक्षत, मिठाई और देवी-देवताओं की तस्वीर।

1. पूजा की शुरुआत: संध्या के समय महिलाएं देवी पार्वती, भगवान शिव, गणेशजी और चंद्रदेव की आराधना करती हैं।

2. कथा श्रवण: वीरवती कथा सुनाई जाती है, जिसमें बताया गया है कि कैसे वीरवती ने कठिन तपस्या कर अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस लाया।

3. अर्घ्य विधि: चंद्रमा के दर्शन के समय महिलाएं छलनी से पहले चंद्र को, फिर अपने पति को देखती हैं और अर्घ्य अर्पित करती हैं।

4. व्रत खोलना: पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत खोला जाता है। इसे अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।

*पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व*

पुराणों में करवा चौथ को सौभाग्यवती स्त्रियों का पर्व कहा गया है। माना जाता है कि इस दिन देवी पार्वती ने भी भगवान शिव के दीर्घायु हेतु व्रत रखा था।

इसके अलावा “करवा” शब्द का अर्थ है मिट्टी का घड़ा- जो जीवन में स्थिरता, धैर्य और सहनशीलता का प्रतीक है।

उत्तर भारत के राज्यों- दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेश में यह पर्व बेहद उल्लास से मनाया जाता है।

शहरों में महिलाएं थीम-बेस्ड पूजा और ग्रुप फास्टिंग इवेंट्स भी करती हैं, जबकि गांवों में पारंपरिक विधि से व्रत सम्पन्न किया जाता है।

 

*आधुनिक युग में करवा चौथ: बदलते स्वरूप में अटूट भावना*

जहां पहले यह व्रत केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित था, अब कई जगह पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के लिए उपवास रखते हैं- यह समानता और प्रेम का नया रूप है।

सोशल मीडिया पर इस पर्व की झलक हर वर्ष विशेष रूप से ट्रेंड करती है- पारंपरिक परिधान, सिंदूर, छलनी के संग चांद को निहारती महिलाएं सौंदर्य और श्रद्धा की अद्भुत छवि प्रस्तुत करती हैं।

करवा चौथ 2025 केवल एक व्रत नहीं, बल्कि आस्था, प्रेम और आत्मबल का उत्सव है।

200 वर्षों बाद बन रहे इस दुर्लभ संयोग में चंद्रमा के दर्शन का फल अनंत गुणा बढ़ा हुआ माना गया है।

विश्वास, निष्ठा और प्रेम से रखा गया यह उपवास हर स्त्री को देता है- अखंड सौभाग्य और जीवन का चिरस्थायी प्रकाश।