
करवा चौथ 2025: आस्था के व्रत के बारे में हर जरूरी जानकारी जो जानना चाहिए
विक्रम सेन
मुंबई । भारत की सनातन परंपरा में करवा चौथ व्रत सदियों से सौभाग्यवती स्त्रियों के अटूट प्रेम, समर्पण और आस्था का प्रतीक रहा है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पति–पत्नी के बीच विश्वास, निष्ठा और आध्यात्मिक एकता का पावन उत्सव है। इस दिन महिलाएँ निर्जला उपवास रखकर भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश एवं कार्तिकेय की पूजा करती हैं और चंद्रमा के दर्शन के पश्चात अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करती हैं।
*इस वर्ष का शुभ मुहूर्त और योग*
10 अक्टूबर, शुक्रवार को करवा चौथ का व्रत मनाया जाएगा। चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर की रात 10:54 बजे से प्रारंभ होकर 10 अक्टूबर की शाम 7:38 बजे तक रहेगी। प्रातःकाल से संध्याकाल तक चतुर्थी का प्रभाव केवल 10 अक्टूबर को रहेगा, अतः यही व्रत का प्रमुख दिन होगा। इस अवसर पर सिद्धि योग शाम 5:41 बजे तक और शिववास योग शाम 7:38 बजे तक रहेगा — जो इस दिन को और भी मंगलमय बनाते हैं।
*करवा चौथ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व*
करवा चौथ में शिव परिवार और चतुर्थी स्वरूप करवा का पूजन किया जाता है। गणेश जी को साक्षी मानकर व्रत आरंभ किया जाता है। मध्यान के समय स्त्रियाँ एकत्र होकर कर्क चतुर्थी व्रत कथा का पाठ और श्रवण करती हैं। पूजन उपरांत करवा को नदी में प्रवाहित किया जाता है या अगले वर्ष तक सहेज कर रखा जाता है।
*धार्मिक ग्रंथों में करवा चौथ का उल्लेख कई पवित्र प्रसंगों से जुड़ा है—*
– माता पार्वती और भगवान शिव: जब भगवान शिव एक अत्यंत बलशाली राक्षस का वध करने जा रहे थे, तब माता पार्वती ने उनकी कुशलता के लिए यह व्रत किया।
– द्रौपदी और अर्जुन: अर्जुन जब नीलगिरी पर्वत पर तपस्या कर रहे थे, तब द्रौपदी ने उनकी सुरक्षा के लिए करवा चौथ का व्रत रखा।
– राजा दशरथ और अयोध्या की रानियाँ: महर्षि वशिष्ठ के निर्देश पर रानियों ने यह व्रत किया, फलस्वरूप भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया।
– नारदीय पुराण में उल्लेख है कि यह व्रत संकष्ठी व्रत के समान ही शुभ और कल्याणकारी माना गया है।
*करवा चौथ की पौराणिक कथा*
एक साहूकार की सात बहुएँ और एक बेटी थी। सभी ने करवा चौथ का व्रत रखा। रात में भाइयों ने अपनी बहन को भूख से व्याकुल देखकर छलपूर्वक पेड़ पर दीप जलाया और उसे “चाँद” बता दिया। बहन ने भाभियों की चेतावनी के बावजूद अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इससे उसका व्रत भंग हो गया और भगवान गणेश अप्रसन्न हुए। उसके पति बीमार पड़ गए और परिवार का धन रोगों में व्यय हो गया।
पश्चाताप में उसने गणेश जी से क्षमा माँगी और पुनः श्रद्धा भाव से व्रत किया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उसके पति को जीवनदान दिया और परिवार में सुख–समृद्धि लौट आई।
यह कथा संदेश देती है कि व्रत का पालन सत्यनिष्ठा, श्रद्धा और संयम से किया जाए तो ही उसका फल मिलता है।
*व्रत का वास्तविक अर्थ — शिव–पार्वती का अजर-अमर प्रेम*
करवा चौथ का सार निष्ठा, संयम और समर्पण में निहित है। यह व्रत उस पत्नी के अटूट विश्वास का प्रतीक है, जो अपने पति की दीर्घायु और कल्याण के लिए तप करती है। यह शिव–पार्वती के पवित्र प्रेम और वैवाहिक संतुलन का दैवी रूप है।
*आधुनिक युग और बाजारवाद का प्रभाव*
दुर्भाग्यवश आज यह व्रत भी फैशन और बाजारवाद के प्रभाव में आ गया है। सोशल मीडिया पर इसका प्रदर्शन, महंगे परिधानों और आयोजनों की चमक में इसकी आध्यात्मिकता धीरे-धीरे धुंधली पड़ रही है।
यह समय आत्ममंथन का है — क्या हम उस श्रद्धा और संस्कार को बचा पा रहे हैं, जो इस व्रत की आत्मा है?
*धर्म और समाज की भूमिका*
यदि पत्नी पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है, तो पति को भी अपने आचरण, जिम्मेदारी और सच्चे समर्पण से इस व्रत की भावना का सम्मान करना चाहिए।
समाज और धार्मिक संगठन भी आगे आएँ और इस व्रत को उसके मूल स्वरूप — तप, त्याग और श्रद्धा — में प्रतिष्ठित करें।
*सनातन संदेश*
ढोंग, दिखावा और नौटंकी से दूर रहकर इस व्रत को उसकी पवित्र भावना में ही मनाएँ।
व्रत को व्रत ही रहने दें — उसे “इवेंट” न बनाएँ।
भगवान श्री गणेश एवं पूज्य चौथ माता सभी सौभाग्यवती स्त्रियों को अखंड सौभाग्य, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद दें।
भगवान शिव और माता पार्वती का अजर-अमर प्रेम हर दांपत्य जीवन में प्रेरणा बनकर सदैव जीवित रहे — यही करवा चौथ का सनातन संदेश है।





