Kejriwal’s Arrest: रंग बिरंगी राजनीति
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को गुरुवार की रात को ईडी ने गिरफ़्तार कर लिया। इसके पहले उन्हें शराब घोटाला प्रकरण में उपस्थित होने के लिए ईडी ने 9 समंस दिए थे।हाईकोर्ट द्वारा उन्हें कोई राहत न मिलने पर ईडी ने उन्हें तुरंत गिरफ़्तार कर लिया। रात को ही आप कार्यकर्ता उनके निवास पर प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हो गए। शुक्रवार को दिल्ली सहित देश के अनेक शहरों में, जम्मू से लेकर बेंगलोर, तक व्यापक प्रदर्शन हुए। गुजरात और हरियाणा में, जहाँ आपका कांग्रेस से अलायंस है, वहाँ कांग्रेसियों ने भी प्रदर्शन किया। इंडिया अलायंस की अनेक पार्टियों के नेता आप के समर्थन में आ गए। सभी चैनल अत्यधिक सक्रिय हो गईं। कुछ ही दिन पहले दिल्ली से बड़े राज्य झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी पर केवल राँची में ही थोड़े से लोग एकत्र हुए थे तथा चैनलों के लिए भी अनेक समाचारों में यह एक समाचार था। इससे स्पष्ट है कि केजरीवाल की अपील देश में कहीं अधिक है। निसंदेह केजरीवाल एक वर्ग में बहुत लोकप्रिय नेता है।
केजरीवाल भले ही अपने को आम आदमी कहते हों, लेकिन न्यायपालिका के लिए वह बहुत ख़ास है।अगली सुबह सुप्रीम कोर्ट के खुलते ही मुख्य न्यायाधीश के समक्ष कांग्रेसी नेता और वक़ील अभिषेक मनु संघवी ने इसका उल्लेख किया। दलील सुनते ही भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की याचिका को तुरंत न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए नियुक्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में ऐसी त्वरित कार्यवाही आम आदमी के लिए असंभव है। युगल पीठ ने तेलंगाना की पूर्व मुख्यमंत्री की पुत्री कविता की ज़मानत याचिका उसी समय निरस्त कर दी थी। इसी पीठ ने सिंघवी को बताया कि केजरीवाल के मामले की सुनवाई तीन जजों की पीठ आज ही करेगी। सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत न मिलने का आभास होते ही केजरीवाल ने याचिका वापस ले ली और दिन भर निचली अदालत में चली बहस के बाद छह दिन की रिमांड दे दी गई। मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट ऐसा है कि किसी को अभियुक्त बना देते ही उसे धारा 45 के कारण ज़मानत नहीं मिलती है। मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को ज़मानत नहीं मिली है। ईडी के अनुसार शराब कारोबारियों के साउथ कार्टल ने केजरीवाल सरकार से शराब की नीति बदलवा कर लाभ उठाया तथा उसके एवज़ में आप पार्टी को बहुत धन दिया। इसमें से सौ करोड़ आप पार्टी ने चुनाव प्रचार में गोवा और पंजाब में ख़र्च कर दिए। ईडी की साक्ष्य कितनी पुख़्ता है यह अभी अस्पष्ट है।
अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अप्रैल 2011 में उनकी भूख हड़ताल से शुरू हुआ था। सभी भ्रष्ट राजनीतिज्ञों से परेशान जनता ने इस आंदोलन को हाथो हाथ लिया।मैंने स्वयं दिल्ली में अन्ना की भीड़ को आदर्शवाद से ओतप्रोत देखा था। सारा आंदोलन कांग्रेस की केंद्र सरकार के विरुद्ध था। इस आंदोलन में परोक्ष रूप से आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ता भी थे। केजरीवाल तत्काल इसमें सम्मिलित हो गए। उन्होंने सोनिया गांधी और रॉबर्ट वाड्रा की गिरफ़्तारी की माँग की। शीघ्र ही केजरीवाल ने अन्ना हज़ारे और अपने समकक्ष सहयोगियों को दरकिनार करते हुए इस आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया। अन्ना की घोषणा के विरुद्ध केजरीवाल ने आंदोलन को सत्ता की राजनीति में बदल दिया। दिल्ली पर ध्यान केंद्रित कर केजरीवाल ने बिजली और पानी मुफ़्त देने की घोषणा की तथा भ्रष्टाचार मुक्त शासन का वादा करके दिल्ली की सत्ता पर प्रचंड बहुमत से सत्ता प्राप्त कर ली। दिल्ली में लगातार केंद्र सरकार से संघर्ष करते हुए उन्होंने पंजाब में भी सत्ता प्राप्त कर ली।
राजनीति में समय करवट लेता रहता है। केजरीवाल ने कांग्रेस के विरुद्ध जितने कटु वचनों से घोर विरोध किया है उतना अभी तक बीजेपी का भी नहीं किया है। आज अपने दुर्दिन में वही कांग्रेस केजरीवाल का समर्थन करने के लिए विवश हैं। किसी समय केजरीवाल ने कहा था कि किसी सत्तारूढ़ नेता पर आरोप लगते ही उसे तत्काल इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। आज वे ही गिरफ़्तारी के बाद भी घोषणा कर रहे है कि वे जेल में भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे। जनता सभी प्रकार के नेताओं को पलटते हुए देखने की आदी हो चुकी है।
बहुत दिनों से दुखी चल रहे अन्ना हज़ारे ने मौक़ा मिलते ही पलट वार किया है। उन्होंने साफ़ कहा है कि केजरीवाल को आरोपों का सामना करना चाहिए।
राजनीतिक विश्लेषक केजरीवाल की गिरफ़्तारी के परिणामों के क़यास लगा रहे हैं। कुछ का कहना है कि इससे इंडिया अलायंस मज़बूत होगा और जनता विपक्ष की ओर आकृष्ट होगी। दूसरी तरफ़ मोदी के नेतृत्व में बीजेपी प्रचंड बहुमत से विजयी होने के लिए आश्वस्त हैं। 4 जून सब स्पष्ट कर देगा।