Kejriwal’s Eyes on Rajyasabha:अब निगाहें राज्यसभा पर,ताकि रुतबा बना रहे

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Kejriwal’s Eyes on Rajyasabha:अब निगाहें राज्यसभा पर,ताकि रुतबा बना रहे

रमण रावल

भारतीय राजनीति में अरविंद केजरावील वो शै है, जो किसी एक चाल से,एक बार मिली हार से मैदान नहीं छोड़ती। अभी दिल्ली पराजय के जख्मों से रिसाव जारी है,फिर भी बंदा पंजाब के विधायकों की घेराबंदी कर रहा है। वजह यह नहीं कि ये लोग कांग्रेस में जा सकते हैं,बल्कि वह मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान व राजनीतिक क्षेत्रों को संदेश देना चाहता है कि वह अभी-भी आम आदमी पार्टी का सुप्रीमो है और वह दिल्ली हारा है, हौसला नहीं । हैरत नहीं यदि वह पंजाब से अपने दल के किसी राज्यसभा सांसद से इस्तीफा दिलाकर खुद वहां पहुंच जाये। इस तरह वह भाजपा,कांग्रेस को चुनौती देने के अंदाज में पेश आयेगा कि अब मुकाबला देश के सर्वोच्च सदन में होगा। आम आदमी पार्टी की राजनीति के पन्नों पर अनेक नई इबारतें लिखी जानी शेष हैं,जो यह बतायेगी कि केजरीवाल खामोश होकर बैठ जाने वालों में से नहीं है।

अरविंद केजरीवाल ने इक्कीसवीं सदी में जिस तरह की राजनीतिक संस्कृति का सूत्रपात किया है,वह गहरे अध्ययन का विषय है।जिसमें कोई नीति-नियम,तौर-तरीके तय नहीं हैं। यह तय होता है केजरीवाल की मंशा से कि वह चाहता क्या है ? उनकी हर चाल ढाई घर जैसी होती है, जो दिखती सीधी है,लेकिन मार कहीं और करती है। वे भले ही दिल्ली की जनता द्वारा खारिज कर दिये गये हों, लेकिन वे चुप रहने वालों में से नहीं है। जिसने कोविड की तरह ही प्रत्येक आपदा को अवसर में बदलने और भोली सूरत पर उभरती भाव भंगिमाओँ से घोर गलतफहमी की गिरफ्त में ले लेने की अदा वाले इस व्यक्ति ने अपने को कभी दिशाहीन नहीं होने दिया। उसकी निगाह प्रधानमंत्री पद से अभी-भी हटी नहीं है। वह मोहम्मद गोरी की तरह है, जिसने पृथ्वीराज चौहान द्वारा 16 बार परास्त व माफ कर दिये जाने के बावजूद जैसे ही मौका मिला,बंदी बनाकर पृथ्वीराज की आंखें फोड़ दीं।

अब केजरीवाल की कोशिश रहेगी कि वह किसी तरह से राज्यसभा में पहुंच जाये। इससे केजरीवाल के अनेक लक्ष्य सध जायेंगे। एक तो वह मोदी विरोधी अभियान को जारी रख सकता है। राहुल गांधी,गांधी परिवार को भी निशाने पर ले सकता है। सांसद के नाते केंद्र सरकार के कोटे का बड़ा मकान व सासंद तथा पूर्व मुख्यमंत्री के नाते सुरक्षा जारी रह सकती है। विभिन्न समितियों में सदस्य बनकर सरकार को परेशान कर सकता है। अपने पारंपरिक मतदाता वर्ग(मुस्लिम,दलित) के लिये बेजा मांगें उठा कर भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकता है।

इससे भी बढ़कर आम आदमी पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाये रख सकता है। 11 फरवरी को पंजाब के आप विधायकों की बैठक अपनी इसी मंशा की वजह से बुलाई थी, जिसमें कुछ भी विशेष किया ही नहीं गया। वह तो भगंवत सिंह मान पर भी दबाव की राजनीति का अस्त्र चलाया था, ताकि वे मुगालते में न आ जायें कि केजरीवाल ठंडा होकर बैठ जायेगा। मान ने पंजाब सरकार के विज्ञापन दिल्ली सरकार की तर्ज पर ही तमाम न्यूज चैनल्स और देश भर के अखबारों में दिये ही थे,जो पंजाब की उपलब्धियों के बहाने दिल्ली सरकार को समर्थन के लिये प्रभाव पैदा करने का ही प्रयास था। ताज्जुब है कि ये विज्ञापन अभी-भी राष्ट्रीय चैनल्स पर कमोबेश हर ब्रेक के बाद प्रसारित हो रहे हैं। ये किसी भी राज्य सरकार द्वारा दिये जा रहे विज्ञापनों से कहीं अधिक हैं ।

कुछ लोगों को लगता है कि केजरीवाल पंजाब का मुख्यमंत्री बनने की कोशिश कर सकता है, जबकि इतनी नादानी भरा कदम वह नहीं उठायेगा। पंजाब में मान ने सिख समुदाय में जबरदस्त प्रभाव कायम कर रखा है और केजरीवाल किसी कीमत पर उसे कम नहीं करना चाहेगा। पंजाब में 300 यूनिट मुफ्त बिजली और महिलाओं को राहत देने वाली अनेक योजनायें संचालित हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में मान का बोलबाला है। वैसे कहा तो यह जाता है कि पंजाब की सरकार परदे के पीछे से उनकी दूसरी पत्नी गुरप्रीत कौर चला रही है। पहली पत्नी इंदरप्रीत कौर से 2015 में तलाक के बाद 48 वर्षीय मान ने 32 वर्षीय गुरप्रीत से 2022 में शादी की है।पहली पत्नी के पुत्र दिलशान और पुत्री सीरत यूं तो मान के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते, लेकिन जनता के बीच उनकी आवाज ज्यादा असर पैदा करती नहीं दिखती।

इन सबसे बेखबर मान भी केजरीवाल की तर्ज पर ही मीडिया को भरपल्ले विज्ञापन,उपहार देकर सब कुछ मीठा-मीठा प्रचारित करवाते रहते हैं। ऐसे में केजरीवाल के लिये मान से पंगा लेना कोई समझदारी भरा फैसला नहीं हो सकता। इसीलीये केजरीवाल चाहेगा कि पंजाब के रास्ते राज्यसभा में प्रवेश कर वहां अपने क्रियाकलाप जारी रखे। इसके लिये उसे किसी राज्यसभा सांसद से इस्तीफा दिलाया जा सकता है। वह राघव चड्‌ढा से सासंदी छीन भी सकते हैं, उन्हें दल से निष्कासित कर । वे पूरे चुनाव से नदारद रहे हैं और केजरीवाल से दूरी तो लंबे समय से बना ही चुके थे।

केजरीवाल लंबे समय तक इंतजार करने वाले नेता नहीं हैं। आम आदमी पार्टी की राजनीति में अब कई लहरें उठने को बेसब्र हैं। कुछ किनारों से टकराकर लौट जायेंगी, कुछ तिनके-कचरा किनारे पर फेंक जायेंगी तो कुछ किनारों से भी कुछ न कुछ उठाकर बीच दरिया में बहा ले जायेंगी।