Kejriwal’s Gamble on Atishi- नैतिकता या राजनैतिक चाल
केजरीवाल ने दो दिन पहले त्याग पत्र देकर आज आतिशी को दिल्ली का नया मुख्यमंत्री बना दिया है। राजनैतिक विश्लेषक या फिर सामान्य नागरिक भी जानते हैं कि अब भारत में त्यागपत्र नैतिकता के आधार पर नही दिये जाते है। वर्तमान परिस्थितियों में अपनी छवि सुधार कर चुनावी राजनीति को मज़बूत करने का यह उनका एक सोचा समझा क़दम है। 2014 में त्यागपत्र देकर 2015 में उन्हें प्रचंड बहुमत मिला था। वे उस समय दिल्ली के नवयुवकों, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए राजनीति में शुचिता के पर्यायवाची थे।आज परिस्थितियाँ थोड़ी भिन्न है।
केजरीवाल ने अन्ना हज़ारे के मंच पर अपना एकाधिकार स्थापित करने से लेकर आज तक नैतिक और ईमानदार राजनीति के नारे के साथ ही सदैव राजनीतिक चतुराई से कार्य है। अन्ना की छत्रछाया में रहते हुए उन्होंने अपने समकक्ष सभी लोगों को हटाना शुरू कर दिया था। आम आदमी पार्टी में अपने विश्वस्त सहयोगी मनीष सिसोदिया के अतिरिक्त उन्होंने केवल द्वितीय और तृतीय पंक्ति के लोगों को ही रखा। पार्टी का संविधान भी ऐसा बनाया कि उनका वर्चस्व सदैव स्थायी हाई कमांड जैसा बना रहे। दिल्ली में आते ही उन्होंने बिजली और पानी मुफ़्त देने का लोक लुभावन काम किया। दिल्ली में स्कूल शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन किया तथा मोहल्ला क्लीनिक को धरातल पर सुनिश्चित किया। दिल्ली जैसे समृद्ध राज्य का बजट उन्हें उपलब्ध था।
आज की स्थिति में केजरीवाल की वह छवि नहीं है जो पहली थी। वे स्वयं और उनके पार्टी के अनेक लोग कई अपराधिक प्रकरणों में जेल गए हैं या अभी भी जेल में हैं। शराब घोटाला अनेक न्यायिक परीक्षणों के बाद भी आधारहीन नहीं पाया गया है। केजरीवाल के बंगले की साज सज्जा ने उनकी छवि को धूमिल किया है। सुप्रीम कोर्ट ने न्याय व्यवस्था में ज़मानत को उदार बनाने के सिद्धान्त पर ज़ोर दिया है। इसी श्रृंखला में क़ानून में प्रावधान न होते हुए भी केजरीवाल को ज़मानत कुछ प्रतिबंधों के साथ दे दी गयी। केजरीवाल अपने स्वयं के कार्यालय नहीं जा सकते हैं और रोज़मर्रा की फाइलों पर कोई कार्रवाई भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए उनका प्रभावी मुख्यमंत्री बने रहना संभव नहीं था।दिल्ली के अगले चुनाव भी बहुत निकट हैं और इस थोड़े समय के लिए त्याग पत्र देना कोई महान नैतिक त्याग नहीं है। त्यागपत्र देकर जहाँ उन्हें अपनी छवि सुधारने का अवसर मिलेगा, वहीं वे आगामी कई विधानसभा चुनावों में प्रचार के लिए स्वतंत्र हो जाएंगे।
दिल्ली के गरीबों की बड़ी संख्या केजरीवाल के कामों से प्रसन्न है। मध्यम वर्ग शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं के लिए उन्हें पसंद करता है। कांग्रेस और भाजपा का दिल्ली राज्य में कोई प्रभावी नेता नहीं हैं इसलिए अधिक संभावना है कि केजरीवाल पुनः दिल्ली का चुनाव जीत सकते हैं। दो दिन से वे मुख्यमंत्री का ऐसा चेहरा ढूंढ रहे थे जो समय आने पर उनके लिए तत्काल कुर्सी ख़ाली कर दे। केजरीवाल ने नया मुख्यमंत्री ऐसा चुना है जिसकी उनके प्रति वफ़ादारी संदेह से परे हो तथा साथ ही पार्टी में उसकी स्थिति अपेक्षाकृत कमज़ोर हो।आतिशी इसके लिए सर्वथा उपयुक्त थीं। केजरीवाल उमा भारती, नीतीश कुमार तथा हेमंत सोरेन जैसे नेताओं की स्थिति में नहीं पड़ना चाहते हैं।
केजरीवाल की महात्वाकांक्षा दिल्ली तक ही सीमित नहीं है।उनकी पार्टी को क़ानूनी रूप से राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हो चुका है। वे इसे वास्तविक रूप से एक राष्ट्रव्यापी विकल्प बनाना चाहते हैं। उनकी पार्टी किसी विशेष विचारधारा से नहीं जुड़ी है तथा उसका कोई परिभाषित वोट बैंक नहीं है। उनके लिए सभी प्रकार के विकल्प खुले हैं। कांग्रेस का घोर विरोध करके भी वे प्रारंभिक काल में ही कांग्रेस से हाथ मिला चुके हैं। हिंदू और मुस्लिम वोट रिझाने के लिए धार्मिक प्रतीकों के प्रयोग से उन्हें कोई परहेज़ नहीं है। उनकी कोई घोषित आर्थिक नीति भी नहीं है।अपने को ईमानदार बताते हुए उन्होंने एक चतुर राजनीतिक की तरह अपने लिए सभी विकल्प खुले रखे हैं। राष्ट्रीय मीडिया के दिल्ली में होने के कारण उन्हें अनुपात से अधिक कवरेज मिल जाता है।
आगामी कुछ महीने उनके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक सिद्ध होंगे।