Kejriwal’s Trouble Starts Now:दिल्ली सरकार का विज्ञापन खर्च 10 वर्ष में 4273 प्रतिशत बढ़ा

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Kejriwal’s Trouble Starts Now:दिल्ली सरकार का विज्ञापन खर्च 10 वर्ष में 4273 प्रतिशत बढ़ा

रमण रावल

देश को यह अंदाज तो एक-दो साल से हो चला था कि अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं की ही तरह अरविंद केजरीवाल भी आम आदमी पार्टी को जेब में रखकर चलते हैं, लेकिन वे कैसे समूचे तंत्र का कबाड़ा कर अपनी नेतागिरी चमकाने और जेब भरने का सिलसिला चलाये हुए थे, वह सारे तथ्य सामने आने को उतावले हो रहे हैं। एक तरफ केजरीवाल अपना कल्याण कर रहे थे तो दूसरी तरफ वे मीडिया घरानों के अलावा राजधानी के प्रमुख पत्रकारों और देश के आला दर्जे के वकीलों की तिजोरी भी भर रहे थे। ये ऐसे तथ्य हैं, जो जल्द ही सूचना के अधिकार के तहत सामने लाये जाने का क्रम प्रारंभ होने ही वाला है। इसके बाद केंद्र सरकार को अपने भाषणों में गांधी परिवार को जेल में डालने की चुनौती देने वाले केजरीवाल के लिये भी जेल जाने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के करीब एक पखवाड़े पहले मुझे देश के एक गंभीर व जिम्मेदार नेता तथा वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा था कि केजरीवाल को बेलगाम बनाने में आपके मीडिया संस्थानों व पत्रकारों की भी बड़ी भूमिका है। जिज्ञासा प्रकट करने पर बताया कि केजरीवाल मुख्यमंत्री रहते जितनी भी पत्रकार वार्ता करता था या कोई बड़ा कार्यक्रम करता था तो ज्यादातर का लाइव कवरेज करवाता था। साथ ही कवर करने वालों को भी नकद भेंट-पूजा करता था। वह विभिन्न तरीकों से शसकीय कोष से भी व्यक्तिगत मदद करता था। इस तरह राष्ट्रीय मीडिया को एक तरह से खरीद रखा था। ऐसे में न केवल उसकी वाहवाही होती रहती थी, बल्कि उसके खिलाफ जो जन आक्रोश बनता-बढ़ता जा रहा था, उसे भी बताने-दिखाने से बचाया जा रहा था। यह एक ऐसा भ्रष्ट तंत्र बन गया था, जो मकड़जाल की तरह था।

हमने यह महसूस किया ही है कि किसी भी चैनल पर केजरीवाल कथा चलती ही रहती थी और उसके घपले-घोटालों पर कभी-कभार ही बात होती थी या वे चैनल या संस्थान करते थे, जिन्हें लाभान्वित नहीं किया जा रहा था या जो इस षडयंत्र से दूर रहे। चूंकि मीडिया का खर्च सूचना के अधिकार से पता किया जा सकता है तो वे तमाम फाइलें अब खुलने ही वाली हैं। द हिंदू अखबार ने 6 जुलाई 2022 को एक आरटीआई कार्यकर्ता के हवाले से एक खबर प्रकाशित कर बताया था कि दिल्ली सरकार का विज्ञापन खर्च 2012 से 2022 तक 4273 प्रतिशत तक बढ़ गया। शीला दीक्षित सरकार का बजट 11.18 करोड़ रुपये था, जबकि कोरोना के बावजूद आप सरकार ने 2019-20 में 199.99 करोड़ व 2021-22 में 293.20 करोड़ रुपये खर्च किये। समझा जा सकता है कि केजरीवाल सरकार अपनी आत्म मुग्धता के चलते किस तरह बेतहाशा खर्च करती रही है। अकेले मार्च 2022 में 125.15 करोड़ रुपये खर्च कर डाले थे। द हिंदू की ही 7 सितंबर 2024 की एक खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल की एकल पीठ ने दिल्ली की आप सरकार को 2023 में इस बात के लिये लताड़ा था कि उसने 415 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परिवहन की आरआरटीएस योजना के लिये धन देना उचित नहीं समझा, लेकिन तीन साल में विज्ञापन पर 11 सौ करोड़ रुपये खर्च कर डाले। इसके बाद सरकार ने आरआरटीएस के लिये बजट जारी किया ।

इन्हीं सज्जन ने एक और जो प्रमुख बात कही थी, उसके तथ्य भी अब सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से सामने आ ही रहे हैं । यह कि केजरीवाल के खिलाफ जब कानूनी मामलों का सिलसिला प्रारंभ हुआ, तब से ही शासकीय खर्च पर दिग्गज वकीलों की सेवा ली जाने लगीं। इसके अलावा हाई कोर्ट से लेकर तो सुप्रीम कोर्ट तक माहवार अनुबंध पर अनेक वकीलों की सेवा सुनिश्चित कर ली गई, जिसमें दस वर्ष में करोड़ों रुपये खर्च किये गये। इस तरह से मीडिया मैनेजमेंट व न्यायिक सेवा के लिये जब खर्च की रकम सामने आयेगी तो वह सरकार के किसी एक प्रमुख विभाग के बजट से अधिक भी हो सकती है।

इस समय सोशल मीडिया पर जो जानकारी प्रसारित हो रही है, वह भी काफी कुछ संकेत तो कर ही रही हैं। बताया जा रहा है कि दिल्ली सरकार का सालाना मीडिया का विज्ञापन खर्च 300 करोड़ रुपये तक रहा है। दर्जनों पत्रकारों को उनके कद के अनुसार 10 हजार से एक लाख रुपये तक के उपहार समय-समय पर दिये जाते रहे हैं और अनेक को तो लाख-पचास हजार रुपये मासिक नकद भी दिये गये हैं। इसी तरह से निचली अदालत से उच्चतम न्यायालय तक सौ से अधिक वकीलों को सालाना करोड़ों रुपये दिये गये हैं, जिनमें से कुछ ने तो कभी किसी पैरवी में भाग ही नहीं लिया। एक विज्ञापन एजेंसी भी संदेह के घेरे में हैं, जो दिल्ली सरकार के विज्ञापन जारी करती थी और कमीशन का बड़ा हिस्सा कुछ आप नेताओं तक पहुंच जाता था। आप के टिकट पर ही चुनाव लडे एक टैंकर माफिया की हार के बाद उनके घपले भी उजागर होंगे, जिनके 50 से अधिक टैंकर दिल्ली महानगर पालिका के अनुबंध पर चल रहे थे। वर्ग विशेष के ठेकेदारों को निर्माण कार्य के ठेके देने पर भी सवाल उठने वाले हैं।

कुल मिलाकर केजरीवाल के क्रियाकलापों का ताना-बाना जिस तरह का था, उसने उन पर कानूनी शिकंजा कसने का पर्याप्त सामान तो इकट्‌ठा करवा दिया है। जैसे ही दिल्ली में नई सरकार पदारुढ़ होगी, वैसे ही केजरीवाल के दिल की धड़कनों की गति तेज होती जायेगी। संभवत यही कारण रहे होंगे, जिसके परिप्रेक्ष्य में ही 8 फरवरी को चुनाव नतीजों की शाम में सामान्य प्रशासन विभाग ने आदेश जारी कर सचिवालय से कोई भी दस्तावेज,फाइल,कंप्यूटर,हार्ड डिस्क ले जाना प्रतिबंधित करते हुए सचिवालय को सील कर दिया था। यह कोई सामान्य घटना नहीं थी।