जय नागड़ा की रिपोर्ट
Khandwa : लोकसभा उपचुनाव के लिए आज शाम मतदान (Voting) की प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीके से पूरी हो गई। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मतदाता की उदासीनता और नाराज़गी ज्यादा नज़र आई। शाम 6 बजे मतदान थमने तक इस लोकसभा क्षेत्र में मतदान 63.88 प्रतिशत ही रहा! विधानसभा वार देखें तो सर्वाधिक मतदान बागली में 67.74 प्रतिशत रहा, जबकि खंडवा विधानसभा क्षेत्र में यह 54.39 प्रतिशत ही रहा। मांधाता में 63.74, पंधाना में 67.12, नेपानगर में 69.72, बुरहानपुर में 64.34 प्रतिशत मतदान हुआ। जबकि, भीकनगांव में 64 प्रतिशत और बड़वाह में 60.1 प्रतिशत ही मतदान हुआ। अमूमन शहरी क्षेत्र खंडवा, बुरहानपुर और बड़वाह में ज्यादा उदासीनता दिखी। जबकि, ग्रामीण क्षेत्र में तुलनात्मक रूप से स्थिति ठीक थी।
खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। यहाँ भाजपा की कमान जहां स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपने हाथ में ले रखी थी, तो कांग्रेस की कमान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के हाथ में थी। दोनों नेताओं ने खंडवा लोकसभा क्षेत्र में अनेक सभाएँ अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में की। भाजपा की तरफ से यहाँ ज्ञानेश्वर पाटिल उम्मीदवार हैं, तो कांग्रेस से राजनारायण सिंह। ज्ञानेश्वर पाटिल जहाँ खंडवा जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं, तो राजनारायण सिंह मांधाता से दो बार विधायक चुने गए है। इस चुनाव में कुल 16 प्रत्याशी मैदान में थे। लेकिन, मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है।
यहाँ से 6 बार सांसद रह चुके नंदकुमार सिंह चौहान के आकस्मिक निधन के कारण यह चुनाव की नौबत बनी। कोरोना संक्रमण के बाद यहाँ जनजीवन अभी तक पूरी तरह सामान्य भी नहीं हो सका, इसका असर इस चुनाव पर भी साफ नज़र आया। यहाँ आज सुबह से ही मतदान बहुत धीमी गति से शुरू हुआ और मतदान समाप्ति तक भी यह कुछ ख़ास गति नहीं पकड़ सका। किसी भी मतदान केंद्र पर मतदाताओं की कतारे देखने को नहीं मिली।
यहाँ पिछले चुनाव में मतदान की स्थिति देखें तो जहाँ 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान 76. 90 प्रतिशत था वहीं इसके पहले 2014 में यह 71.48 प्रतिशत था। ये दोनों ही चुनाव में भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान ने विजयश्री हासिल की थी। 2019 में वे जहाँ 2 लाख 73 हजार 303 मतों से विजयी हुए थे, तो 2014 में यह अंतर 2 लाख 59 हजार 714 था। जबकि, 2009 में यहाँ मतदान गिरकर 60.01 प्रतिशत पर सिमट गया। तब यहाँ से कांग्रेस के अरुण यादव ने चौहान को 49 हजार 801 मतों से पराजित किया था।
हालाँकि, मतदान के घटते-बढते आंकड़ों से कोई अनुमान लगा पाना इस बार भी संभव नहीं है। फिर भी यह समझा जाता है कि खंडवा जो बीते तीन दशक से भाजपा के गढ़ में तब्दील हो गया, वहां मतदान का कम होना, भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है। वहीं बुरहानपुर में जहाँ अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। मतदान का कम होना कांग्रेस के लिए मुश्किल बढ़ा सकता है। इधर, बड़वाह विधानसभा क्षेत्र में भी मतदान का कम होना दिखाता है कि यहाँ भी विधायक सचिन बिरला के कांग्रेस में भाजपा में जाने से मतदाताओं में निराशा बढ़ाई है।
खंडवा जिले की दो विधानसभा क्षेत्रो के दो गाँवो में मतदाताओं ने अपनी स्थानीय समस्याओं को लेकर मतदान का बहिष्कार किया। पंधाना विधानसभा क्षेत्र के फतेहपुर गांव के लोग अपने यहाँ सड़क की समस्या से परेशान थे। वहीं उनके गांव में मतदान केंद्र नहीं बनना भी उनकी नाराज़गी की वज़ह थी। इसी तरह मांधाता विधानसभा क्षेत्र के ग्राम नांदिया रैयत में भी सड़क के साथ ही राशन की दुकान और वहां कब्रिस्तान की मांग को लेकर ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार किया। इसी तरह बड़वाह विधानसभा क्षेत्र के खनगांव में लोगो ने बाँकुड नदी पर पुल बनाने की बरसों पुरानी मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार किया।
गौरतलब यह है कि किसी भी पार्टी के विधायक या नेता इन ग्रामीणों को समस्या के समाधान का वादा भी नहीं कर सके जिससे उनका विरोध थम पाता। जबकि, पिछले मांधाता विधानसभा उपचुनाव में भी ग्राम सिंधखेड़ा में भी ग्रामीण चुनाव के बहिष्कार पर आमदा थे। तब तत्कालीन सांसद नंदकुमार सिंह चौहान ने मोबाइल पर ही ग्रामीणों से चर्चा कर उनका भरोसा हासिल किया और वे मतदान पर राजी हुए। ज़ाहिर है इस क्षेत्र में अब चौहान जैसा कोई दूसरा कद्दावर नेता अब नहीं है, जो लोगो को चुनाव का बहिष्कार करने से रोक पाता।