Khandwa Loksabha By-Election: कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित किया, भाजपा में घमासान जारी

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Khandwa Loksabha By-Election

जय नागड़ा की विशेष रिपोर्ट

कभी टिकट वितरण को लेकर जो दृश्य कांग्रेस में हुआ करता था, वही अब भाजपा में है। जो भाजपा की स्थिति थी, वह कांग्रेस की हो गई है। आज से दो-तीन दशक पहले भाजपा से लोकसभा के लिए कोई दावेदार ही नहीं हुआ करता था। मान-मनोव्वल कर ऐसे प्रत्याशी को तैयार किया जाता था, जो स्वयं के बल पर चुनाव लड़ने में सक्षम हो, यथासमय भाजपा उसे अपना प्रत्याशी घोषित कर देती थी।

इधर कांग्रेस में टिकट को लेकर अंतिम क्षण तक घमासान चलता और नाटकीय घटनाक्रम के साथ प्रत्याशी घोषित होता। क़रीब इसके उलट स्थिति अब कांग्रेस में दिख रही है। जहाँ बिना किसी सर फुटव्वल के कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया, वहीं भाजपा में अभी घमासान जारी है।

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खंडवा लोकसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस ने पूर्व विधायक ठाकुर राजनारायण सिंह को अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित कर दिया है। 69 वर्षीय ठाकुर राजनारायण सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है जो दो बार मान्धाता (पूर्व में निमाड़खेड़ी ) विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व कर चुके है। वे पहली बार सन 1985 में विधायक चुने गए थे।

इसके बाद 1998 में उन्हें इस क्षेत्र की जनता ने उन्हें मौका दिया। हाल ही के मान्धाता विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने उनके पुत्र उत्तमपाल सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

ठाकुर राजनारायण सिंह कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं। इसके पहले वे अर्जुन सिंह के भी निकटस्थ रहे है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी कुछ वर्षो से उनके पूर्व सांसद एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव से सम्बन्धो में खटास थी। लेकिन, मान्धाता के विधायक नारायण पटेल के भाजपा में जाने के बाद ये समीकरण बदल गए।

राजनारायण सिंह ने लोकसभा चुनाव के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत की ही नहीं थी, न टिकट की भागदौड़ में वे भोपाल -दिल्ली गए। अरुण यादव के ऐनवक्त पर अपना नाम वापस लेने पर अचानक स्थितियां बदली और यह टिकट राजनारायण सिंह की झोली में आ गया। उन्हें टिकट मिलने पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने भी बधाई एवं शुभकामनाएं दी और यह चुनाव मिलजुलकर लड़ने के लिए आश्वस्त भी किया है।

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हर्ष चौहान के नाम पर क्यों ठिठके CM
इधर भाजपा ने अभी अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। यहाँ से तीन नामो का पेनल दिल्ली गया है जिसमें पूर्व सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान, पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ज्ञानेश्वर पाटिल का भी नाम है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पहली पसंद हर्षवर्धन चौहान ही हैं।

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सहानुभूति के चलते उन्हें उनकी जीत का भरोसा भी था लेकिन टिकट मंथन में हर्षवर्धन का पिछले स्याह इतिहास के कुछ पन्ने सामने आने के बाद शिवराज भी ठिठक गए। इस स्थिति में उन्होंने नंदकुमार सिंह चौहान के ही विश्वासपात्र ज्ञानेश्वर पाटिल पर भी सहमति जताई। इधर, पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस भी संघ और पार्टी हाईकमान में गहरी पकड़ रखती है इसलिए उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। भाजपा ने अपने केंद्रीय नेतृत्व पर यह दारोमदार छोड़ दिया है कि वह किसे टिकट देता है।

खंडवा बनाम बुरहानपुर मुद्दा
इधर, राजनारायणसिंह का नाम कांग्रेस से सामने आने के बाद चुनाव में खंडवा बनाम बुरहानपुर का मुद्दा यदि जोर पकड़ता है, तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती है। दरअसल खंडवा संसदीय क्षेत्र का लम्बे समय तक प्रतिनिधित्व बुरहानपुर के नेताओं ने किया जिससे खंडवा अक्सर उपेक्षित ही रहा। बुरहानपुर से परमांनदजी गोविंजीवाला, ठाकुर शिवकुमार सिंह, ठाकुर महेंद्र सिंह, अमृतलाल तारवाला और नंदकुमार सिंह चौहान खंडवा के सांसद रहे।

जबकि, पूरे संसदीय इतिहास में खंडवा से बाबूलाल तिवारी के बाद यह मौका सिर्फ कालीचरण सकरगाए को ही मिला। इस बीच खरगोन के नेताओं के हाथ भी इस संसदीय क्षेत्र की बागडोर गई। लेकिन, खंडवा हाशिये पर ही रहा। अब राजनारायण सिंह के रूप में लम्बे अरसे बाद खंडवा से प्रत्याशी कांग्रेस ने दिया है। हालांकि, राजनारायण सिंह मान्धाता विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पुरनी से आते हैं, लेकिन उनका खंडवा में स्थायी निवास भी और खंडवा से उनका गहरा नाता भी है।

आसान नहीं है भाजपा की राह
वैसे भी कोविड के बुरे दिनों के अलावा बढ़ती महंगाई भी भाजपा की जीत में रोडा है जिसे पार करने के लिए उसे ज्यादा पसीना बहाना पड़ेगा। ऐसे में भाजपा के ही कुछ नेताओ का मत है कि ऐसी हालत में भाजपा को दमदार प्रत्याशी के रूप में कैलाश विजयवर्गीय को यहाँ से अपना प्रत्याशी बनाती, तो भाजपा का पलड़ा भारी हो सकता है।

गौरतलब है कि कांग्रेस के पास यहाँ खोने को कुछ नहीं है लेकिन भाजपा यहाँ अपनी सीट खो देती है तो उसके लिए यह भारी मुश्किलें पैदा कर सकती है। दमोह की पराजय के बाद यहाँ भाजपा ज्यादा सतर्क है। लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खंडवा संसदीय क्षेत्र में पिछले दिनों हुए सघन दौरों ने यह साफ संकेत दिए है कि यह सीट स्वयं उनके लिए प्रतिष्ठा का ही ही नहीं राजनैतिक भविष्य का भी प्रश्न होगा।