Khandwa Loksabha Constituency: भाजपा के ज्ञानेश्वर का कांग्रेस के नरेंद्र से कड़ा मुकाबला!
भाजपा मोदी लहर के भरोसे, कांग्रेस को सामाजिक समीकरणों से आस!
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट
दूसरे कई लोकसभा क्षेत्रों की तरह खंडवा में भाजपा प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल को लोग पसंद नहीं करते। बावजूद इसके केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से नजदीकी के चलते वे फिर भाजपा का टिकट ले आए। ज्ञानेश्वर कांग्रेस के नरेंद्र पटेल पर भारी पड़ते नजर आते हैं। वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और अयोध्या मंदिर के कारण चल रही राम लहर। कांग्रेस की तुलना में भाजपा का प्रचार अभियान भी तेज है और पार्टी का हर प्रमुख नेता प्रचार में हिस्सा ले चुका है। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं कि चुनाव एकतरफा है। सामाजिक समीकरणों के कारण कांग्रेस के नरेंद्र कम ताकतवर नहीं। उनके पास भाजपा जैसे संसाधन नहीं हैं, इसलिए वे मतदाताओं से ‘एक वोट के साथ एक नोट’ का अभियान चला रहे हैं। नरेंद्र गुर्जर समाज से हैं। क्षेत्र में इस समाज की तादाद लगभग साढ़े 4 लाख बताई जाती है। राजपूत समाज भी भाजपा से खफा है। मुस्लिम कांग्रेस के साथ हैं ही। यदि आदिवासी समाज का वोट कांग्रेस के पक्ष में गया तो खंडवा में भाजपा को लेने के देने पड़ सकते हैं। ज्ञानेश्वर पिछला चुनाव लगभग 82 हजार वोटों के अंतर से जीते थे। इस बार वे कड़े मुकाबले में फंसे हैं। उप चुनाव में भी कांग्रेस के राज नारायण सिंह ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी।
विधानसभा क्षेत्रों में हो सकता उलटफेर
विधानसभा चुनाव के नतीजों को आधार माने तो भाजपा का पलड़ा भारी है, क्योंकि पार्टी ने 8 में से 7 विधानसभा सीटों में जीत दर्ज की थी। कांग्रेस को सिर्फ एक भीकनगांव में मात्र 603 वोटों के अंतर से जीत मिली थी। लोगों का कहना है कि यह पहला ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां विधानसभा के आधार में उलटफेर हो सकता है। बुरहानपुर, नेपानगर और खंडवा में भाजपा को मजबूत बताया जा रहा है। विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने यहां बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। इसके विपरीत भीकनगांव, बड़वाह और मांधाता में कांग्रेस बढ़त ले सकती है। भीकनगांव में कांग्रेस विधायक झूमा सोलंकी का असर है। बड़वाह में कांग्रेस प्रत्याशी नरेंद्र पटेल खुद लगभग 5 हजार वोटों के अंतर से हारे थे, क्योंकि उनके साथ भाजपा प्रत्याशी सचिन बिरला भी गुर्जर समाज से थे। लोकसभा चुनाव में पूरा समाज नरेंद्र के पक्ष में एकजुट है। मांधाता सीट भी गुर्जर बहुल है। यहां भाजपा मात्र लगभग 6 सौ वोटों के अंतर से चुनाव जीती है। इनके अलावा बागली और पंधाना विधानसभा सीट भाजपा के कब्जे में हैं लेकिन पंधाना में उलटफेर हो सकता है। यह सीट राजपूत और आदवासी बहुल है।
गुर्जर, राजपूत, आदिवासियों पर फोकस
भाजपा के ज्ञानेश्वर से लोग नाराज हैं और कांग्रेस के नरेंद्र आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। इस बीच ज्ञानेश्वर को मोदी लहर पर भरोसा है और नरेंद्र सामाजिक समीकरणों पर फोकस बनाए हुए हैं। खंडवा क्षेत्र में गुर्जर कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होता नजर आ रहा है। राजपूत समाज भाजपा से दो कारणों से नाराज है। पहली वजह गुजरात के रूपाला का बयान है, जिसके खिलाफ करणी सेना ने देश भर में अभियान चला रखा है। दूसरी वजह क्षेत्रीय है। यहां राजपूत समाज के नंदकुमार सिंह चौहान चुनाव जीतते रहे हैं। उनके स्वर्गवासी होने के बाद भाजपा ने राजपूतों को दरकिनार कर दिया। यहां तक कि नंदकुमार सिंह के बेटे तक को बगावत करना पड़ गई थी। इस बार यह समाज भाजपा को सबक सिखाने के मूड में दिखता है। बुरहानपुर सहित क्षेत्र के कई इलाकों मे मुस्लिम मतदाता भी काफी है। वह भी कांग्रेस के पक्ष में है। क्षेत्र में आदिवासी समाज भी बड़ी तादाद में है। भाजपा-कांग्रेस ने उसे अपने-अपने पक्ष में करने के लिए ताकत झोंक रखी है। यह वर्ग जहां गया, जीत उसके पाले में जा सकती है। ब्राह्मण एवं पिछड़े वर्ग की अन्य जातियां भाजपा के पक्ष में लामबंद दिखती हैं।
खंडवा में अरुण की प्रतिष्ठा दांव पर
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव खंडवा से सांसद रहे हैं। वे यहां से दो बार पराजित भी हुए हैं। नरेंद्र पटेल को उनकी सिफारिश पर कांग्रेस प्रत्याशी बनाया गया है। इस नाते खंडवा में अरुण यादव की प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस नेतृत्व ने नरेंद्र को जिताने की जवाबदारी उनके कंधों पर डाल रखी है। लोगों का कहना है कि ज्ञानेश्वर के खिलाफ इतनी नाराजगी है कि यदि इस बार अरुण मैदान में होते तो गारंटी से चुनाव जीतते। लोग उन्हें याद भी करते हैं। अरुण का नेपानगर सहित कई क्षेत्रों में अच्छा होल्ड है। वे दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। फर्क यह है कि भाजपा के प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पड़ोस के क्षेत्र खरगौन आ चुके हैं। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव कई दौरे कर चुके हैं। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा के हाथ चुनाव की बागडोर है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा भी प्रचार में आ चुके हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से बड़े नेता कम आए हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ही आए हैं। पूरी मेहनत अरुण यादव ही करते दिख रहे हैं।
नंदू भैया को अरुण ने दी थी एक शिकस्त
1996 के बाद खंडवा का राजनीतिक मिजाज बदला और भाजपाई हो गया। 1991 में कांग्रेस के महेंद्र कुमार सिंह ने भाजपा के अमृतलाल तारवाला को हराया था। इसके बाद भाजपा की ओर से नंद कुमार सिंह चौहान नंदू भैया ने लोकसभा के 6 चुनाव जीते। उनकी जीत पर ब्रेक लगाने का काम कांग्रेस के अरुण यादव ने 2009 में किया। इसके बाद लगातार दो बार नंदू भैया ने फिर अरुण को हराया। नंदू भैया के निधन के बाद भाजपा ने 2021 के उप चुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा और वे जीते। इस बार फिर ज्ञानेश्वर ही मैदान में हैं, लेकिन उनको लेकर लोगों में असंतोष देखने को मिल रहा है। भाजपा को उम्मीद है कि मोदी और राम लहर के भराेसे पार्टी फिर बड़ी जीत दर्ज करेगी। माहौल भी भाजपा के पक्ष में दिखाई पड़ रहा है। हालांकि कांग्रेस ने यदि सामािजक समीकरण साध लिए तो भाजपा के सामने मुश्कल खड़ी हो सकती है।