इंदौर से प्रदीप जोशी की रिपोर्ट
चिटनिस, मोघे के अलावा आधा दर्जन नेता टिकट की कतार में खड़े
इंदौर: खंडवा लोकसभा उपचुनाव को लेकर कांग्रेस में चल रही उठापटक अब तक मजे ले रही भाजपा खुद बुरे हालातों का शिकार बन गई है। नंदकुमार सिंह चौहान के अवसान के बाद रिक्त हुई लोकसभा सीट पर होने वाले उप चुनाव में टिकट के लिए खासी उठापटक चल रही है। नंदू भैया की विरासत संभालने का दांवा करते हुए भाजपा के करीब आधा दर्जन नेता मैदान में आ चुके है। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा नंदू भैया के पुत्र हर्षवर्धनसिंह का खुला समर्थन देने के बावजूद दांवेदारों ने पीछे हटने को तैयार नहीं। यहीं कारण है कि अभी तक हर्षवर्धन अधर में लटके हुए है। नेताओं के बीच चल रही इसी उठापटक के बीच खंडवा के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अब की बार स्थानीय उम्मीदवार का नारा बुलंद कर संगठन को पशोपेश में डालने का काम कर दिया। स्थानीय की मांग उठते ही दो स्थानीय नाम टिकट की दौड़ में शामिल हो गए इनमे पूर्व जिलाध्यक्ष राजेश डोंगरे का नाम प्रमुख है।
तीन थे अब मैदान में छह से ज्यादा नाम-
नंदू भैया के अवसान के बाद ही शिवराजसिंह चौहान ने मन बना लिया था कि हर्षवर्धन सिंह ही उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी होंगे। मुख्यमंत्री की मंशा सीट जीतने के साथ नंदू भैया के परिवार को उपक्रत करने की थी और नरेंद्र सिंह तोमर सहित वो तमाम नेता मुख्यमंत्री के साथ हो गए जिनका जुड़ाव नंदू भैया से था। बावजूद इसके पूर्व सांसद कृष्णमुरारी मोघे और पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ने टिकट का दांवा ठोक दिया। दोनों नेता आज भी दिल्ली स्तर पर दिल्ली की लाबिंग कर रहे है। इसी जद्दोजहद के बीच कुछ स्थानीय और कुछ बाहरी नेताओं के नाम टिकट की कतार में जुड़ गए। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व मंत्री दीपक जोशी और पूर्व विधायक हितेंद्र सोलंकी जैसे नाम प्रमुख है। हालांकि विजयवर्गीय इंदौर नहीं छोड़ने की बात कह चुके है। जोशी और सोलंकी दोनों ही विधानसभा चुनाव हार चुके है फिर भी संगठन निष्ठ होने के कारण नाम चर्चा में है। वैसे जोशी ने भी हर्षवर्धन के टिकट का समर्थन भी किया है।
बाहरी के विरोध में स्थानीय नाम भी चर्चा में आए-
अब की बार स्थानीय उम्मीदवार का नारा खंडवा में बुलंद होने लगा है। बताया जाता है कि स्थानीय नेताओं की उपेक्षा किए जाने की नाराजी सालों पुरानी है बस इस बार हवा कुछ ज्यादा तेज है। स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजी का असर रहा कि टिकट की दौड़ में नए नाम भी चर्चा में आ गए। जो नाम टिकट के लिए चल रहे है उनमे अहम नाम वरिष्ठ नेता राजेश डोंगरे का है। डोंगरे का पार्टी में नाता चालिस वर्ष से ज्यादा का है। विद्यार्थी परिषद से सियासी सफर शुरू करने वाले डोंगरे संघ परिवार के भी करीबी है और खंडवा जिलाध्यक्ष सहित अनेक पदों पर रह चुके है। टिकट की करात में एक नाम अशोक पालीवाल का भी है। उग्र हिन्दू छबी वाले पालीवाल संघ के पुराने पदाधिकारियों के जरिए टिकट की लाबिंग कर रहे है।
अब उपेक्षा सहन नहीं-
खंडवा में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के तैवर इस बार कड़े है। उनका स्पष्ट कहना है कि बात लोकसभा की हो या विधानसभा की या फिर महापौर की हर बार खंडवा शहर के नेताओं की उपेक्षा की जाती रही है। कार्यकर्ताओं का मलाल इस बात का है कि लोकसभा की उम्मीदवारी अधिकांश बाहरी नेताओं को मिली इस बात को सहन कर ले पर विधानसभा और नगर निगम के चुनाव में भी स्थानीय नेताओं की पार्टी ने उपेक्षा की जाती है। निवृत्तमान महापौर सुभाष कोठारी हो या उनसे पहले भावना शाह दोनों का खंडवा से सीधा नाता नहीं था। यहीं हाल खंडवा सीट के विधायक देवेंद्र वर्मा का है जो मूल रूप से पंधाना के है। जबकि यह अधिकार राजेश डोंगरे, अमर यादव जैसे स्थानीय नेताओं का था। बहरहाल स्थानीय नेताओं की एकजुटता का असर पार्टी संगठन पर कितना होगा इसका तो पता नहीं पर टिकट जिसे भी मिले उसे पहले इस चुनौती से निपटना होगा। RB