धार से छोटू शास्त्री की विशेष रिपोर्ट
Dhar : मांडू की पहचान बनी खुरासानी इमली अब सुदूर हैदराबाद में भी दिखाई देगी। यहाँ 350 एकड़ इलाके में बॉटनिकल गार्डन विकसित किया गया है। एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का कारोबार छोडकर प्रकृति की सेवा मे लगे 60 वर्षीय रामदेव राव धार के मांडू से खुरासानी इमली के 11 पेड़ ट्रालों मे रखकर ले जा रहे हैं। इन वृक्षो को धार से एक हजार किलोमीटर दूर हैदराबाद के गार्डन में स्पेन की प्रणाली से ट्रांसप्लांट किया जाएगा।
वहां इस इमली की प्रजाति के पेड़ों का क्लस्टर बनाकर पर्यटन का केंद्र बनाया जाएगा। हैदराबाद में 350 एकड़ में बॉटनिकल गार्डन स्थापित किया है। इसमें अभी तक 400 करोड़ रुपए का निवेश किया जा चुका है। इस बॉटनिकल गार्डन में अभी तक अलग-अलग किस्म के देश-विदेश से लाए गए एक हजार पेड़ और पौधे लगा चुके है।
देश में खुरासानी इमली के पेड़ सिर्फ मांडू में पाए जाते हैं, जो अपने विशिष्ट स्वाद और आकार के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। सदियों पुराने यह पेड़ अब कमजोर होकर लगातार धराशायी हो रहे हैं। मांडू के इतिहास खुरासानी इमली के पेड़ से जुड़ा माना जाता है। प्राचीन स्मारकों के चित्र में भी इस पेड़ में उकेरे गए हैं। साउथ अफ्रीका से लाया गया यह पौधा आज मांडू में खुरासानी इमली के नाम से जाना जाता है। जिसे विदेशों में बॉब कहा जाता है।
कहां से आया खुरासानी इमली का पेड़
ये पेड़ भारतीय मूल के नहीं हैं। कहा जाता है कि इन्हें मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने साउथ अफ्रीका से मंगाया था। संभवतः सुल्तान की सेना के अफ्रीकी सैनिक इस पेड़ का फल अपने उपयोग के लिए लाए होंगे। उन्हीं के बीजों से इसका फैलाव हुआ होगा। अफ्रीका के सवाना वाले क्षेत्रों में इनकी बहुलता है और इन्हें बाओबाब (Adansonia digitata) के नाम से जाना जाता है। वहाँ के निवासी इसे जीवन दायिनी के रूप में देखते हैं।
यह वृक्ष मनुष्यों, एवं जानवरों को आश्रय, भोजन और पानी सुलभ कराने की क्षमता रखता है। इसके तने 15 मीटर तक की गोलाई लिए रहते है और अंदर से खोखले होते हैं। इनमें बारिश का पानी जमा रहता है जो हजारों लीटर हो सकता है।
जिनमें पानी जमा नहीं होता, उन्हें कई पशु-पक्षी बसेरे के रूप में प्रयोग करते हैं। इस पेड़ का खाल कॉर्क जैसा और अग्नि अवरोधक होता है तने के रेशों से कपड़े और रस्सी बुनी जाती है। पत्तियां भी खाने में काम आती है। कहा जाता है कि इसकी पत्तियों में औषधीय गुण हैं और उनका प्रयोग जायका बढ़ाने के लिए मसाले की तरह किया जा सकता है। इसमे जो फल लगता है उसे स्थानीय भाषा में खुरासानी इमली या मंकी ब्रेड (Monkey Bread) कहा जाता है। इसमें विटामिन-सी भरपूर है। ऊपरी आवरण सूखी लौकी की तरह, पर कठोर और भूरे रंग की होती है। फल के अंदर के खट्टे गूदे का प्रयोग इमली की तरह ही किया जाता है।