मार्च में फिर किसान मार्च

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मार्च में फिर किसान मार्च

देश की आम जनता के साथ अन्नदाता कहा जाने वाला किसान फिर अकुलाए रहा है और इसी के चलते देश के किसानों ने एक बार फिर सड़कों पर आने का फैसला किया है. देश में पिछले साल चले एक साल लम्बे किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत ने 20 मार्च से फिर किसान आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है. राकेश टिकैत चोट खाये किसान नेता हैं और सरकार की वादा खिलाफी के कारण बुरी तरह आहत हैं, लेकिन उन्होंने अभी हथियार नहीं डाले हैं.

देश के किसानों का हथियार स्थागृह के अलावा कुछ नहीं है. वे लाठी-गोली खा सकते हैं लेकिन चला नहीं सकते. अपनी माँगों को लेकर 700 से ज्यादा किसानों की शहादत दे चुके किसानों ने सरकार की जमीन हड़पो नीति के अलावा अन्य कई माँगों को लेकर आंदोलन करने का निर्णय किया है. भारतीय किसान यूनियन ने सोये हुए किसानों को दोबारा जगाने के लिए मुजफ्फरनगर में महापंचायत का आयोजन किया. इसमें बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए.

महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने केंद्र और राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने यूपी में गन्ने का भाव 450 रु क्विंटल करने की माँग की. भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि नलकूपों पर किसी भी कीमत पर बिजली के मीटर नहीं लगने देंगे और न ही पुराने ट्रैक्टर बंद होने देंगे. उन्होंने कहा कि नागपुर पॉलिसी चल रही है.

राकेश टिकैत और नरेश टिकैत पुश्तैनी किसान नेता हैं. ये दोनों भ्र्ष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले अन्ना हजारे की तरह हार मानकर बैठने वालों में से नहीं हैं. टिकैत बंधुयों ने भाजपा के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी निशाने पर रखा है. वे समझ गए हैं की किसानों का असली दुश्मन कौन है? पिछले किसान आंदोलन के प्रति केंद्र सरकार के रवैये से वाकिफ किसान नेता मुमकिन है की इस बार ज्यादा सतर्कता और तैयारी के साथ सड़कों पर उतरें. आखिर ‘दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है’.

राकेश टिकैत ने कहा कि पीएसी नहीं, मिलिट्री बुलाओ, पर मीटर नहीं लगेगा. सरकार अपने मीटर की सुरक्षा करे, चोरी बढ़ रही है. बड़ी कंपनियों को बिजली बेची जा जा रही है. गरीबों का शोषण किया जा रहा है. यह कंपनियों की सरकार है. टिकैत ने ऐलान किया कि 26 जनवरी 2024 को पूरे देश में ट्रैक्टर परेड होगी. किसान संगठन किसी एक पार्टी के खिलाफ नहीं है. जहां सरकार किसान के खिलाफ फैसले करेगी, हम वहीं जाएंगे.

आपको याद होगा की साल 2020 में लगभग एक साल चले किसान आंदोलन के सामने केंद्र सरकार ने 19 मार्च 2021 को घुटने टेकते हुए तीनों विवादास्पद कृषि कानों वापस ले लिए थे. सरकार के सामने उस समय पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव थे. आज की तारीख में भी स्थितियां लगभग पहले जैसी हैं. अब कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनावों के साथ ही अगले साल आम चुनाव भी हैं. ऐसे में केंद्र सरकार किसान आंदोलन के दोबारा शुरू होने से परेशान जरूर होगी.

देश में कोरोना वायरस संक्रमण के बीच 17 सितंबर को लोकसभा और 20 सितंबर को राज्यसभा ने भारी हंगामे के बीच तीनों कानूनों को पास कर दिया था. इसके बाद 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने इस पर दस्तखत कर दिए थे. इन कानूनों के खिलाफ देशव्यापी किसान आंदोलन के बाद लगभग एक साल तक किसानों से सौदेबाजी करने वाली सरकार ने 2021 में संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन कृषि कानून वापस कर लिए थे.

भाजपा की मजबूत सरकार के खिलाफ 24 सितंबर, 2020: पंजाब में किसानों ने तीन दिनों का रेल रोको आंदोलन शुरू किया था. 25 सितंबर को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देशभर के किसान सड़कों पर उतरे थे. किसानों के विरोध के बावजूद तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 सितंबर को तीनों कृषि विधेयकों पर दस्तखत किए. इससे किसान और भड़क गए 25 नवंबर, 2020 को पंजाब और हरियाणा के किसानों ने तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली चलो का नारा दिया. दिल्ली पुलिस ने किसानों को कोरोना संक्रमण का हवाला देकर दिल्ली में प्रवेश करने से रोका.

बिना किसी राजनीतिक दल के नेताओं के शुरू हुए किसान आंदोलन के चलते 26 नवंबर, 2020 को दिल्ली की ओर बढ़ रहे किसानों को अंबाला में पुलिस बलों का भारी विरोध झेलना पड़ा. किसानों पर ठंडे पानी की बौछार की गई. उन पर आंसू गैस के गोले दागे गए. बाद में पुलिस ने उन्हें दिल्ली कूच करने की इजाजत दी. दिल्ली की सीमाओं पर किसान आकर डट गए. बाद में पुलिस ने किसानों को निरंकारी ग्राउंड में शांतिपूर्ण प्रदर्शन की इजाजत दी.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसानों को बातचीत का प्रस्ताव दिया और दिल्ली बॉर्डर छोड़कर बुरारी में आंदोलन स्थल बनाने को कहा. किसानों ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया और जंतर-मंतर पर विरोध करने की इजाजत मांगी.

03 दिसंबर, 2020 को केंद्र सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच पहले राउंड की वार्ता हुई लेकिन विफल रही. वार्ताओं का हर दौर विफल होता गया उधर किसान आंदोलन पूरे देश में फ़ैल गया 8 दिसंबर, 2020 को किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया. दूसरे राज्यों में भी किसानों ने इस बंद का समर्थन किया.

09 दिसंबर, 2020 को किसान संगठनों ने कृषि कानूनों में संशोधन करने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को ठुकराया और कानून वापसी की मांग पर अड़ गए 11 दिसंबर, 2020 को तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ भारतीय किसान यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

मुझे अच्छी तरह से याद है कि 13 दिसंबर, 2020 केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया कि किसान आंदोलन के पीछे टुकड़े-टुकड़े गैंग का हाथ है. उन्होंने कहा कि सरकार ने बातचीत का दरवाजा खोल रखा है. इन आरोपों-प्रत्यारोपों से बात बनने के बजाय बिगड़ती चली गयी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाददास्पद कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए सरकार और किसान संगठनों के नुमाइंदों का एक पैनल बना सकती है. 21 दिसंबर को आंदोलनरत किसानों ने विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर एक दिन की भूख हड़ताल की. किसान संगठनों और सरकार के बीच छठे दौर की वार्ता के बाद सरकार ने पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान और बिजली संशोधन बिल भी वापस लिए. लेकिन 4 जनवरी, 2021 को सातवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही. सरकार का कानून वापस लेने से इनकार कर दिया.

अब एक लम्बी खामोशी के बाद राकेश टिकैत ने किसानों को चेताया कि जमीन छीनने की तैयारी है, गलत तरीके से भूमि अधिग्रहण किया जाता है. हमारे आंदोलन का अगला पड़ाव फिर दिल्ली होगा. 20 मार्च से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली में आंदोलन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि 20 साल तक की लड़ाई के लिए तैयार रहें. किसानों का नए सिरे से होने वाला आंदोलन 2020 के आंदोलन की तरह कामयाब होगा या नहीं, ये कहना अभी कठिन है किन्तु इतना जरूर है कि किसानों के दोबारा आंदोलन की घोषणा से भाजपा सरकार और पार्टी दोनों की नींद में खलल तो जरूर पड़ेगा. मुमकिन है कि सरकार और भाजपा इस नए परिदृश्य के बाद अपने 400 दिन वाले चुनावी रोडमैप की समीक्षा करने के लिए मजबूर हो जाये.