
Kissa-A-IAS: Dr Indurani Jakhar: हवलदार की बेटी – डॉक्टर से कलेक्टर तक
सुरेश तिवारी
कहते हैं, सपने वही पूरे होते हैं जिन्हें देखने की हिम्मत हो और उन्हें सच करने की लगन। डॉ. इंदु रानी जाखड़ की कहानी इसी हिम्मत और लगन का उदाहरण है। एक साधारण पुलिसकर्मी की बेटी से लेकर एमबीबीएस डॉक्टर बनने तक का उनका सफर पहले ही मिसाल था, लेकिन उन्होंने यहीं रुकना नहीं चुना। उन्होंने ठाना कि लोगों की जिंदगी बदलने की सेवा अस्पताल की दीवारों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए और यही सोच उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा तक ले आई। आज वे महाराष्ट्र के पालघर जिले की पहली महिला कलेक्टर हैं और अपनी प्रतिबद्धता, ईमानदारी और संवेदनशील प्रशासनिक दृष्टि से समाज को नई दिशा दे रही हैं।

*हरियाणा से दिल्ली तक का सफर*
इंदु रानी जाखड़ मूल रूप से हरियाणा के सिरसा जिले के गांव बुढ़क की रहने वाली हैं। उनके पिता वेदप्रकाश दिल्ली पुलिस में हवलदार हैं। सीमित साधनों के बीच भी उनके परिवार ने शिक्षा को सबसे बड़ा निवेश माना। बचपन से ही इंदु रानी पढ़ाई में अव्वल रहीं और माता-पिता के संस्कारों ने उनमें अनुशासन और समर्पण की भावना जगाई।

*एमबीबीएस से शुरू हुई नई दिशा*
इंदु ने डॉक्टर बनने का सपना देखा और उसे पूरा भी किया। वर्ष 2008 में उन्होंने दिल्ली के मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की और उसके बाद राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल, नई दिल्ली में चिकित्सक के रूप में पदस्थ रहीं। बाद में उन्होंने एमडी (डॉक्टरी में विशेषज्ञता) की डिग्री हासिल की। चिकित्सा सेवा के दौरान उन्होंने महसूस किया कि समाज की समस्याएं केवल दवाइयों से नहीं, बल्कि नीति निर्माण और प्रभावी प्रशासन से भी हल की जा सकती हैं। यही सोच उन्हें एक नई राह “सिविल सेवा की राह” पर ले गई।

*दूसरे प्रयास में आईएएस*
आरएमएल अस्पताल में कार्यरत रहते हुए उन्होंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू की। पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली, पर उन्होंने हार नहीं मानी। वर्ष 2014 में दूसरे प्रयास में उन्होंने 30वीं रैंक हासिल की और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के लिए चयनित हुईं। यह क्षण न केवल उनके लिए, बल्कि उनके पिता वेदप्रकाश के लिए भी गर्व का विषय था- जिनकी आंखों में हमेशा बेटी को ऊंचाई पर देखने का सपना था।

*महाराष्ट्र कैडर में सेवा यात्रा*
डॉ. इंदु रानी जाखड़ को महाराष्ट्र कैडर आवंटित हुआ। प्रशिक्षण के बाद उनकी पहली नियुक्ति नासिक जिले में सहायक कलेक्टर के रूप में हुई। वहां उन्होंने ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में कई अभिनव पहलें कीं। इसके बाद वे मुंबई उपनगर में उप आयुक्त (Revenue) के रूप में कार्यरत रहीं, जहां उन्होंने शहरी गरीबों के पुनर्वास और डिजिटल भूमि प्रबंधन प्रणाली को लागू करने में अहम भूमिका निभाई।
बाद में वे पालघर जिले में अतिरिक्त कलेक्टर के पद पर आईं, और अपनी उत्कृष्ट कार्यशैली के कारण बाद में पालघर की पहली महिला जिला कलेक्टर नियुक्त की गईं।

*प्रशासनिक कार्य और उल्लेखनीय पहलें*
-पालघर जैसे आदिवासी बहुल और भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण जिले में उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण को प्राथमिकता दी।
-उन्होंने आदिवासी गर्भवती महिलाओं के लिए मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां शुरू कीं।
-“पालघर डिजिटल मिशन” के तहत ग्राम पंचायतों को ऑनलाइन निगरानी प्रणाली से जोड़ा।
-आदिवासी छात्रवृत्ति वितरण प्रणाली को पारदर्शी और समयबद्ध बनाया।
-महिला स्व-सहायता समूहों को सरकारी परियोजनाओं से जोड़ा, जिससे हजारों ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भरता मिली।
उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 2024 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें “उत्कृष्ट जिलाधिकारी पुरस्कार” से सम्मानित किया।
*सख्त अनुशासन, सरल व्यवहार*
इंदु रानी अपनी कार्यशैली के लिए जानी जाती हैं। वे कार्यालय में अनुशासन और जनता से संवाद — दोनों में संतुलन रखती हैं। कर्मचारियों के बीच वे सख्त अधिकारी के साथ-साथ संवेदनशील प्रशासक के रूप में जानी जाती हैं। आम लोगों से मिलने-जुलने में उनका सहज व्यवहार उन्हें जनता के करीब लाता है।
*पिता का सपना, बेटी की प्रेरणा*
जब भी उनसे पूछा जाता है कि इतनी सफलता का राज क्या है, तो वे कहती हैं- “मेरे पिता ने पुलिस की वर्दी में समाज की सेवा की, और मैं उसी सेवा को प्रशासनिक स्तर पर आगे बढ़ा रही हूं।” उनके इस जवाब में एक बेटी की कृतज्ञता और एक अधिकारी की जिम्मेदारी दोनों झलकती हैं।
डॉ. इंदु रानी जाखड़ की कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर नीयत साफ हो और मेहनत निरंतर हो तो कोई सपना अधूरा नहीं रहता। डॉक्टर से कलेक्टर बनने तक का उनका सफर आज देश की उन लाखों बेटियों के लिए प्रेरणा है जो बड़े सपने देखने से डरती हैं। इंदु रानी ने साबित किया है- मंजिल उन्हीं की होती है, जिनके हौसले बुलंद होते हैं।





