Kissa-A-IAS: पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और खुद बधिर, फिर भी बने IAS

दसवीं पास की तो पिता खुश हुए कि अब बेटा चपरासी तो बन जाएगा, पर लक्ष्य कुछ और ही तय

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Kissa-A-IAS: पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और खुद बधिर, फिर भी बने IAS

Kissa-A-IAS: पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और खुद बधिर, फिर भी बने IAS

ये अथक जीवन संघर्ष और उसके बाद सफलता की अनोखी कहानी है। जिसके नायक हैं, IAS डॉ मनीराम शर्मा (Maniram Sharma) जिन्होंने जीवन की मुश्किलों को पार करते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया।

मनीराम शर्मा का IAS बनने का सफ़र आसान नहीं था। उन्होंने हर कदम पर परेशानियां उठाई, पर मुकाम हासिल करने की अपनी जिद को नहीं छोड़ा। दरअसल, वे उन लोगों के लिए एक मिसाल हैं, जो शारीरिक कमजोरी के आगे घुटने टेक देते हैं, पर मनीराम ने ऐसा नहीं किया!

Kissa-A-IAS: पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और खुद बधिर, फिर भी बने IAS

वे अपने बहरेपन से लड़ते रहे और अपने IAS बनने के सपने को भी नहीं छोड़ा! उन्होंने 2005, 2006 और 2009 में UPSC की परीक्षा पास की। 2006 में उन्हें कहा गया कि पूरी तरह बहरापन होने के कारण उनका सिलेक्शन नहीं हो सकता।

मनीराम शर्मा की बचपन से सुनने की क्षमता ही पूरी तरह ख़त्म थी। वे गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वे राजस्थान के अलवर जिले के बंदनगढ़ी गाँव के रहने वाले हैं। मनीराम शर्मा के पिता मजदूरी करते थे। उनकी मां नेत्रहीन थीं। खुद मनीराम बचपन से सुन नहीं सकते हैं।

Kissa-A-IAS: पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और खुद बधिर, फिर भी बने IAS

इतना कुछ होने के बाद भी कभी मनीराम ने अपनी शारीरिक कमजोरी और परिवार की स्थिति को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। इतनी मुश्किलों के बाद भी उन्होंने IAS क्रैक कर अपना सपना पूरा किया।

उनका जन्म साल 1975 में हुआ था। उस समय मनीराम उनके गांव में कोई स्कूल भी नहीं था। इस कारण उनकी पढ़ाई को लेकर भी काफी मुश्किलें आई। मनीराम शर्मा को बचपन से पढ़ने का शौक था। इस कारण वे पढ़ने के लिए गांव से 5 किलोमीटर दूर जाते थे।

एक तो स्कूल दूर था दूसरा वे खुद भी बहरेपन के शिकार थे। कुछ सुनाई नहीं देता था। लेकिन, वे पूरी लगन के साथ पढ़ाई करते और नियमित स्कूल जाते थे। मनीराम ने 10वीं अच्छे नंबरों से पास की और फिर 12वीं में भी उन्होंने अच्छे अंक हासिल किए।

जब मनीराम 10वीं में अच्छे नंबर (मेरिट) से पास हुए तो उनके पिता को काफी ख़ुशी हुई। उनके पिता को लगा कि अब मनीराम ने 10वीं पास कर ली, तो उसे चपरासी की नौकरी तो मिल ही जाएगी।

10वीं में वे मेरिट में आए थे। पिता मेरिट के मायने नहीं समझते थे, वे केवल इतना समझे कि उनका बेटा ‘बड़ा वाला पास’ हो गया। पिता को लगा अब वो कम से कम किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी तो बन ही जाएगा।

उनके पिता मनीराम का रिजल्ट लेकर अपने किसी परिचित अधिकारी के घर भी गए और उन्हें बताया कि मनीराम ने 10वीं कक्षा पास कर ली है तो उसे चपरासी के पास पर नौकरी दे दो।

लेकिन, अधिकारी ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि वो सुन नहीं सकता! इसे न तो किसी घंटी की आवाज सुनाई देगी और न कोई आवाज़ देगा तो सुनाई देगा। आखिर ये चपरासी कैसे बन सकता है!

अधिकारी की यह बात सुनकर मनीराम के पिता की आँखों में आंसू आ गए। वे दुखी मन से घर लौट आए।

लेकिन, मनीराम ने पिता से कहा कि उन्हें खुद पर भरोसा है, वे एक दिन बड़े ऑफिसर भी जरुर बनेंगे। जब मनीराम यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे, तो उनके टीचर को इस बात का अहसास हो गया था कि मनीराम में काबिलियत हैं और एक दिन वे कुछ बन सकते हैं।

Kissa-A-IAS: पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और खुद बधिर, फिर भी बने IAS

उन्होंने मनीराम के पिता से बात की, तो उन्हें मनीराम को आगे पढ़ाने के लिए भी राजी कर लिया। उन्हें इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे मनीराम को आगे की पढ़ाई करवाएंगे। इसके बाद मनीराम शर्मा का एडमिशन अलवर के एक कॉलेज में हो गया।

वे यहाँ आकर कॉलेज की पढ़ाई करने लगे और ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा।

मनीराम जब कॉलेज के सेकंड ईयर में थे, तब उन्होंने राज्य की लिपिक वर्ग की परीक्षा पास कर ली और बतौर क्लर्क जॉब शुरू कर दी और कॉलेज के थर्ड ईयर की पढ़ाई को भी जारी रखा।

मनीराम ने कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस (Political Science) में टॉप किया और इसके बाद NET का एग्जाम दिया। इसमें भी सफल हुए।

इसके बाद उन्होंने क्लर्क की नौकरी छोड़ दी और लेक्चरार बन गए। पर वे इससे संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने PhD करने का विचार किया और PhD करने के लिए उन्हें स्कालरशिप भी मिली।

PhD करने के बाद उनके मन में IAS ऑफिसर बनने का विचार आया। उन्होंने इसे ही लक्ष्य बनाया और पढ़ाई करने लगे। आखिरकार मनीराम शर्मा ने साल 2005 में UPSC की परीक्षा भी पास कर ली।

 

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लेकिन, मनीराम की सुनने की अक्षमता आड़े आई और उन्हें उस रिजेक्ट कर दिया गया। लेकिन, मनीराम शर्मा ने हिम्मत नहीं हारी। साल 2006 में फिर एक बार UPSC की परीक्षा दी। इसे पास करने के बाद उन्हें P & T (पोस्ट एंड टेलीग्राफ) अकाउंट्स की नौकरी मिली, वे इसमें काम करने लगे।

इस नौकरी के साथ मनीराम के मन में यह बात भी बैठ गई कि जब तक उनके बहरेपन का इलाज नहीं हो जाता, वे चैन की नहीं बैठेंगे। वे अपने बहरेपन के इलाज के लिए डॉक्टर्स से मिलने लगे। एक डॉक्टर ने उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया कि उनकी सुनने की क्षमता आ सकती है।

लेकिन, इसके इलाज में करीब साढ़े 7 लाख रुपए खर्च आएगा। किसी तरह लोगों के सहयोग से उन्होंने यह पैसा जुटाया और अपना ऑपरेशन कराया। मीडिया का सहयोग भी सराहनीय रहा। मनीराम का ऑपरेशन सफल हुआ और उनके सुनने की क्षमता लौट आई।

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इसके बाद मनीराम ने साल 2009 में एक बार फिर से UPSC की एग्जाम दी और और इस बार उनका सपना हुआ पूरा और वे IAS के रूप में चयनित हुए।

भारतीय प्रशासनिक सेवा में उन्हें हरियाणा कैडर आवंटित हुआ। मनीराम शर्मा की पहली पोस्टिंग हरियाणा के नूंह जिले में उपायुक्त पद पर हुई थी। बाद में वे पलवल जिले के उपायुक्त रहे।

डॉ मनीराम शर्मा की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणादाई है जो IAS बनने का सपना तो देखते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते हैं?

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मनीराम शर्मा वर्तमान में हरियाणा सरकार में विशेष सचिव गृह और आयुक्त और विशेष सचिव श्रम विभाग हैं।