Kissa-A-IAS: पिता लगाते थे चाट का ठेला, बेटी ऐसे बनी IAS!
यदि मन में सच्ची लगन हो, तो लक्ष्य के सामने कोई परेशानी बड़ी नहीं लगती! अथक संघर्ष से कामयाबी पाने की ये कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसने बचपन से ही संकटों का सामना किया। लेकिन, सभी संकटों को उसने पीछे छोड़ दिया और आगे बढ़ती रही। इसी मजबूत इच्छाशक्ति ने उसे आईएएस बनाया। छोटे से शहर के एक कमरे से निकलकर IAS के आलिशान बंगले तक का सफर तय करने वाली दीपेश कुमारी की सफलता एक संदेश है कि हालात भले अनूकूल न हों, लेकिन अपनी मेहनत से आप उसे बदल जरूर सकते हैं।
ये कहानी है शुरू होती है भरतपुर (राजस्थान) के अटल बंद क्षेत्र की कंकड़ वाली कुईया में रहने वाले गोविंद के घर से। वे 25 साल से ठेले पर भजिया-पकौड़ी बेचकर अपने 5 बच्चों को पाल रहे थे। एक कमरे के में सात लोगों का परिवार रहता था। इसी एक कमरे में पूरा संसार बसता था। कमरे के एक कोने में गैस रखी थी। गोविंद चाट-पकौड़ी बेचकर दो बेटियों और तीन बेटों को पढ़ा रहे थे। घर में आर्थिक संकट था, पर उन्हें अपने पांचों बच्चों में हमेशा उम्मीद की रोशनी दिखाई देती रही। पिता की ये उम्मीद उस समय सच हो गई, जब उनकी बेटी दीपेश कुमारी यूपीएससी-2021 में 93वी रैंक हासिल कर IAS अफसर बन गई। सोचा जाए तो ये कोई फ़िल्मी कहानी जैसी बात है, पर है नहीं!
बेटी की कामयाबी पर गोविंद हर पिता की तरह खुश बहुत हुए, लेकिन उन्होंने अपनी खुद्दारी नहीं छोड़ी। बेटी IAS अफसर भले बन गई, पर उन्होंने चाट-पकौड़ी का ठेला लगाना नहीं छोड़ा। बच्चे की ऐसी सफलता के बाद हर माता-पिता सोचते हैं, कि अब उनके संकट की दिन ख़त्म हो गए। अब वे सारा काम छोड़कर आराम करेंगे, मगर गोविंद ने न तो बेटी के अफसर बनने पर घमंड किया और न अपना काम छोड़ा। बेटी के अफसर बनने के अगले दिन वे हमेशा की तरह अपना ठेला लेकर चाट बेचने निकल पड़े थे।
पांच भाई-बहनों में दीपेश कुमारी सबसे बड़ी हैं। वह पढ़ाई में होशियार रहीं। 10वीं तक की पढ़ाई भरतपुर शहर के शिशु आदर्श विद्या मंदिर से की 98% अंकों के साथ और 12वीं कक्षा 89% अंक से पास की। इसके बाद जोधपुर के एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की। उसके बाद आईआईटी मुंबई से एमटेक की पढ़ाई पूरी की। आईआईटी करने के बाद दीपेश ने एक साल निजी कंपनी में नौकरी की। दीपेश का एकेडमिक रिकॉर्ड बेहतरीन था, वह चाहती तों आसानी से लाखों की सैलरी वाली जॉब पा सकती थीं, लेकिन उनका सपना था सिविल सर्विसेज में जाने का, तो उन्होंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू की। यूपीएससी की तैयारी के लिए दीपेश ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। पहली कोशिश में दीपेश यूपीएससी परीक्षा पास नहीं कर सकी। इसके बाद मेहनत के बल पर दूसरे प्रयास में दीपेश को ऑल इंडिया में 93वीं रैंक मिली। उन्होंने ईडब्लूएस कैटेगरी में चौथी रैंक हासिल कर अपने परिवार का मान बढ़ाया।
परिवार में दीपेश अकेली इंटेलिजेंट नहीं है, सभी भाई-बहन भी उसी के जैसे हैं। दीपेश के दिखाए रास्ते का ही नतीजा था, कि बहन ममतेश की एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी हो चुकी। दो भाई अभी एमबीबीएस की पढ़ाई लातूर और एम्स गुवाहाटी से कर रहे हैं। तीसरे नंबर का भाई नंदकिशोर पिता के काम में हाथ बंटाता है। पिता गोविंद को अपनी बड़ी बेटी पर नाज है। उन्होंने मेहनत से बच्चों को पढ़ाया है। बड़ी बेटी दीपेश की पढ़ाई में लगन देखकर छोटे भाई बहन को भी प्रेरणा मिली। पिता बताते हैं कि दीपेश ने भाई-बहन की पढ़ाई पर अपनी नौकरी से मिले सारे पैसे को लगा दिए। भाई-बहनों ने भी उसका मान रखा और आज सभी अपने पैरों पर खड़े हैं।
दीपेश के पिता ने बेटी की सफलता के बाद कहा था कि इंसान को पुराने दिनों को कभी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई, लेकिन वे अभी भी चाट-पकौड़ी का ठेला लगाते हैं। छोटे से एक कमरे में सभी बच्चों ने अच्छी शिक्षा ली, उसके बाद बाहर चले गए। लेकिन, गोविंद प्रसाद आज भी उसी कमरे में रहते हैं और अपना काम कर रहे हैं।
सुरेश तिवारी
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