Kissa A IAS:अनाथालय से निकलकर बने चपरासी और अब IAS की कुर्सी पर!
फलता कभी हालात की मोहताज नहीं होती। गरीबी में भी यदि आपका जज्बा हो तो कोई सफलता आपसे दूर नहीं रहती। एक दिन ऐसा भी आता है, जब सारी दुनिया विपरीत परिस्थितियों में आपकी मेहनत से उपजी कामयाबी को सलाम करती है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो पहले ही प्रयास में और बेहद कम उम्र में यह उपलब्धि हासिल कर लेते हैं। इन्हीं होनहारों में से एक हैं मोहम्मद अली शिहाब जिन्होंने 2011 के यूपीएससी एग्जाम में 226 वीं रैंक हासिल की। जबकि, उनके संघर्ष की कहानी ऐसी नहीं थी कि वे IAS के शीर्ष पद पर पहुंचे! लेकिन, उनकी जिजीविषा उन्हें वहां तक ले आई।
ऐसी स्थिति में कई लोग असफलता को अपनी ख़राब किस्मत बताकर कोशिश करना छोड़ देते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जो हालातों के आगे डटकर खड़े रहते हैं और दुनिया को अपना लोहा मनवाते हैं। उन्हीं लोगों में से एक हैं मोहम्मद अली शिहाब। केरल के रहने वाले मोहम्मद शिहाब की कहानी हालातों के बीच एक उम्मीद का किरण है। आज शिहाब एक आईएएस ऑफिसर हैं। लेकिन, एक समय ऐसा था जब उन्हें 10 साल अनाथालय में रहना पड़ा था।
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मोहम्मद शिहाब का जन्म 15 मार्च 1980 में केरल के मलप्पुरम जिले में हुआ। उनका जीवन बेहद संघर्ष में गुजरा। उनके पिता का नाम कोरोट अली और उनकी मां का नाम फातिमा था। घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि शिहाब ने अपने पिता के साथ बांस की टोकरियां और पान बेचा करते थे। पर, यह सहारा भी उनसे तब छिन गया, जब शिहाब के पिता का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। पिता की मौत के बाद शिहाब पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई।
मां न तो पढ़ी-लिखी थी और न उन्हें कोई नौकरी मिलती, जिससे वे अपने बच्चों का पेट पाल सकें। गरीबी के कारण उनकी मां ने शिहाब और उनके भाई-बहनों को अनाथालय में छोड़ दिया। शिहाब के एक बड़ा भाई, एक बड़ी बहन और छोटी दो बहने हैं। शिहाब का बचपन काफी मुश्किल हालात में गुजरा है। लेकिन, यही वो जगह थी जिसने शिहाब का पूरा जीवन बदल दिया। अनाथालय में रहने के दौरान उनका ध्यान पढ़ाई की और गया और वे वहां के अन्य बच्चों से ज्यादा होशियार बनकर उभरे। वहां उन्हें जो पढ़ाया जाता उसे वो तुरंत समझ जाते। उन्होंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई अनाथालय में रहकर ही पूरी की।
10 साल तक अनाथालय में रहने के बाद वे घर लौटे और डिस्टेंस लर्निंग के जरिए पढ़ाई की। सरकारी नौकरी के लिए शिहाब अब तक 21 परीक्षाएं पास कर चुके हैं। वे साल 2004 में चपरासी, फिर रेलवे टिकट परीक्षक और जेल वार्डन के पद पर भी काम कर चुके हैं। शिहाब ने 25 साल की उम्र में सिविल सेवा की परीक्षा देने का सपना देखना शुरू किया था। शुरुआती दिनों से लेकर IAS बनने तक शिहाब के लिए जीवन आसान नहीं था।
सिविल सर्विस की पहली दो परीक्षाओं में शिहाब असफल रहे। पहली बार जब उन्होंने परीक्षा की तैयारी की, तो अंग्रेजी पर पकड़ अच्छी नहीं थी। इसके चलते उन्हें इंटरव्यू के दौरान ट्रांसलेटर की जरूरत पड़ी, ऐसे में भी उन्होंने 300 में से 201 अंक हासिल किए। लेकिन उन्होंने धैर्य बनाये रखा और थर्ड अटेम्प्ट दिया, जिसमें उन्हें सफलता मिली। अपनी मेहनत के साथ 2011 में 226 रैंक प्राप्त कर यूपीएससी में सफलता हासिल की। मोहम्मद शिहाब वर्तमान में नागालैंड कैडर के आईएएस ऑफिसर हैं।
सुरेश तिवारी
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