Kissa-A-IAS: IAS Dr Gaurav Kumar Singh: संवेदना, तकनीक और नेतृत्व से जनसेवा का नया अध्याय 

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Kissa-A-IAS: IAS Dr Gaurav Kumar Singh: संवेदना, तकनीक और नेतृत्व से जनसेवा का नया अध्याय 

सुरेश तिवारी 

डॉ. गौरव कुमार सिंह, 2013 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी, आज भारत के उन चुनिंदा प्रशासकों में गिने जाते हैं जिन्होंने अपनी प्रतिबद्धता, दूरदर्शिता और संवेदनशील प्रशासनिक दृष्टिकोण से शासन को जनता तक पहुंचाने का नया आयाम दिया है। वर्तमान में रायपुर जिले के कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी के रूप में कार्यरत डॉ. सिंह की कार्यशैली में दक्षता और मानवीयता का अद्भुत संतुलन झलकता है। उनकी पहचान एक ऐसे प्रशासक के रूप में है जो सिर्फ आदेश नहीं देता, बल्कि जनता के बीच जाकर समाधान निकालता है।

रायपुर, दंतेवाड़ा और सूरजपुर जैसे जिलों में उनके कार्यकाल ने विकास, शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक न्याय के कई नए मानक स्थापित किए हैं। वे उस पीढ़ी के अधिकारी हैं जो शासन को जन-भागीदारी से जोड़ने में विश्वास रखते हैं और समाज के हर वर्ग को सशक्त बनाने की दिशा में सक्रिय रहते हैं।

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उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले शिक्षक पिता की संतान गौरव सिंह ने पूरी स्कूलिंग हिंदी माध्यम से की। फिर एनआईटी व आईआईटी से ग्रेजुएशन के बाद पीएचडी भी की। हिंदी माध्यम से यूपीएससी क्रैक कर आईएएस बने और छत्तीसगढ़ कैडर में महत्वपूर्ण पोस्टिंग्स में रहें।

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गौरव सिंह का जन्म 1 जनवरी 1984 को उत्तरप्रदेश राज्य के हरदोई जिले के देवमनपुर गांव में हुआ। उनके पिता गांव से ही लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव के इंटर कॉलेज में अध्यापक थे। गौरव सिंह 7 भाई– बहन है। जिनमें चार बहन व तीन भाई है। सभी में गौरव सिंह सबसे छोटे व लाडले है। गौरव सिंह के एक भाई कोरोना में स्वर्गवासी हो गए। गौरव सिंह की माता भी उच्च शिक्षित हैं। वे गृहणी हैं।

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गौरव सिंह ने सरस्वती शिशु मंदिर गौसगंज से पांचवी तक पढ़ाई की। फिर उनके पिता जी का प्रमोशन प्रधानाचार्य के पद पर हुआ। तब पिता जिस स्कूल में प्रधानाचार्य थे वहां बारहवीं तक पढ़ाई की। गौरव सिंह ने अपनी सारी पढ़ाई हिंदी माध्यम से की है। यूपीएससी भी गौरव सिंह ने हिंदी माध्यम से दी थी। गौरव सिंह के पिता राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित शिक्षक है।

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बारहवीं कक्षा गौरव सिंह ने गणित, भौतिकी, व रसायन विषयों के साथ उत्तीर्ण की। फिर उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर एनआईटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेली कम्युनिकेशन ब्रांच से बीटेक किया। बीटेक के बाद गेट निकाल कर दिल्ली आईआईटी से एमटेक किया। एमटेक के दौरान जर्मनी की प्रतिष्ठित कंपनी की फेलोशिप भी मिली। एमटेक के बाद पीएचडी भी पूरी की। फिर यूपीएससी की तैयारी शुरू की।

हिंदी माध्यम से यूपीएससी देने वाले गौरव सिंह का मुख्य परीक्षा में वैकल्पिक विषय हिंदी साहित्य था। हिंदी साहित्य विषय की पढ़ाई गौरव सिंह ने मात्र लगभग 35 दिन में की। तीसरे प्रयास में गौरव सिंह का यूपीएससी में सिलेक्शन हुआ और वे IAS बने। 2012 में यूपीएससी में गौरव सिंह ने हिंदी साहित्य विषय में देश में सर्वाधिक नंबर प्राप्त किए थे।

गौरव सिंह की पहली फील्ड पोस्टिंग सहायक कलेक्टर के रूप में रायगढ़ में हुई। रायगढ़ के बाद महासमुंद जिले के सरायपाली में एसडीएम रहें। फिर दंतेवाड़ा जिला पंचायत सीईओ रहें।

दंतेवाड़ा में जिला पंचायत में करीबन ढ़ाई साल सीईओ रहने के दौरान उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार पर्यटन को लेकर काफी काम किया। महिला समूहों को रोजगार देने के लिए गवर्नमेंट फैक्ट्री खोली। नक्सल इलाके के बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार देने प्रदेश का पहला बीपीओ कॉल सेंटर खोला। पालनार को कैशलेश विलेज बनाया। नक्सली ग्रामों में प्रधानमंत्री आवास बनवाएं। नक्सल प्रभावित जिले में बेहतर काम के चलते गौरव सिंह को पीएम एक्सीलेंस अवार्ड सहित चार नेशनल अवार्ड भी मिले।

दंतेवाड़ा के बाद गौरव सिंह धमतरी, दुर्ग,रायपुर जिला पंचायत सीईओ भी रहें। सूरजपुर,मुंगेली, बालोद, जिले के कलेक्टर रहें। मुंगेली में 2 माह के छोटे कार्यकाल में ही 100 ग्रामों में चौपाल लगा जनता की समस्या सुलझाई। वर्तमान में गौरव सिंह राजधानी रायपुर के कलेक्टर हैं।

*रायपुर में प्रशासनिक नवाचार और सांस्कृतिक पुनरुत्थान*

वर्तमान में रायपुर के कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी के रूप में, डॉ. गौरव कुमार सिंह ने जिले में जनसेवा और सांस्कृतिक जीवन दोनों को नई ऊर्जा दी है।

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उन्होंने “रायपुर आर्ट सेंटर” की स्थापना कर शहर को सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में अग्रसर किया। यह केंद्र स्थानीय कलाकारों, शिल्पकारों और बच्चों के लिए सृजन और सीखने का एक जीवंत मंच बना। यहाँ कला, संगीत, नाटक, चित्रकला और पारंपरिक ‘गोदना’ जैसी लुप्त होती लोककलाओं को पुनर्जीवित करने का कार्य किया गया। इस पहल ने न केवल संस्कृति को बल दिया, बल्कि स्थानीय कलाकारों के लिए रोजगार का अवसर भी सृजित किया।

यह केंद्र शहर के पुस्तकालय से जुड़कर छात्रों और युवाओं के लिए अध्ययन व सृजन दोनों का एक साझा मंच बना, जिससे रायपुर में सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना को नई दिशा मिली।

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**कलेक्टर की पाती: मतदाता जागरूकता की अभिनव पहल**

लोकतांत्रिक चेतना को सशक्त बनाने हेतु 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान डॉ. गौरव कुमार सिंह ने एक अनूठा अभियान शुरू किया- ‘कलेक्टर की पाती’।

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इस पहल में उन्होंने 3,000 से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के माध्यम से स्वयं लिखित व्यक्तिगत पत्र जनता तक पहुंचाए। हर पत्र के साथ पारंपरिक तिलक लगाया गया, जो सम्मान और जुड़ाव का प्रतीक था।

इस “पाती” के माध्यम से उन्होंने नागरिकों को मतदान को केवल अधिकार नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय कर्तव्य के रूप में निभाने का संदेश दिया। डॉ. सिंह ने स्वयं वरिष्ठ नागरिकों और सामाजिक नेताओं को जाकर यह पाती सौंपी- यह पहल बाद में पूरे राज्य में एक मिसाल बनी।

**युवा सशक्तिकरण और शिक्षा उन्मुख पहलें**

सूरजपुर जिले में कलेक्टर रहते हुए डॉ. गौरव कुमार सिंह ने ‘भविष्य दृष्टि- युवा सृष्टि’ कार्यक्रम की शुरुआत की।

इस अभियान के तहत वे स्वयं स्कूल और कॉलेजों में जाकर छात्रों से संवाद करते, उन्हें करियर-निर्देशन और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी से जोड़ते।

इस पहल से हजारों छात्रों को प्रेरणा मिली और शिक्षा व्यवस्था में प्रशासन की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित हुई।

यह कार्यक्रम केवल परीक्षा तक सीमित नहीं था- यह युवाओं को आत्मविश्वास, मार्गदर्शन और प्रेरणा देने का एक सतत प्रयास था।

**समाज के प्रति समर्पण और संकट प्रबंधन की दक्षता**

डॉ. गौरव कुमार सिंह का कार्यकाल केवल योजनाओं तक सीमित नहीं रहा।

उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान रायपुर जिले में राहत और पुनर्वास कार्यों का उत्कृष्ट प्रबंधन किया।

मजदूर वर्ग, गरीब तबकों और जरूरतमंदों तक भोजन, दवा और आश्रय की सुविधाएं पहुँचाने में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा।

**राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और सम्मान**

उनकी कार्यशैली ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। डॉ. गौरव कुमार सिंह को विभिन्न अवसरों पर राष्ट्रीय स्तर के चार पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

वे “भारत के टॉप 24 आईएएस अधिकारियों” की सम्मान सूची में भी शामिल हैं- जो देशभर में परिवर्तन करी प्रशासनिक नेतृत्व के प्रतीक माने जाते हैं।

उनकी सोच “सुशासन केवल शासन नहीं, बल्कि समाज से साझेदारी है” इस विचार को व्यवहार में उतारने की मिसाल प्रस्तुत करती है।

चाहे रायपुर का सांस्कृतिक पुनरुत्थान हो, दंतेवाड़ा में आर्थिक आत्मनिर्भरता की शुरुआत हो या युवा सशक्तिकरण की दिशा में शिक्षा सुधार, हर क्षेत्र में उनका दृष्टिकोण ठोस परिणाम देने वाला रहा है।

वे आज के दौर के उन प्रशासकों में हैं जिनकी कार्यशैली “लोगों तक पहुँचने” की भावना से प्रेरित है, न कि “लोगों पर शासन करने” की सोच से।

डॉ. गौरव कुमार सिंह की यात्रा प्रशासनिक सेवा की उस नई दिशा को दर्शाती है जहां संवेदना, तकनीक और नेतृत्व तीनों मिलकर जनकल्याण का सशक्त मॉडल बनाते हैं।