Kissa-A-IAS: डकैतों के इलाके से निकला एक IAS

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Kissa-A-IAS: डकैतों के इलाके से निकला एक IAS

ये एक ऐसे IAS अधिकारी के जीवन का किस्सा है, जिन्होंने अपने करियर में कई मोड़ देखे। प्रदेश के सबसे ज्यादा दस्यु प्रभावित गांव में बचपन बीता,Sales Tax Inspector के रूप में करियर शुरू किया, पर नौकरी के चरित्र को देखते हुए उसे छोड़कर वकालात करने लगे।

Kissa-A-IAS: डकैतों के इलाके से निकला एक IAS

एक वकील दोस्त के दबाव डालने पर फिर MPPSC दी और डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन हो गया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन, उनके बचपन का शुरूआती समय डाकुओं की दहशत में बीता। उस समय समृद्ध परिवार के इकलौते बेटे होने कारण चंबल इलाके में अपहरण का भी भय व्याप्त रहता था।
हम बात कर रहे हैं ग्वालियर संभाग के कमिश्नर के रूप में रिटायर हुए बीएम शर्मा की।

वे मध्यप्रदेश में ऐसे IAS अधिकारी रहे हैं, जिनका जन्म मुरैना जिले के सबसे ज्यादा डकैत प्रभावित गांव में हुआ। जिले के छोटे से गांव में जन्मे बीएम शर्मा का घर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर था। कहने को यह गांव 35 किलोमीटर दूर था, पर रास्ते में एक बड़ी नदी आने के कारण ग्वालियर से घूम कर आना पड़ता था। वो 70 का दशक था और यहां दस्यु समस्या चरम पर थी। उन दिनों थानों में न तो ज्यादा बल रहता था और न आवागमन के लिए वाहन संसाधन उपलब्ध थे। थानों का बल साइकिल से भ्रमण करता था।

इसके विपरीत डाकुओं के दल अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत थे। इस कारण मोहर सिंह एवं माधों सिंह जैसे दस्यु दल का सामना करने से पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी परहेज करते थे।

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इस IAS अधिकारी ने भी बचपन में कई बार ऐसी ही परिस्थितियों के बीच इन डाकुओं को खुलेआम घूमते देखा है। कई बार तो दिन में ही डकैती हो जाया करती थी।

बीएम शर्मा ने बताया कि हमारा परिवार क्षेत्र में सबसे समृद्ध माना जाता था। वे घर में इकलौते पुत्र थे, इसलिए उनके अपहरण की खबरें बार-बार आती थी। अपहरण भी यहाँ डकैती जैसा ही अपराध है। इन खतरनाक परिस्थितियों से निकालकर उनके पिता उन्हें गांव से निकालकर मुरैना शहर में ले आए, ताकि उनकी पढ़ाई ठीक से हो सके। इस वजह से वे 7 साल की उम्र तक ही गांव में रहे। उन दिनों गांव में मात्र प्राइमरी तक ही स्कूल था। जहां वे पहली और दूसरी कक्षा टाटपट्टी पर बैठकर पढ़े। मिडिल स्कूल वहां से 5 किलोमीटर दूर था।

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मुरैना आने पर स्कूल टीचर उम्र के हिसाब से उन्हें दूसरी कक्षा में ही प्रवेश के लिए तैयार हुए, किंतु पिताजी का कहना था कि दूसरी तो वे गांव में उत्तीर्ण करके आए हैं, इसलिए उन्हें तीसरी कक्षा में ही प्रवेश देना होगा। फिर उम्र चाहे जो हो लिख लो। नतीजा ये हुआ कि अध्यापक ने स्कूल में एक साल बढ़ाकर उम्र लिख दी, इस कारण वो हमेशा एक साल बड़े बने रहे और इसलिए शासकीय सेवा में भी अपनी वास्तविक उम्र से एक साल पहले सेवानिवृत्त हो गए।

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बीएम शर्मा अपने गांव के पहले छात्र थे, जिसने आठवीं कक्षा पास की। इसके बाद मुरैना कॉलेज में बीएससी करने के बाद उन्होंने एमएससी में प्रवेश लिया। लेकिन, प्रवेश लेने के बाद ही मस्तिष्क में कई तरह के तर्क-वितर्क होने लगे। अंततः उन्होंने फैसला किया और एमएससी छोड़कर एलएलबी में प्रवेश ले लिया।

एलएलबी की अंतिम वर्ष की परीक्षा के साथ ही एमपी-पीएससी दी और सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर के पद पर चयन भी हो गया। नियुक्ति भी उज्जैन में मिली। लेकिन, सेवा के दौरान निरीक्षण के समय सेल टैक्स इंस्पेक्टर को व्यवसाई जिस भाव से देखते थे, उस कारण उनका इस सेवा से मोह टूट गया। एक साल जैसे-तैसे निकाला और फिर एक माह का वेतन जमा करके सेवा से त्यागपत्र दे दिया और घर लौटकर मुरैना के लीडिंग एडवोकेट कुलश्रेष्ठ साहब के अंडर में वकालत शुरू कर दी।

इसी बीच एक डेवलपमेंट यह हुआ कि एडवोकेट कुलश्रेष्ठ के पुत्र, जो एमएससी एलएलबी कर चुके थे, पीएससी देना चाहते थे और उनका पुरजोर आग्रह था कि मैं भी उनके साथ पीएससी दूं, हालांकि मैं वकालत ही करना चाहता था लेकिन शायद विधि को यह मंजूर नहीं था और मैं कुलश्रेष्ठ साहब के पुत्र को मना नहीं कर सका और एक बार फिर पीएससी में अपीयर हुआ।

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इस बार की पीएससी परीक्षा को लेकर एक रोचक किस्सा है।जब मैं बार बार मना करने लगा तो कुलश्रेष्ठ साहब के बेटे ने कहा कि हम दोनों एमपी-पीएससी देते हैं। यदि दोनों सिलेक्ट हुए तो ज्वाइन करेंगे, नहीं तो दोनों वकालत ही करेंगे। दोनों दोस्तों ने तैयारी की और एमपी-पीएससी की परीक्षा दी। संयोग से दोनों का चयन हो गया। बीएम शर्मा डिप्टी कलेक्टर चुने गए और कुलश्रेष्ठ डीएसपी के पद पर चयनित हुए। 1985 में दोनों ने सेवा प्रारंभ की। बाद में कुलश्रेष्ठ भी 2020 में IG पद से सेवानिवृत्त हुए।

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सेवा के दौरान राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में सागर, रीवा में एसडीएम और डिप्टी कमिश्नर, गोहद,अशोक नगर में एसडीएम, उज्जैन में संयुक्त संचालक लोक शिक्षण, इंदौर और ग्वालियर में एडीएम, संयुक्त आयुक्त भू अभिलेख, डिप्टी कमिश्नर ट्रांसपोर्ट, कुछ समय के लिए उप प्रशासक राजधानी परियोजना भोपाल और नियंत्रक नाप तौल, 2002 में IAS अवार्ड होने के बाद सीईओ जिला पंचायत छिंदवाड़ा, कलेक्टर धार, कलेक्टर उज्जैन, एमडी मार्कफेड, कमिश्नर शहडोल, कमिश्नर ग्वालियर और कई बार आबकारी आयुक्त का अतिरिक्त कार्यभार संभाला।

2019 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के OSD बनने का मौका मिला लेकिन यह कार्य उन्हें रास नहीं आया और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अपने सफलतम कैरियर के बाद अब वे ग्वालियर में परिवार के साथ लाइफ को एंजॉय कर रहे हैं।

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बीएम शर्मा का कहना है कि 34 साल के सेवाकाल में कई बार पद बदले, प्रतिष्ठा को परिवर्तित होते हुए देखा। लोगों द्वारा दिया सम्मान घटते-बढ़ते देखा। लेकिन, उनका मानना था कि परिवर्तन संसार की प्रकृति है। सत्य तो केवल ईश्वर है।