समाज में सिविल सेवा की परीक्षा को लेकर एक धारणा है कि इसे पास करने वाले लोग कुछ अलग होते हैं। जो युवक-युवतियां UPSC क्लियर करते हैं, वो बचपन से ही अलग परिवेश में पले-बढे होते हैं और बेहद प्रतिभाशाली भी होते हैं। लेकिन, कुछ मामलों में ये धारणा गलत भी साबित हुई! अब अभाव में पले बच्चे और औसत एकेडमिक रिकॉर्ड वाले परीक्षार्थी भी IAS और IPS बनते हैं। आज भी ऐसी ही एक प्रतिभा से मुलाकात कीजिए, जिनका एकेडमिक रिकॉर्ड बहुत उजला नहीं रहा, पर उन्होंने UPSC की दौड़ में अपने आपको अव्वल रखा!
ये है 10वीं और 12वीं में फेल हुई अंजू शर्मा की प्रेरणास्पद कहानी। हर साल लाखों बच्चे IAS बनने का सपना संजोते हैं। लेकिन, उनमें से चंद ही अपना सपना साकार करने में समर्थ रहते हैं। अंजू शर्मा भी उनमें से एक है, जिन्होंने अपनी असफलताओं से सबक लेते हुए UPSC में सफलता पाई! उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे 10वीं में केमिस्ट्री के प्री-बोर्ड एग्जाम में फेल हो गई थी। दूसरे सभी विषयों में उन्हें बहुत अच्छे नंबर मिले, पर कैमेस्ट्री दगा दे गई थी। इसके बाद वे 12वीं में भी इकोनॉमिक्स के पेपर में भी फेल हो गई थीं। इसके बाद उनको बहुत हताशा हुई और लगा कि वे जीवन में शायद ही कुछ बड़ा काम कर सकें! लेकिन, इस दौरान अंजू की मां ने उनको हौंसला दिया। इस घटना से अंजू शर्मा ने भी सबक लिया कि अंतिम समय की पढ़ाई पर निर्भर रहकर अच्छे नंबर नहीं हासिल किए जा सकते!
उन्होंने जयपुर से बीएससी की और उसके बाद MBA की डिग्री ली। कॉलेज तक आते-आते अंजू ने अपनी सफलताओं को काफी पीछे छोड़ दिया था। उसी का नतीजा था कि कॉलेज में उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। तब तक अंजू के दिमाग में आत्मविश्वास इतना प्रबल हो गया था कि उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी यह सोचकर की, कि इसे पास करना ही है। उनकी मेहनत काम आई और अंजू ने 22 साल की उम्र में पहले ही अटेम्प्ट में UPSC क्लियर कर ली।
जीवन की दो असफलताओं के कठिन समय में अंजू शर्मा की मां ने उसे सांत्वना दी और प्रेरित किया। इसलिए उन्होंने शुरू से ही कॉलेज परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। इस रणनीति की वजह से अंजू शर्मा को पहले प्रयास में UPSC पास करने में मदद मिली। उन्होंने अपना सिलेबस पहले से ही पूरा कर लिया था और IAS Toppers की सूची में शामिल हुई।
अंजू शर्मा ने कहा कि कोई भी आपको असफलताओं के लिए नहीं, बल्कि केवल सफलता के लिए याद करता है। हालांकि, उनका मानना है कि उनके जीवन की इन दो घटनाओं ने उनके भविष्य को सही आकार दिया।
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उन्होंने कहा था कि प्री-बोर्ड के दौरान, मेरे पास पढ़ने के लिए बहुत सारे चैप्टर्स थे और रात के खाने के बाद मुझे पढाई शुरू करना होती थी। तब मैं घबराने लगी थी, क्योंकि मैंने कुछ तैयार नहीं किया था। मुझे पता था कि मैं फेल होने वाली थी। मेरे आस-पास के सभी लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि 10वीं कक्षा का प्रदर्शन कितना महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह हमारे हायर स्टडीज की दिशा को निर्धारित करता है।
अंजू शर्मा ने को गुजरात कैडर मिला और 1991 में राजकोट में सहायक कलेक्टर के रूप में अपना करियर शुरू किया। वे वर्तमान में सरकारी शिक्षा विभाग (उच्च और तकनीकी शिक्षा), सचिवालय, गांधीनगर में प्रधान सचिव हैं। उन्होंने गांधीनगर में जिला कलेक्टर और उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार में विभिन्न पदों पर कार्य किया। वे NRHM में भी काम कर चुकी हैं।