KISSA-A-IAS: Unique Example Of Success: साइकिल की पंचर बनाने से IAS बनने का सफर!
यूपीएससी क्रैक करने वालों के बारे में लोग दो तरह के कमेंट करते हैं। एक, ऐसे लोग बहुत इंटेलिजेंट होते हैं। दूसरा, इनकी किस्मत अच्छी होती है! अब किस्मत अच्छी होने का तो दावा नहीं किया जा सकता, पर ऐसे लोग इंटेलिजेंट तो होते हैं। वे किसी भी हालात में अपना शुरूआती जीवन शुरू करें, पर उनकी प्रतिभा छुपी नहीं रहती! लगता है कि ऐसे लोगों की ईश्वर भी परीक्षा लेता है कि वे संघर्ष से कैसे निखरते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी वरुण बरनवाल की है, जिन्होंने पढ़ाई के लिए बहुत मुसीबत उठाई, पर जब वे संघर्ष के पारस पत्थर से निखरकर निकले तो सीधे UPSC क्रेक की और अब IAS अधिकारी हैं।
कुछ यूं रहा – साइकिल की पंचर बनाने से IAS बनने का सफर
वरुण के पास एक समय पढ़ाई के लिए एक भी रुपए नहीं थे। पर, अब वे IAS अधिकारी है। यह कोई चमत्कार नहीं, उनकी मेहनत का नतीजा है। वरुण बरनवाल कभी साइकिल की दुकान में काम करते थे और वहां पंचर सुधारते थे। पैसों की कमी और बिना किसी सुविधा के इस शख्स ने UPSC की परीक्षा पास की और लोगों को अपना टैलेंट दिखा दिया। वरुण बरनवाल महाराष्ट्र के बोइसार शहर के रहने वाले हैं। उन्होंने 2013 में यूपीएससी की परीक्षा में 32वां स्थान पाया था। लेकिन, इनकी कहानी आम लोगों जैसी नहीं है। उनकी जिंदगी में उनकी मां, दोस्त और रिश्तेदारों का भी अहम रोल रहा।
उनकी जिंदगी में एक समय ऐसा भी आया था, जब उनको साइकिल की दुकान पर काम करना पड़ा था। पढ़ने का बहुत मन था, लगन थी पर पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। 10वीं की पढ़ाई के बाद मन बना लिया था कि अब पढाई छोड़कर साइकिल की दुकान पर काम ही करूंगा। इसलिए कि पढ़ाई के लिए पैसे जुटाना मुश्किल लग रहा था। पर, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 2006 में 10वीं की परीक्षा दी, परीक्षा के तीन दिन बाद ही पिता का निधन हो गया। इसके बाद उन्होंने सोच लिया था कि अब पढ़ाई छोड़ दूंगा। लेकिन, जब 10वीं का रिजल्ट आया तो वरुण ने स्कूल में टॉप किया। उनके घर वालों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और सपोर्ट किया। मां ने कहा कि हम सब काम करेंगे, तू पढ़ाई कर। 11वीं और 12वीं मेरे जीवन के सबसे कठिन साल रहे। मैं सुबह 6 बजे उठकर स्कूल जाता, उसके बाद 2 से रात 10 बजे तक ट्यूशन लेता था और उसके बाद दुकान पर हिसाब करता था।
पढ़ाने में इन लोगों ने मदद दी
10वीं के लिए उनके घर के पास एक ही अच्छा स्कूल था। लेकिन, उसमें एडमिशन के लिए 10 हजार का डोनेशन लगता था। मैंने मां से कहा कि रहने दो पैसे नहीं हैं, मैं एक साल रुक जाता हूं। अगले साल दाखिला लूंगा। लेकिन, अचानक एक ऐसी घटना हो गई जिसने रास्ता आसान कर दिया। वरुण के पिता का जो डॉक्टर इलाज करते थे, वे हमारी दुकान के बाहर से जा रहे थे। उन्होंने मुझसे सारी बात पूछी और तुरंत 10 हजार रुपए निकालकर दे दिए और कहा जाओ दाखिला करवा लो।
कभी पढ़ाई पर नहीं खर्चा एक रुपया
वरुण मानते कुछ संयोग रहा कि मैंने कभी अपनी पढ़ाई पर एक रूपया भी खर्च नहीं किया। कोई न कोई फरिश्ता मेरी किताबों, फॉर्म, फीस भर दिया करता था। मेरी शुरुआती फीस तो डॉक्टर ने भर दी, इसके बाद टेंशन ये थी कि स्कूल की हर महीने की फीस कैसे दूंगा। सोच लिया था कि अच्छे से पढ़ाई करूंगा और फिर स्कूल के प्रिंसिपल से रिक्वेस्ट करूंगा कि मेरी फीस माफ कर दें। हुआ भी यही। घर की स्थिति देखते हुए मेरे दो साल की पूरी फीस मेरे टीचर ने दे दी।
इंजीनियिरिंग में पहले साल की 1 लाख रुपये फीस उनकी मां ने भर दी। इसके बाद फिर वही हुआ। बाकी सालों की फीस कैसे भरें। उन्होंने फिर से सोचा मैं अच्छे से पढ़ाई करुंगा, जिसके बाद कॉलेज के टीचर से रिक्वेस्ट करूंगा। उन्होंने बताया मैंने 86% अंक हासिल किए जो कॉलेज का रिकॉर्ड था। उसके बाद एक टीचर की नजर में आया और उन्होंने मेरी सिफारिश प्रोफेसर, डीन, डायरेक्टर से की। हालांकि, सेकंड ईयर तक मेरी बात उन तक नहीं पहुंची, जिसके बाद फीस मेरे दोस्तों ने दी।
UPSC की तैयारी ऐसे की
इंजीनियरिंग के बाद उनकी प्लेसमेंट तो अच्छी जगह हो गई थी। काफी कंपनियों के नौकरी के ऑफर उनके पास थे। लेकिन, जब तक सिविल सर्विसेज परीक्षा देने का मन बना लिया था। लेकिन, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि मैं तैयारी कैसे करनी है। इसके बाद उनकी मदद उनके भाई ने की। उन्होंने बताया कि जब यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा का रिजल्ट आया तो मैंने भाई से पूछा कि मेरी रैंक कितनी आई है! इसके बाद उन्होंने कहा 32, ये सुनकर वरुण की आंखों में आंसू आ गए थे। उन्हें यकीन था कि अगर मेहनत और लगन सच्ची हो तो बिना पैसों के भी आप दुनिया का हर मुकाम हासिल कर सकते हैं। दरअसल, वरुण बरनवाल उनके लिए मिसाल हैं, जो संघर्ष से आगे बढ़ते हैं।
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वरुण को 2013 में IAS अवार्ड होने के बाद गुजरात कैडर मिला। वे राजकोट में रीजनल कमिश्नर ऑफ म्युनिसिपल रहे और वर्तमान में बनासकांठा जिले में बतौर कलेक्टर पदस्थ हैं।
उनके इस संघर्ष भरे सफर की कहानी इस्पात मंत्रालय ने भी एक फिल्म के माध्यम से दर्शाई है।