Kissa-A-IAS:’NTA’ Enquiry : ‘हाई लेवल कमेटी’ के IAS सचिव के संघर्ष की दास्तान
पेपर लीक की लगातार घटती घटनाओं से ‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ (एनटीए) संकट में घिरती नजर आ रही है। शिक्षा मंत्रालय ने एजेंसी के डायरेक्टर जनरल को हटाकर एजेंसी के कामकाज और पेपर लीक मामले की जांच के लिए एक ‘हाई लेवल कमेटी’ की घोषणा की है। ख़ास बात यह कि इस कमेटी का सदस्य सचिव जिस IAS अधिकारी गोविंद जायसवाल को बनाया गया है, वे भी मुसीबत से निकलकर ऊंचाई तक पहुंचे हैं। उनके जिम्मे मामले की जांच करके सच्चाई सामने लाना है। कमेटी के सचिव के तौर पर IAS गोविंद जायसवाल चर्चा में हैं। इसलिए कि वे कामकाज में बेहद सख्त हैं। शिक्षा मंत्रालय में बतौर ज्वाइंट सेक्रेटरी (उच्च शिक्षा) कार्यरत इस अधिकारी ने कमेटी में अपनी नियुक्ति के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि पेपर से छेड़छाड़ की गई है। इसलिए हमने एग्जाम कैंसिल किया और मामले को सीबीआई को रेफर कर दिया। शिक्षा मंत्रालय अब कोई भी कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगी।
इस सख्त मिजाज IAS अफसर का नाम हैं गोविंद जायसवाल। वे वाराणसी के रहने वाले हैं और बेहद गरीबी के हालात और समाज के तानों से लड़ते हुए IAS अधिकारी बने हैं। उनकी मंजिल आसान नहीं थी, लेकिन उन्होंने और उनके परिवार ने हर मुश्किल का सामना किया। सबसे बड़ी चुनौती थी, उनके घर के आर्थिक हालात, जिन्होंने कदम-कदम पर उनका रास्ता रोका। फिर भी गोविंद ने सभी मुश्किलों का सामना करते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया। आज इस ‘हाई लेवल कमेटी’ में उन्हें शामिल किया जाना उनकी मेहनत का ही नतीजा है। उनके पिता रिक्शा चलाते थे। आर्थिक संकट के दौर में उन्होंने बेटे की हरसंभव मदद की और आज उनकी मेहनत सामने है।
गोविंद जायसवाल ने बचपन से ही जलालत झेली और लोगों के ताने सुने। उसी का नतीजा है कि उन्होंने सबको जवाब देने के लिए IAS बनने की ठानी और आज वे उसी ऊंचाई पर हैं। जब गोविंद 11 साल के थे, उनके एक दोस्त के घर से उन्हें बेइज्जत करके निकाल दिया गया था। क्योंकि, घर वालों को आपत्ति थी कि उनके बेटे ने किसी रिक्शा वाले के बेटे को दोस्त क्यों बनाया। दूसरी बार उन्होंने अपमान तब झेला जब पड़ोस के लोगों ने उन्हें किताबों में डूबे देखा, तो सलाह दी कि क्यों पढ़ाई में लगे हो, पिता की तरह तुम्हें चलाना तो रिक्शा ही है।
अपने साथ घटी इन दोनों घटनाओं को गोविंद ने दिल से लगा लिया। दोस्त की घर हुई बेइज्जती और रिक्शा चलाने की सलाह मिलने के बाद उन्हें समझ में आ गया कि जब तक वो अपने हालात नहीं बदलेंगे,उसे हर मोड़ पर इसी तरह के अपमान के घूंट पीने पड़ेंगे। उसने अपने कुछ दोस्तों से पूछा कि ऐसी कौन सी नौकरी है, जिसे सबसे ऊंचा माना जाता है? जवाब मिला, IAS की नौकरी। बस उस लड़के ने ठान लिया कि राह में भले ही कितनी मुश्किलें क्यों ना आएं, वो IAS अधिकारी बनकर रहेगा।
गोविंद जायसवाल के पिता नारायण रिक्शा चलाकर अपने परिवार का गुजारा करते थे। गोविंद के अलावा नारायण की तीन बेटियां भी थीं। आर्थिक हालात खराब होने के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकने दी। तीनों बेटियों के ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने इन्हीं रिक्शों से होने वाली मामूली कमाई से अपनी तीनों बेटियों की शादी की। अब परिवार की उम्मीदें केवल गोविंद पर टिकी थीं। उधर गोविंद भी अपने लक्ष्य को हासिल करने की तैयारी में पूरी शिद्दत से लग गए। वाराणसी में रहकर तैयारी करने के दौरान पिता ने जब देखा कि एक कमरे के घर में उनका बेटा अपनी पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पा रहा है, तो उन्होंने उसे यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली भेज दिया।
दिल्ली आकर गोविंद ने जहां एक तरफ अपनी तैयारी जारी रखी, तो वहीं दूसरी तरफ आर्थिक खर्चे पूरे करने के लिए बच्चों को गणित का ट्यूशन देने लगे। गोविंद के पास कभी-कभी स्थिति ऐसी भी आती थी कि पैसों की कमी की वजह से वो एक वक्त का खाना भी छोड़ देते थे। जब दिक्कतें बढ़ीं तो उनके पिता ने गांव में अपनी जमीन का एक हिस्सा बेच दिया। गोविंद पूरे मन से अपनी तैयारी में लगे थे, लेकिन अभी शायद उनके सामने मुश्किलों का दौर और लंबा चलना था
उनके दिल्ली रहने के दौरान पिता की तबीयत खराब हो गई और उन्हें रिक्शा चलाना बंद करना पड़ा। ऐसे में गोविंद के सामने संकट खड़ा हो गया। तैयारी बीच में छोड़कर वो घर नहीं लौट सकते थे। क्योंकि, ऐसा करने से पूरा परिवार निराश हो जाता। उनके पास कोई जमा-पूंजी भी नहीं थी, जिससे वो कोई छोटा-मोटा काम शुरू कर सकें। इसी उधेड़बुन में लगे गोविंद ने तय किया वो अपनी तैयारी जारी रखेंगे और साल 2006 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी। अपने पहले ही प्रयास में गोविंद को 48 वीं रैंक हासिल हुई।
IAS अधिकारी बनने के बाद अपने पहले वेतन से गोविंद ने पिता के घायल पैर का इलाज कराया। गोविंद बताते हैं कि अगर आप सफल होना चाहते हैं तो कभी भी अपनी परिस्थितियों के आधार पर अपने लिए लक्ष्य तय मत कीजिए। अगर वो एक रिक्शा चलाने वाले के बेटे होकर IAS अधिकारी बन सकते हैं, तो फिर कोई भी ये सपना देख सकता है। महज 22 साल की उम्र में आईएएस अधिकारी बनने वाले गोविंद जायसवाल को अब शिक्षा मंत्रालय की हाई लेवल कमेटी का सदस्य सचिव बनाया गया है। गोविंद जयसवाल 2007 बैच के आईएएस हैं जिन्हें एजीएमयूटी कैडर मिला है। वे केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी (उच्च शिक्षा) पदस्थ है।
गोविंद आज भी वाराणसी के अलईपुरा में किराए की खोली को लकी मानते हैं। उन्होंने अभी भी उसे खाली नहीं किया। क्योंकि, इसी खोली से उनके संघर्ष की शुरुआत हुई थी। वे आज भी 1200 रुपए किराया मकान मालिक को भेजते हैं। उनका सामान, बेड, अलमारी आज भी वही रखा है। लेकिन, उन्होंने IAS बनकर पिता नारायण का सपना पूरा किया और 2012 -13 में एक मकान बृज एन्क्लेव में उन्हें दिया। लेकिन, गोविंद का परिवार आज भी किराए के मकान का किराया लकी मानकर भरता है, जहां पिता और गोविंद ने बचपन काटा था।