

Kissa-A-IPS : IPS Vidita Dagar: ‘बेटी की पेटी’ जैसे अनूठे प्रयोग करने वाली MP की पहली IPS अधिकारी
हर साल संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में कई परीक्षार्थी अफसर बनकर निकलते हैं। योग्यता के मुताबिक कुछ IAS बनते हैं, कुछ IPS और उसके बाद परीक्षार्थी उन्हें मिले अंकों के आधार पर अलग-अलग सेवाओं के लिए चुने जाते हैं। लेकिन, इनमें से चंद ही ऐसे अफसर बनते हैं, जो अपने काम, जिम्मेदारी और समर्पण से जनता के दिलों में जगह बनाते हैं। क्योंकि, UPSC के जरिये चुने गए इन अफसरों का मुख्य कर्तव्य जनता की सेवा करना ही होता है। इन अफसरों में भी जिन अफसरों के कामकाज का तरीका सबसे ज्यादा नजर में आता है, वो है IAS और IPS।
कारण कि इन दोनों कैटेगरी के अफसरों का जनता से सीधा जुड़ाव होता है, इसलिए उनकी लोकप्रियता का पैमाना भी जनता की पसंद से ही तय होता है। ऐसी ही एक IPS अफसर हैं विदिता डागर, जिनकी कार्यशैली ही उन्हें जनता में लोकप्रिय बनाती है। अपने कुछ ही सालों के कार्यकाल में वे जहां भी रही, उन्होंने कुछ नए प्रयोग किये। उनका ‘बेटी की पेटी’ का प्रयोग तो काफी पसंद किया गया, जो बेटियों की शिकायत पेटी है।
हरियाणा के नजफगढ़ इलाके की मध्यमवर्गीय परिवार की विदिता डागर सुरखपुर गांव की रहने वाली है। विदिता डागर ने संघ लोक सेवा आयोग की 2019 की परीक्षा में 315वीं रैंक हासिल की थी। विदिता अपनी इस सफलता का श्रेय माता-पिता को देती हैं, जिन्होंने इतना हौसला दिया कि वे IPS बन सकीं। विदिता के पिता को अपनी बेटी के संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उतीर्ण होने पर गर्व हुआ।
विदिता ने पहले ही प्रयास में UPSC जैसी कठिन परीक्षा पास की। उन्होंने कोई कोचिंग नहीं की और न कहीं से नोट्स खरीदे। ज्यादा किताबें भी नहीं पढ़ी, सिर्फ एनसीईआरटी की पुस्तकों, कुछ पत्रिकाओं और अखबारों को कोर्स की किताब की तरह पढ़ा, जिससे उनका सामान्य ज्ञान तो बढ़ा ही, अन्य घटनाक्रम भी नजर में रहे। वे आठ से दस घंटे रोज पढ़ाई करती, जो पढ़ती उसे बार-बार दोहराती थी, ताकि वह विषय और जानकारी पर उनका ध्यान केंद्रित रहे।
विदिता बेहद सामान्य परिवार की है। उनके पिता दिल्ली ट्रांस्को लिमिटेड में ड्राइवर रहे। उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कोई कोताही नहीं बरती और हमेशा उन्हें हर तरह से सहयोग दिया, यही वजह है कि वे आज इस मुकाम पर पहुंच सकी। उनकी बड़ी बहन ने भी रोहतक से एमबीबीएस किया है। उनका छोटे भाई ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की।
उनका पालन पोषण ग्रामीण परिवेश में सीमित संसाधनों में हुआ। लेकिन, पिता ने कभी किसी तरह की कमी नहीं होने दी। 10वीं तक की पढ़ाई देव पब्लिक स्कूल नजफगढ़ से की उसके बाद 11वीं और 12वीं की पढ़ाई नजफगढ़ के होली क्रास स्कूल से की। दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। मुखर्जी नगर में रहकर ज्योग्राफी वैकल्पिक विषय से संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी की। उन्हें मध्यप्रदेश कैडर मिला है और फिलहाल वे छतरपुर जिले में एडिशनल एसपी पदस्थ हैं।
विदिता डागर की खासियत है कि वे जहां भी पदस्थ रही, उन्होंने जनता से जुड़कर काम किया और हमेशा जनता को इस बात का एहसास कराया कि वे उनके साथ है। उनके इस प्रयास का असर यह हुआ कि जनता ने भी उन्हें अपना समझकर उनका सहयोग किया। सामान्यतः पुलिस अफसरों का जनता से इस तरह का संपर्क कम ही रहता है। लेकिन, विदिता ने इसी दूरी को कम किया और इसका उन्हें अच्छा परिणाम भी मिला।
*’बेटी की पेटी’ का अनोखा प्रयोग*
जब वे सतना जिले के नागौद में एसडीओपी थी, तब विदिता डागर ने बेटियों के लिए ‘बेटी की पेटी’ की प्रयोग की शुरूआत की। इस पेटी के जरिए बेटियां अपनी समस्याएं लिखकर प्रशासन को बता सकती थी। इसका मकसद बेटियों की सुरक्षा की नई शुरुआत थी। उन्होंने महिला दिवस के अवसर पर सीएम राइस स्कूल में ‘बेटी की पेटी’ लगवाई थी। उनका मानना था कि इससे महिलाएं और लड़कियां बिना थाने में जाए ‘बेटी की पेटी’ में चिट्ठी डालकर शिकायत कर सकेंगी। IPS विदिता डागर ने महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध घटित अपराधों की रोकथाम के लिए यह किया, जिसके अच्छे परिणाम भी सामने आए।
उन्होंने समय-समय पर जन जागरूकता शिविर लगाकर यह समझाने का काम भी किया कि अपराधों को रोकना है, तो सामने आना होगा। विदिता डागर द्वारा बताया गया की बालिकाओं व महिलाओं की सुरक्षा के दृष्टि से ‘बेटी को पेटी’ की अनूठी पहल की गई थी। इस पहल से महिलाओं और बच्चियों के प्रति बढ़ते हुए अपराधों में भी कमी आएगी व महिलाएं भय मुक्त होकर अपना जीवन यापन कर सकेंगी जिससे जनता का पुलिस के प्रति विश्वास का भाव जागृत होगा।
*एक रूप यह भी है इस IPS का*
विदिता डागर जहां भी तैनात रहती है, अपने कानून व्यवस्था के कर्तव्य के अलावा भी सामाजिक सरोकारों से जुड़ी रही हैं। पर्यावरण को लेकर भी वे बेहद सजग हैं और अक्सर वृक्षारोपण के कार्य करती हैं। साथ ही गरीब बच्चों की पढ़ाई को लेकर भी वे मदद करती हैं। जब वे प्रोबेशन पीरियड में पनिहार थाने में पदस्थ थी, जब उनका वहां से तबादला हुआ तो लोगों ने विदाई कार्यक्रम में उन्हें तोहफे दिए। लेकिन, उन्होंने यह कहते हुए सारे तोहफे लौटा दिए कि विदाई में हज़ारों रुपए खर्च करने से अच्छा है कि ये पैसा असहाय बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किया जाए। विदिता डागर ने कहा था कि विदाई में दिखावा करने से अच्छा है कि आदिवासी बच्चों को स्कूल बैग, कॉपी और किताबें दी जाए। यह कहते हुए उन्होंने सारे तोहफे लौटा दिए थे।