Kissa-A-IPS:Tribal Woman: सिपाही से IPS अफसर का सफर
ये शीर्षक अविश्वसनीय लग सकता है, सिपाही से IPS बनने की बात शायद सही न लगे, पर यह सच्चाई है। देश में शायद ही ऐसा कोई और उदाहरण होगा?वह भी ऐसी उपलब्धि जब कोई आदिवासी महिला ने हासिल की हो!
सरोजिनी लकड़ा के जीवन की कहानी बाकी से बहुत अलग है। रांची पुलिस में 37 साल पहले कांस्टेबल से पुलिस की नौकरी की शुरुआत करने वाली इस आदिवासी महिला ने IPS की प्रतिष्ठित रैंक हासिल की। उन्होंने खेल में अपनी प्रतिभा दिखाकर सिपाही से IPS तक का सफर तय किया है। सरोजनी लकड़ा संयुक्त बिहार के समय पुलिस की नौकरी में आई थी। प्रमोशन पाकर वे IPS बन गई।
सरोजनी खेल में प्रतिभा के बल पर दिसंबर 1986 में बिहार पुलिस में सिपाही के पद पर आई थीं। इसके बाद उन्होंने एथलीट में शानदार प्रदर्शन किया। इसे देखते हुए उन्हें आउट ऑफ टर्म प्रमोशन देकर 1991 में सीधे इंस्पेक्टर बना दिया गया। 2008 में इन्हें इंस्पेक्टर से डीएसपी में पदोन्नति दी गई। 2019 में वे ASP की कुर्सी तक पहुंची। इसके बाद प्रमोट होकर IPS बन गई। सरोजनी अपने समय की ऑलराउंडर एथलीट थीं। दौड़, हाई जंप, लांग जंप और हेप्टाथलॉन में दर्जनों पदक जीत राज्य व देश का नाम रोशन किया। सरोजनी वायरलेस डिपार्टमेंट में प्रभारी एसपी और खेल विभाग में बतौर निदेशक सेवा दे रही हैं। वे एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) में भी अपनी सेवाएं दे रही हैं।
आदिवासी परिवार से आने वाली सरोजिनी का इस ऊंचाई तक पहुंचना किसी प्रेरणा से कम नहीं है। उनकी फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी दिल को छू जाती है। झारखंड राज्य में 158 IPS के पद हैं, जिसमें 110 पद UPSC से रिक्रूट होते हैं। वहीं, 48 पदों पर राज्य पुलिस सेवा के पदाधिकारी प्रोन्नत होकर IPS सेवा में शामिल होते हैं। सरोजिनी लकड़ा उन IPS अफसरों में से एक है।
सरोजिनी की असाधारण खेल उपलब्धियों ने उनका पुलिस में आने का रास्ता खोला था। वे अपने एथलीट पावर से खेल कोटा के जरिए सिपाही की नौकरी में आई थी। कांस्टेबल बनने के बाद भी वे खेल गतिविधियों में आगे बढ़ती रहीं। सरोजिनी 100 मीटर बाधा दौड़, 100×400 मीटर रिले, ऊंची कूद, लंबी कूद और हेप्टाथलॉन जैसे कई खेलों में माहिर हैं। इन खेलों की मदद से उन्होंने कई पदक जीते अपने नाम किए हैं और साथ में प्रशंसा भी पाई।
सरोजिनी लकड़ा का जन्म बेहद गरीब आदिवासी परिवार में हुआ। यहां तक कि जीवन चलाने के लिए भी भी इस परिवार को संघर्ष करना पड़ता था। ऐसे परिवार की सरोजिनी की खेल में दिलचस्पी जागी। इसलिए कि उनमें एथलीट पावर और प्रतिभा थी। खान-पान और संसाधनों की कमी के बावजूद वे खेल को लेकर अपना पैशन फॉलो करती रही। कोई भी परेशानी उन्हें खेलों में आगे बढ़ने से नहीं रोक सकी। बचपन में वे रोज 5 किलोमीटर नंगे पैर स्कूल जाती थीं। उन्हें चलने से ज्यादा भागना बेहतर समझा और नियमित रूप से अपनी एथलेटिक पावर दिखाते हुए खेलों में मेडल भी जीते। खेलों में उन्हें मिले कैश प्राइज से उनके परिवार को गाय खरीदने में मदद मिली जिससे उनके परिवार को गुजारा करने में आसानी हुई।
सरोजिनी के जीवन में असल मोड़ तब आया, जब वे जाने-माने कोच रॉबर्ट किस्पोट्टा की नजर में आई! उन्होंने सरोजिनी लकड़ा की एथलीट पावर को पहचाना और उन्हें आगे बढ़ाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी खेल अकादमी में सरोजिनी को रखा और उनके खेल कौशल को निखारने पर काम किया। साथ ही उन्हें भोजन और आवास की सुविधा भी प्रदान की। कोच किस्पोट्टा के निर्देशन में सरोजिनी ने विभिन्न खेल आयोजनों में अपने जिले और झारखंड राज्य का प्रतिनिधित्व किया और कई पदक जीते।
सरोजिनी ने सार्वजनिक सुरक्षा के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता की राज्य पुलिस की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। उनका पुलिस की नौकरी का सफर भारतीय पुलिस सेवा में औपचारिक रूप से शामिल होने के साथ ही नई ऊंचाई पर पहुंच गया। वे पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्यरत हैं। सरोजिनी लकड़ा की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, पर डटे हुए हैं। साधारण शुरुआत से IPS पद तक का पहुंचना उनका समर्पण दर्शाता है। सरोजिनी की कहानी कई लोगों के लिए उदाहरण है, जो सपनों को पूरा करना चाहते हैं।