जानिए क्या है अग्निपथ स्कीम और इज़राइल ,अमेरिका सहित किन देशों में लागू है इस तरह की योजना

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सरकार ने 14 जून को अग्निपथ योजना शुरू करने की घोषणा की थी। इसमें 4 साल में युवाओं की सशस्त्र बलों में भर्ती होगी। योजना के तहत चुने गए युवाओं को ‘अग्निवीर’ का सम्मान दिया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा इस योजना की घोषणा करने के बाद से ही पूरे देश में विरोध का माहौल है।

भारतीय सेना में भर्ती को लेकर अब तक का सबसे बड़ा बदलाव हुआ है। अग्निपथ योजना के तहत इस साल युवाओं को सशस्त्र बल में शामिल किया जाना है। युवाओं की भर्ती 4 साल के लिए होगी और उन्हें अग्निवीर कहा जाएगा। यह 30,000 से 40,000 प्रति माह का वेतन मिलेगा और उनकी उम्र 17 से 21 वर्ष के बीच होगी।
इस योजना का अर्थ यह भी है कि भर्ती हुए 25 फ़ीसदी युवाओं को आगे सेना में मौका मिलेगा और बाकी 75 फीसदी को नौकरी छोड़नी पड़ेगी।

आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में अब अग्निपथ स्कीम के तहत अग्निवीर की भर्ती होगी। ये सैनिक होंगे, लेकिन इनका रैंक मौजूदा रैंक से अलग होगा और ये अग्निवीर ही कहलाएंगे। ये अग्निवीर आर्मी, नेवी या एयरफोर्स में चार साल के लिए रहेंगे। इन अग्निवीरों में से ही अधिकतम 25 पर्सेंट को फिर बाद में परमानेंट होने का मौका दिया जाएगा।
90 दिनों में आर्मी में भर्ती के लिए पहली रिक्रूटमेंट रैली हो जाएगी। पहले चरण में आर्मी के लिए 40 हजार, नेवी के लिए 3 हजार और एयरफोर्स के लिए 3 हजार 500 अग्निवीरों की भर्ती होगी।

केंद्रीय गृह मंत्रालय सहित कई राज्यों ने कहा है कि वे अपने बलों की भर्ती में ‘अग्निवीरों’ को वरीयता देंगे। इसके बावजूद इस योजना के खिलाफ कई राज्यों में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। बिहार सहित कई राज्यों में छात्र सड़क पर उतरे हैं और हिंसक प्रदर्शन किया है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि इस योजना को लेकर मिथ (भ्रांतियां) फैलाए जा रहे हैं। सूत्रों ने इस योजना के बारे में मिथ की जगह फैक्टस बताएं हैं और भ्रांतियां दूर करने की कोशिश की है।

सेना सोमवार तक अग्निपथ योजना के तहत भर्ती प्रक्रिया पर अधिसूचना जारी करेगी. सेना ने अग्निपथ योजना के तहत रंगरूटों का प्रशिक्षण दिसंबर तक शुरू करने का लक्ष्य रखा है. अग्निपथ योजना के तहत नामांकन पर प्रारंभिक अधिसूचना जारी होने के बाद, सेना की विभिन्न एजेंसियां भर्ती प्रक्रिया की जानकारी प्रदान करेंगी.

कई देशों में है छोटा सेवा कार्यकाल

अग्निवीरों के छोटे कार्यकाल से सेना पर असर पड़ने को लेकर भी चिंता जताई जा रही है, लेकिन सूत्रों ने बताया कि कई देशों में ऐसी ही जांची परखी व्यवस्था है। चार साल पूरे करने पर अग्निवीरों के प्रदर्शन को फिर परखा जाएगा और 25% को सेवा में रखा जाएगा। नई स्कीम से लंबे समय में युवा और अनुभवी सैनिकों का अनुपात 50-50% हो जाएगा।
इस प्रक्रिया के लिए इज़रायली पेटर्न अपनाया जा रहा है । ताकि भविष्य में गृहयुद्ध की स्थिति से निपटा जा सके

टूर ऑफ ड्यूटी क्या है?

इसकी शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई थी। तब ब्रिटेन में पायलट की कमी पड़ गई थी। ब्रिटिश सरकार ने उस दौरान टूर ऑफ ड्यूटी की शुरुआत की थी। इसके तहत युवाओं को एक निश्चित और सीमित समय के लिए वायुसेना में शामिल किया गया था।
उस वक्त शर्त रखी गई थी कि हर पायलट को दो साल में करीब 200 घंटे विमान उड़ाना है। ये प्रक्रिया सफल रही। इसके बाद कई देशों ने अपने यहां टूर ऑफ ड्यूटी अनिवार्य कर दिया। इसका मकसद ये है कि देश के ज्यादा से ज्यादा नौजवानों को सेना की ट्रेनिंग मिल सके। ताकि जरूरत पड़ने पर युवा देश की सेवा कर सकें।

दुनिया के किन-किन देशों में टूर ऑफ ड्यूटी का नियम है?

दुनिया में 30 से ज्यादा देश ऐसे हैं, जहां किसी न किसी तरह से टूर ऑफ ड्यूटी को लागू किया गया है। इनमें 10 देश ऐसे हैं, जहां पुरुष और महिलाओं दोनों को सेना में अनिवार्य रूप से सेवा देनी पड़ती है। इनमें चीन, इस्राइल, स्वीडन, यूक्रेन, नॉर्वे, उत्तर कोरिया, मोरक्को, केप वर्दे, चाड, इरित्रिया जैसे देश शामिल हैं।

इन देशों में भी अनिवार्य मिलिट्री ट्रेनिंग

ऑस्ट्रिया, अंगोला, डेनमार्क, मैक्सिको, ईरान जैसे 15 देशों में सिविलियन और मिलिट्री ट्रेनिंग अनिवार्य है। इसके अलावा 11 ऐसे देश हैं, जहां नागरिकों के पास मिलिट्री ट्रेनिंग का विकल्प होता है।

चीन, कुवैत, फ्रांस, सिंगापुर, माली, कोलंबिया, ताइवान, थाईलैंड जैसे 10 ऐसे देश हैं, जहां मिलिट्री में सेवा देना अनिवार्य और वालेंटियरी दोनों है:

इसराइल : यहां टूर ऑफ ड्यूटी के नियम सबसे सख्त माने जाते हैं। इसके अनुसार इसराइली सुरक्षा बल में देश के सभी पुरुषों को तीन और महिलाओं को दो साल की सेवा देनी पड़ती है। कुछ मामलों में छूट भी दी जाती है।

चीन : भारत के पड़ोसी देश चीन में भी लोगों को मिलिट्री में सेवा देना अनिवार्य है। ये टूर ऑफ ड्यूटी 18 से 22 साल उम्र के युवाओं के लिए होती है और इसकी सीमा दो साल तय की गई है। मकाऊ और हांग-कांग को इससे छूट दी गई है।