पत्रकारिता साहित्य का ज्ञान तीर्थ -माधवराव सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान
( डॉ. घनश्याम बटवाल , मंदसौर )
आज नहीं ,कल भी और इसके पहले बीते पल भी कहे – सुने – देखे की तुलना में छपे शब्दों का महत्व रहा है और यह शाश्वत रहेगा ।
वेदों , उपनिषदों , पुराणों , गीता , रामचरितमानस , महाभारत आदि आद्य ग्रंथों की रचना लिपिबद्ध है और करोड़ों – करोड़ों जन के मन में स्थापित है ।
कालांतर में समय बदला , व्यवहार बदले पर धर्म ग्रंथों का भाष्य लगभग स्थायी रहा , आज भी आदर्श और मानक स्वरूप में स्वीकार्य है । यही बात आदर्श और मानक स्तर की पत्रकारिता पर भी लागू है ।
इस विधा के संरक्षण , पोषण और संग्रहित विस्तारीकरण के साथ देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित माधवराव सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान माध्यम से अभूतपूर्व कार्य निरन्तरता के साथ चार दशकों से जारी है ।
यूं तो खबरपालिका को संविधान में पृथक से स्थान नहीं है पर प्रजातांत्रिक व्यवस्था में इसे जनमानस ने चौथा स्तंभ निरूपित किया है । सच भी है , पत्रकारिता का इतिहास पुराना है , मुगलों , ब्रिटिश राज में यह रहा पर वास्तविक रूप में 1857 के बाद से 1947 तक का कालखंड स्वर्णिम कहा जाता है । पत्रकारिता , साहित्य , लोक संस्कृति के स्वर जनमानस की आवाज़ बने और वर्तमान के 142 करोड़ देशवासी स्वतंत्र भारत में सांस लेरहे हैं ।
भूमिका जरूरी महसूस हुई क्योंकि आज़ादी हमें आसानी से नहीं त्याग और बलिदान से मिली और इसमें तत्कालीन पत्रकारिता और साहित्य का अतिमहत्वपूर्ण योगदान रहा है ।
इसके महत्व को रेखांकित करता है सप्रे संग्रहालय । यह अपनी तरह का देश में एकमात्र शोध संस्थान और संग्रहालय है । 1984 में स्थापित यह संस्थान आज संदर्भों और शोधकर्ताओं के लिए ज्ञान तीर्थ बन गया है । स्थापना की परिकल्पना और इसके सींचन में लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार संपादक पद्मश्री अलंकृत विजयदत्त श्रीधर का श्रम है , साथ ही तत्कालीन समय के मीडिया और लिटरेचर साथियों ने होंसला बढ़ाया , सहयोग किया परिणामस्वरूप आज यह संस्थान समृद्ध और संरक्षित स्वरूप में है ।
12 जून को ही इस ज्ञान तीर्थ में जाने का सुअवसर मिला , संस्थापक निदेशक श्री विजयदत्त श्रीधर से मिलना भी हुआ । स्थितप्रज्ञ मनीषी श्रीधर जी संग्रहालय में रोजाना की तरह सक्रिय और समर्पित नज़र आये
समकालीन कई साथी बिछुड़ गये , कई नये जुड़ गये और यह अनुष्ठान बराबर जारी है ।
मीडिया और लिटरेचर आज डिजिटल होगया है और बहुसंख्य स्मार्टफोन माध्यम से जुड़े हैं पर जब बात संदर्भों और प्रामाणिक स्त्रोतों की होगी अवश्य सप्रे संग्रहालय सामने होगा ।
🔸 संग्रहालय उद्देश्य
अखबारों , पत्र- पत्रिकाओं , संदर्भ ग्रंथों , पांडुलिपियों , दस्तावेजों का एकत्रीकरण और संरक्षण
मास कम्युनिकेशन , शिक्षण प्रशिक्षण , विज्ञान , पर्यावरण , प्रौद्योगिकी , वर्कशॉप , सेमिनार आदि कार्य के साथ शोधकर्ताओं का सहयोग शामिल है ।
इसका प्रदेश ही नहीं देश विदेश की यूनिवर्सिटी शोध छात्र , प्रोफेसर , मीडिया संस्थान , विज्ञान संचारक , लेखक लाभ लेरहे हैं ।
हिंदी ही नहीं संस्कृत , मराठी अंग्रेजी गुजराती उर्दू साहित्य के साथ इतिहास राजनीतिशास्त्र , समाजशास्त्र , कला संस्कृति , शिक्षा वाणिज्य के अलावा दुर्लभ संदर्भ सामग्री संग्रहित है
जो अपने आप में अद्वितीय है ।
यह संस्थान राष्ट्रीय बौद्धिक धरोहर के संग्रहण और संरक्षण के लिए जाना जाता है । पत्रकारिता और साहित्य के इतिहास से रूबरू होने का रोमांच यहां देख सकते हैं ।
🔸 संग्रहित ज्ञान कोष
एक शताब्दी से भी अधिक पुराने संदर्भ ग्रंथों और पुस्तकों के संसार में 1 लाख 66 हजार से अधिक का विपुल भंडार है ।
देश की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित 26 हजार से अधिक शीर्षक अखबार एवं पत्र- पत्रिकाएं सहेजी हुई हैं ।
यही नहीं कोई 3 हजार से अधिक मूल पांडुलिपियां , साढ़े पांच हजार से अधिक प्रमाणित संदर्भ फाइलें , नाम से जाने वाले साहित्यकारों , पत्रकारों , शिक्षाविदों और प्रमुख हस्ताक्षरों के कोई 25 हजार से अधिक पत्र व्यवहार की मूल प्रतियां संग्रहित हैं ।
कोई 200 से अधिक रेडियो , ग्रामोफ़ोन , कैमरे , टाइपराइटर आदि भी यहां देखे जासकते हैं ।
🔸 शोध संस्थान की मान्यता
विशाल और समृद्ध संग्रहालय को देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा शोध केंद्र के रूप में मान्यता प्रदान की है ।
विगत वर्षों में सप्रे संग्रहालय शोध संस्थान के माध्यम से देश विदेश के लगभग 1200 शोधार्थियों ने डी लिट् , पी एच डी और एम फिल उपाधि प्राप्त की है यह क्रम निरन्तर चल रहा है ।
🔸 दुर्लभ पांडुलिपियां
सन 1512 की श्रीमद्भागवत , 1724 की श्रीराम गीतावली , 1747 के अष्टक पद , 1799 की वेदार्थ प्रकाश , 1809 की वाजसनेय संहिता , 1841 की हस्तलिखित रामचरितमानस , 1847 की भावप्रकाश , 1854 की वैद्यरत्न व ब्रह्मसूत्र भाष्य संगीत प्रकीर्ण दामोदर आदि दुर्लभतम पांडुलिपियों को संरक्षित कर संग्रहित किया गया है ।
इसी प्रकार उन्नीसवीं शताब्दी के अखबारों , पत्रिकाओं का संग्रह भी उपलब्ध है ।
मंदसौर नीमच रतलाम उज्जैन इंदौर ही नहीं अन्य स्थानों के अखबारों की प्रतियां भी सहेजी हुई हैं आप स्वयं देख पढ़ सकते हैं ।
संग्रहालय और शोध संस्थान द्वारा 1981 से मासिक पत्रिका आंचलिक पत्रकार का प्रकाशन किया जारहा है । यह डिजिटल माध्यम से ऑनलाइन भी पढ़ सकते हैं
कहते हैं पुरखों के तर्पण को वर्तमान पीढ़ी का , पूर्वजों के प्रति पवित्र कर्तव्य माना जाता है । सनातन धर्म में इसे पितृऋण महत्ता बताई है ऐसे ही मनीषी पत्रकार संपादक हुए हैं जिनका विवरण नहीं होने से उनको याद करते हुए स्मृति वाटिका लगाई गई है यहां ।
🔸 महत्ता प्रतिपादन
अपने आप में विशिष्ट इस संस्थान में पहुंचे राष्ट्रपति डॉ शंकरदयाल शर्मा ने अंकित किया कि भोपाल इस बात पर गर्व कर सकता है कि ऐसा संग्रहालय यहां है ।
उपराष्ट्रपति श्री भैरोसिंह शेखावत ने इसमें संग्रहित और संकलित बुहुमूल्य सामग्री हमारी बौद्धिक विरासत की रोचक झांकी प्रस्तुत करती है ।
नईदुनिया और नवभारत टाइम्स संपादक श्री राजेन्द्र माथुर ने लिखा बीज जब अंकुरित होकर इतनी आशा जगा रहा है तो पेड़ बनने पर उपलब्धि निश्चय ही बहुत बड़ी होगी ।
यह आज सिद्ध भी होरहा है ।
ख्यातिप्राप्त संपादक श्री कमलेश्वर ने संग्रहालय विज़िट पर अंकित किया कि यह शब्दों और विचारों की विपुल संपदा का रक्षक है । यहां अतीत ही नहीं वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा भरा अद्भुत उपक्रम है ।
ओर भी देश विदेश के विशिष्ट जनों ने अभिमत अंकित किये हैं जो प्रदेश वासियों को गर्व से भर देते हैं ।
निश्चित ही आपकी पढ़ने – लिखने , जानने – समझने में तनिक भी रुचि है , और अपने साथ युवाओं को पत्रकारिता और साहित्य से
” ऐट ऐ ग्लान्स ” रूबरू कराना चाहते हैं तो अगले राजधानी भोपाल प्रवास पर माधवराव सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान विज़िट करना न भूलें ।
1984 में स्थापित 19 जून को सप्रे संग्रहालय स्थापना दिवस मना रहा है
स्वर्गीय श्री माधवराव सप्रे का जन्मदिन भी है । 1871 में जन्मे सप्रे जी देश के पहले पत्रकार रहे जिनपर ब्रिटिश शासन ने राजद्रोह में जेल भेजा । उनकी स्मृति को चिरंजीवी बनाने के लिए स्वतंत्रता सेनानी , लेखक , पत्रकार संपादक श्री माधवराव सप्रे के नाम संग्रहालय एवं शोध संस्थान की स्थापना की गई ।
स्मृति स्थापना दिवस कार्यक्रम में
संस्थापक निदेशक पद्मश्री श्रीधर जी की सदारत में जुड़ेंगे देश – प्रदेश के साहित्यकार , पत्रकार , लेखक और गणमान्य जन ।
बौद्धिक भी होगा और सम्मान समारोह भी ।
बधाई इस विरासत के शिल्पी श्री विजयदत्त श्रीधर जी ।