संत शिरोमणि रविदास जी, माघ पूर्णिमा पर 16 फरवरी को मध्यप्रदेश में आपकी जयंती धूमधाम से मनाई गई है। हर पंचायत स्तर पर मनाई गई है। प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान यद्यपि कोरोना पीड़ित होने की वजह से मर्यादा का पालन करते हुए राज्य स्तरीय कार्यक्रम में भौतिक रूप से शामिल नहीं हो सके, लेकिन वर्चुअली कार्यक्रम से जुड़कर उन्होंने आपका स्मरण किया। नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सागर में आपको याद किया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने कटनी में आपकी जयंती मनाई।
तो सभी मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों और दलों के पदाधिकारियों ने अपने-अपने क्षेत्र में संत रविदास के प्रति श्रद्धा से शीश झुकाया। आपके लोक कल्याणकारी जीवन पर प्रकाश डाला। आपकी शिक्षाओं पर अमल करने, जातिगत-सामाजिक भेदभाव, छुआछूत, द्वेष, घृणा, असमानता जैसी बुराईयों को खत्म करने का संकल्प लिया। यह आपके परोपकार का ही प्रतिफल है कि समाज के सजग प्रहरी, दिशानिर्देशक और जन-जन के मन को टटोलकर नीतियां बनाने वाले जनप्रतिनिधि दलीय भावना से ऊपर उठकर आपके गुणों को अंगीकार करने को लालायित हैं और आपके प्रति श्रद्धा से भरे हुए हैं।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि राजनीतिक दल होने के नाते एक बड़े वर्ग से उम्मीद भी है, लेकिन अच्छी बात यह है कि वर्ग विशेष की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कसौटी पर सफल होने का प्रमाण भी दे रहे हैं।आपने आध्यात्मिक वचनों से सारे संसार को आत्मज्ञान, एकता, भाईचारा पर जोर दिया। आपकी महिमा को देख कई राजा और रानियाँ शरण में आकर भक्ति मार्ग से जुड़े। जीवन भर समाज में फैली कुरीति जैसे जात-पात के अन्त के लिए काम किया। और 21 वीं सदी के 22वें साल में पूरा भारत देश जिस शिद्दत से आपके प्रति श्रद्धावनत है, उससे कहीं न कहीं मन को राहत है कि सोच बदलेगी, वक्त बदलेगा और समाज बदलेगा।
गुरू रविदास का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। उनके पिता रग्घु तथा माता का नाम घुरविनिया था। वह जूते बनाने का काम किया करते थे। अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी थे। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी लोना को अपने घर से भगा दिया। पर संत रविदास का संतत्व का भाव नहीं बदला।
वर्तमान समय के लिए संत रविदास की यह शिक्षा सर्वाधिक प्रभावशाली है कि उन्होंने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।
आज भी सन्त रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। संत रैदास के ४० पद गुरु ग्रन्थ साहब में मिलते हैं जिसका सम्पादन गुरु अर्जुन साहिब ने १६ वीं सदी में किया था।
रामानन्द और कबीर का सान्निध्य पाकर दुनिया को राह दिखाने वाले श्रेष्ठ संत रविदास जी आप पूर्णिमा के दिन जन्मे थे और पूर्णिमा के चांद की तरह ही दिलों में घिरे अज्ञानता के अंधेरों को खत्म करने के लिए ज्ञान की रोशनी हमेशा बिखेरते रहना। काशी में ही जन्मे और संवत 1540 में काशी में ही देह त्यागने वाले संत रविदास दिन में रवि बनकर और रात में पूर्णिमा का चांद बनकर रोशनी के पर्याय बने रहना। ताकि मन चंगा तो कठौती में गंगा का भाव हर व्यक्ति को जीवन की राह दिखाता रहे।