
कृष्ण आनंद का महासागर हैं…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कृष्ण संपूर्णता का पर्याय हैं। कृष्ण के जीवन में जो उतरा या कृष्ण को जिसने भी जीवन में उतारा, उसे किसी और सहारे की जरूरत नहीं रही। बंदीगृह में जन्मे, महलों में रहे और जंगल में देह त्यागी यानी जीवन के हर पथ पर संघर्ष करते हुए जिनके चारों तरफ आनंद ही आनंद की बरसात होती रही, ऐसे कृष्ण की बराबरी कोई नहीं कर सकता। इसीलिए कृष्ण को आनंद का संन्यासी माना जाता है।
ओशो ने कहा है कि कृष्ण एक ऐसे संन्यासी हैं जो धर्म की गहराइयों और ऊंचाइयों पर होने के बावजूद गंभीर, उदास या दुखी नहीं हैं। वे आनंद और उत्सव के साथ जीवन जीते हैं, जो उनके संन्यास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। ओशो के अनुसार, कृष्ण का संन्यास दुख या निराशा से नहीं, बल्कि आनंद और परमानंद से उपजा है। यह एक ऐसा संन्यास है जो जीवन को पूरी तरह से स्वीकार करता है और उसे एक उत्सव की तरह जीने की बात करता है। कृष्ण का संन्यास, दुख से भागने के बजाय, जीवन के रस और आनंद को जीने का एक तरीका है।
ओशो ने लिखा है कि-
कृष्ण एक पहेली हैं।
कृष्ण एक विरोधाभास हैं।
कृष्ण संन्यास भी हैं और संसार भी।
कृष्ण ध्यान भी हैं और प्रेम भी।
कृष्ण गीता के गंभीर श्लोक भी हैं और बांसुरी की मस्ती भी।
कृष्ण युद्ध के मैदान में भी हैं और रासलीला में भी।
और यही उनकी महानता है।
यही उनका रहस्य है।
यही उन्हें सबसे अनूठा बनाता है।
“कृष्ण आनंद के संन्यासी हैं!”
यह वाक्य ही संन्यास की परिभाषा को बदल देता है। क्योंकि आज तक संन्यासी का अर्थ त्याग से जोड़ा गया था, तपस्या से जोड़ा गया था, गंभीरता से जोड़ा गया था।
लेकिन कृष्ण तो नाचते हुए संन्यासी हैं।
वे हँसते हुए, खेलते हुए, प्रेम करते हुए, युद्ध करते हुए भी संन्यास में हैं।
उनके लिए संन्यास कोई बोझ नहीं, बल्कि सहजता है।
कृष्ण जानते हैं कि जीवन एक खेल है।
“जो इस खेल को खेल की तरह जी ले, वही कृष्ण की तरह जी सकता है!” कृष्ण कुछ छोड़ने को नहीं कहते। कृष्ण कहते हैं—”बस जागो!”
“अगर तुम जाग गए, तो कुछ छोड़ने की जरूरत नहीं। तब संसार तुम्हारे लिए बंधन नहीं रहेगा। तब संसार तुम्हें जकड़ेगा नहीं।” सार यही है कि धर्म को गंभीरता की जरूरत नहीं, उत्सव की जरूरत है। संन्यास त्याग में नहीं, बल्कि जागरूकता में है। जीवन को खेल की तरह जियो, तभी वह सुंदर होगा। प्रेम करो, लेकिन बिना अधिकार के, बिना डर के। तब ध्यान और आनंद दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।
हालांकि यह कहना आसान है लेकिन यह डगर बहुत कठिन है। अच्छे-अच्छे योगी, महायोगी, संत, महंत, सिद्ध बस कृष्ण में डुबकी लगाने में लीन हैं और कृष्ण पकड़ में आ जाएं तो जीवन आनंद से भर जाता है। और कृष्ण तो आनंद का महासागर हैं जितना उनमें डूबते हैं उससे ज्यादा वह बाकी मालूम पड़ते हैं।
पर मध्य प्रदेश के संदर्भ में वर्तमान में एक बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव कृष्ण के इसी आनंद में डूबकर हर दिन को उत्सव की तरह जीने को चरितार्थ कर रहे हैं। 16 अगस्त 2025 को मुख्यमंत्री निवास में कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। डॉ. यादव ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण हमें जीवन की कठिनाइयों में भी मुस्कुराना सिखाते हैं, जिनको कोई तृष्णा नहीं, उनका नाम ही श्रीकृष्णा है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन अनेक कष्ट और संघर्षों से भरा रहा, फिर भी वे अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं हुए। उनका जीवन हम सभी के लिए सदैव प्रेरणादायी है। उन्होंने एक ओर जहां कालिया नाग को काबू में करके उसके फन पर नृत्य कर जीवन के कठिन से कठिन समय में मुस्कुराना सिखाया, वहीं दूसरी ओर कंस जैसे दुराचारी और अत्याचारी को उसके घर में मारकर साहस और वीरता के लिए प्रेरित किया। अत्याचारों के विरूद्ध उनकी वीरोचित भूमिका आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव पाथेय रहेगी।
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के भीषण युद्ध के बीच कर्मवाद के सिद्धांत से बताया कि चाहे कैसी भी विकट परिस्थिति हो, हमें बुद्धि और धैर्य का परिचय देते हुए सदैव कर्म और धर्म के सद्मार्ग पर अडिग रहना चाहिए।
अपने भाषणों में अक्सर डॉ. मोहन यादव यह कहते नजर आते हैं कि यही तो आनंद है, आनंद के साथ सब काम करना चाहिए। उनकी सरकार कृष्ण से जुड़े विचारों पर केंद्रित योजनाओं को मूर्त रूप दे रही है। घर-घर गोकुल, घर-घर गोपाल ही मोहन सरकार का ध्येय है। और विरासत के साथ विकास की कड़ी में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश में ‘कृष्ण पाथेय’ की शुरुआत की है। सरकार मध्य प्रदेश में कृष्ण से जुड़े सभी स्थानों को भव्यतम रूप देकर तीर्थ के रूप में विकसित कर रही है। जहां पहुंचकर कृष्ण के सभी भक्त कृष्ण से एकाकार हो सकेंगे…आनंद के महासागर में डुबकी लगा सकेंगे। तो यही चाह है कि कृष्ण सबके जीवन को आनंद से सराबोर करें…।





