रण में कूदे राजा-महाराजा और प्रवक्ताओं ने छेड़ा युद्ध राग …

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जब से पार्टियां अलग-अलग हुई थीं, तब से यह तय था कि राजा-महाराजा रण में कूदे बिना नहीं मानेंगे। संभव भी नहीं था क्योंकि महाराजा जहां भी रहे हैं, वहां अपनी सौ फीसदी क्षमता का उपयोग करते हैं। और अब जब दल एक थे, तब तक उम्र में कम होने के लिहाज से महाराजा ने राजा के सम्मान में भी कोई कमी नहीं रहने दी। अब जब दलीय प्रतिबद्धताएं अलग-अलग हुईं तो फिर महाराजा के लिए यह जरूरी था कि राजा के गढ़ में घुसकर सीधी चुनौती दें।
और उन्होंने किया भी यही। चुनौती भी दी लेकिन मर्यादा भी रखी कि राजा का नाम अपनी जुबान पर नहीं लाए। पर राजा के लिए इतना ही काफी था। और उन्होंने चुनौती का जवाब भी दिया और “गद्दार” शब्दभेदी बाण चलाकर महाराजा पर निशाना साध दिया। फिर क्या था पार्टी प्रवक्ताओं ने युद्ध राग छेड़ दिया। पहले महाराजा के दल के प्रवक्ता ने मय तथ्यों के यह बात रखी कि “गद्दार” तो राजा के पूर्वज ही हैं।
तब राजा के दल के प्रवक्ता ने महाराजा के प्रवक्ता पर ही निशाना लगा दिया कि वह तो राजनीति में राजा के घुटने से नीचे भी नहीं ठहरते। राजा पर आरोप लगाने की काबिलियत वह नहीं रखते, यदि आरोप लगाना है तो प्रधानमंत्री मोदी लगाएं, संघ चालक मोहन भागवत लगाएं या फिर मुख्यमंत्री माननीय शिवराज लगाएं…तब राजा जवाब देंगे। अब जवाब दें या नहीं, लेकिन राजा को पहली बार भाजपा से सीधी चुनौती मिली है।
रण में कूदे राजा-महाराजा और प्रवक्ताओं ने छेड़ा युद्ध राग ...
पहले तो महाराजा ने उनके गढ़ में घुसकर बिना नाम लिए ही उन्हें इतना उकसाया कि वह रण में कूदे बिना नहीं रह पाए। शायद यह भाजपा की रणनीति का ही हिस्सा था। जिसमें वह सफल भी रही। और जब राजा रण में कूद गए और अपना युद्ध कौशल दिखाकर ताकत का लोहा मनवाने की कोशिश की, तो ईंट का जवाब पत्थर से देते हुए “गद्दार” शब्दभेदी बाण को वापस राजा की तरफ लौटाकर भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि महाराजा कमल पर विराजकर अब राजा की किसी चाल में नहीं फंसेंगे बल्कि राजा की चाल से उन्हें ही मात देकर साबित कर देंगे कि उनकी ताकत पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ चुकी है।
वैसे अब लग रहा है कि जिस तरह राजा रामधुन गाकर हाल ही में प्रदेश में खुद को गांधी का अनुयायी बता रहे थे और उन्होंने भाजपा के हिंदुत्ववादी मुखर नेता और पूर्व प्रोटेम स्पीकर को यह जताने की कोशिश की थी कि वह हिंसक मंसूबों का जवाब अहिंसक तरीके से रामधुन गाकर देंगे। हालिया “गद्दार वार” ने यह साबित करने की कोशिश की है कि राजा के गढ़ में जाकर महाराजा ने उनकी असली परीक्षा ले ही ली है।
और यह भी साबित कर दिया है कि महाराजा के साथ परंपरागत अस्त्र-शस्त्रों से युद्ध नहीं जीता जा सकता। उसके लिए तो आधुनिकतम तकनीक और अस्त्र-शस्त्रों का सहारा लेना पड़ेगा, जिसमें महाराजा का मुकाबला कर पाना राजा के लिए बहुत अधिक चुनौतीपूर्ण होगा। वैसे भी महाराजा युवा हैं और अधिक ऊर्जा के साथ मुकाबला करने में सक्षम हैं। और पहले कई मौकों पर राजा खुद ही उम्र में छोटे महाराजा को यशस्वी होने का आशीर्वाद दे चुके हैं।
ऐसे में लगता है कि अब वही आशीर्वाद महाराजा को फल रहा है और राजा भी दिया हुआ आशीर्वाद वापस नहीं ले सकते सो स्थितियां साफ हैं। परिस्थितियां गवाही दे रही हैं कि महाराजा के ऊपर लगाए जाते रहे दाग भी अब राजा की तरफ शिफ्ट हो सकते हैं। और अब महाराजा के संग कमल दल है, इसलिए हाथ के पंजे से मुकाबला कर पाना फिलहाल राजा के लिए बहुत संभव नहीं माना जा सकता।
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एक नजर डालते हैं अब तक के घटनाक्रम पर। 4 दिसंबर को सिंधिया राघौगढ़ में थे। सिंधिया की मौजूदगी में दिग्गी के करीबी हीरेन्द्र सिंह ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार राघोगढ़ पहुंचे थे। सिंधिया ने कहा है कुछ लोग हैं, जिनका काम हर अवसर में चुनौती ढूंढना है।
जबकि भाजपा का काम चुनौतियों में अवसर ढूंढना है। केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने कहा कि उनकी सोच और विचारधारा बिल्कुल स्पष्ट है। उन्हें राजनीति से मोह नहीं है। सेवाभाव, प्रगति से उन्हें मोह है। विकास के साथ उन्हें ललक है। उन्होंने कहा कि अभी तक तो वह संकोच में राघोगढ़ नहीं आते थे, लेकिन अब बार-बार यहां आएंगे। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि एक तरह हम हैं, जिनका कहना है कि प्राण जाएं पर वचन न जाएं। वहीं एक पार्टी का कहना है कि वचन तो जाए पर प्राण न जाएं। सिंधिया ने निशाना साधा लेकिन बिना नाम लिए।
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इसके बाद दिग्विजय सिंह ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि एक व्यक्ति गद्दारी करता है, तो उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी गद्दारी करती है। वह मधुसूदनगढ़ में कार्यक्रम में पहुंचे थे। कांग्रेस की सरकार तो बन गई थी। सिंधिया जी चले गए छोड़कर और 25-25 करोड़ रुपए ले गए एक-एक विधायक का। कांग्रेस के साथ गद्दारी कर गए, इसका मैं क्या करूं। किसने सोचा था। जनता ने तो कांग्रेस की सरकार बनवा दी थी। इतिहास इस बात का साक्षी है। एक व्यक्ति गद्दारी करता है, तो उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी गद्दारी पे गद्दारी करती है। तो भाई, सोच समझ के गद्दारी करना।
दिग्विजय सिंह के गद्दारी वाले बयान पर  सियासत गरमाई। और भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी और दुर्गेश केसवानी ने 16 सितंबर 1939 को लिखा दिग्विजय सिंह के पिता राजा बलभद्र सिंह का पत्र  पेश कर दावा किया कि दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में पुरातत्व विभाग की प्रदर्शनी में  भी अवलोकन के लिए पत्र रखा गया था। पत्र में अंग्रेजों की भक्ति करने का जिक्र है। इन्होंने विंदुवार जानकारी भी दी और आरोप लगाया कि श्रीमान दिग्विजय सिंह जी आपके परिवार के ग़द्दारी से इतिहास भरा हुआ है। चुनौती भी दी कि साहस है तो पांच विंदुओं में पूछे गए सवालों के उत्तर दें।
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तब कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने मोर्चा संभाला और दिग्विजय सिंह जी के परिवार का पत्र जारी करने और दिग्विजय सिंह जी पर आरोप लगाने पर पलटवार किया कि पंकज चतुर्वेदी एक साल पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में गए हैं उन्हें बीजेपी से राजनीतिक सर्टिफिकेट लेना है। पंकज चतुर्वेदी का कद दिग्विजय सिंह जी के घुटने से भी नीचे है। दिग्विजय सिंह जी पर हमला करना है तो सीधा मोहन भागवत करें।
तो राजा-महाराजा के बीच अभी रण की शुरुआत हुई है। अब तक सब मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के दायरे में था। अब लक्ष्मण रेखा पार हो चुकी है। आगे-आगे देखिए होता है क्या? महाराजा-राजा रण में कूदे तो प्रवक्ताओं ने युद्ध राग छेड़ दिया है। अब असल संग्राम होगा तब मध्यप्रदेश की राजनीति के आसमान पर काले बादल जरूर मंडराएंगे और साक्षी भी बनेंगे विजय और पराजय के।