

Labour Day-परिचर्चा : क्या आधुनिक युग में महिलायें घरेलू कार्यों में शारीरिक श्रम नहीं करती !
भारत अभी भी महिलाओं को आर्थिक क्षेत्र में समान अवसर प्रदान करने के लिये निरंतर संघर्ष कर रहा है। भारत में प्रचलित सामाजिक मानदंडों के तहत महिलाओं से परिवार और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी लेने की अपेक्षा की जाती है। यह रुढ़िवादिता महिलाओं की श्रम शक्ति को और घरेलू कामों को अर्थ व्यवस्था से नहीं जोड़ती। उनके लिए वे कार्य उनके दायित्व हैं। ऐसे में महिलाओं के पास उनके स्वयं के लिए कोई आर्थिक सम्बल नहीं होता। जिसके चलते वे अपनी क्षमता अनुरूप बाहरी कार्य भी करने लगी है ,पुराने समय में उन्हें हर कार्य अपने हाथों से करने होते थे जो अत्यधिक थका देनेवाले होते थे ,आज विज्ञान और तकनीक से कई घरेलू उपकरण आगये है जो महिलों के श्रम को बचाते ,इसके लिए यह कहा जाता है की अब वे शारीरिक श्रम नहीं करती ,आइये जानते है क्या सोचतें है लोग —
संयोजक – डॉ रूचि बागड़देव
1 .’घर के काम’ को जीडीपी में योगदान के रूप में नहीं देखा जाता है-डॉ .स्वाति तिवारी
यह सच है कि अब घरेलू कार्यों के लिए आधुनिक उपकरण आगये है ,इसलिए पहले जैसा श्रम नहीं करना पड़ता लेकिन महिलाओं के लिए घरेलू काम अब भी बहुत महत्वपूर्ण है, और वे इसे करती हैं, हालांकि, यह कहना कि वे अब श्रम नहीं करती हैं, सही नहीं है। घरेलू कामों में महिलाएं अभी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, खासकर देखभाल और बच्चों के पालन-पोषण में. इसके साथ ही वे अब घर के बाहर आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए भी कार्यरत हैं और इस समय तो महिलाएं सेना से लेकर पायलट ,डॉक्टर ,इंजिनियर ,वैज्ञानिक ,उद्योगपति सभी कुछ है तो उन्हें घरेलू कामों के लिए सहायिका या आधुनिक उपकरणों की मदद लेनी ही पड़ेगी क्योंकि समय भी बचाना होता है और एनर्जी भी। लेकिन वे कई बार दुहरे श्रम से गुजरती हैं। इसके साथ ही उन पर सामाजिक कार्यों का भी भार होता है.
‘घर के काम’ को जीडीपी में योगदान के रूप में नहीं देखा जाता है. यही नहीं, समाज घर के काम को वह अहमियत नहीं देता है जितनी नौकरी या व्यवसाय में किए गए काम को देता है.ऐसे में सवाल उठता है कि अगर महिलाएं ‘घर के काम’ छोड़कर नौकरी या व्यवसाय शुरू कर दें तो क्या होगा.
हाँ अब वे सिलबट्टे,कुएं से पानी लाना या कपडे धोने जैसे काम बहुत काम करती हैं लेकिन आज भी मध्यमवर्गीय,निम्न मध्यमवर्गीय औरतों को पुरुषों से अधिक शारीरिक श्रम करना होता हैं।
2 .सातवें दशक तक महिलाओं का जीवन श्रम से भरपूर था-डॉ . तेजप्रकाश व्यास
बीसवीं शताब्दी में पांचवें ,छठे एवं सातवें दशक तक महिलाओं का जीवन श्रम से भरपूर था। प्रातः उठकर कुओं से पानी भरकर लाना, घर बुहारी ( खजूर की झाड़ू से )करना,घर के बाहर सार्वजनिक मार्ग को सूर्योदय पूर्व ही सफाई कर देना, मोगरी से पीटकर कपड़े धोना, घटी से गेहूं पीसना, सत्तू बनाना, सिलबट्टे पर चटनी बांटना, केरी प्याज गुड़ की चटनी बनाना, कच्चे घरों को गाय के गोबर से लीपना, गाय का दूध दुहना, गाय के गोबर के कंडे बनाना, घर बाहर चौपायों को पानी पिलाने के लिए पत्थर की टंकी ( ठेल ) भरना, भगवान के लिए नियत सार्वजनिक स्थलों से फूल चुनकर लाना , सावन में शिवजी को चढ़ाने को बिल्व पत्र लाना, दूध के स्त्रोत स्थल पर जाकर ताज़ा दूध लाना, आए समय के लिए जंगल से खाखरे के पत्तों के दोने पत्तल बनाना, प्रातः स्नान कर नियमित मंदिर दर्शन करना आदि अनेक गतिविधियों में महिलाएं सक्रिय भूमिका निभाती थीं , स्वस्थ रहती थीं।
पाचन, जॉइंट्स, हृदय , मानसिक रोग,मासिक अनियमितता उन्हें छू नहीं पाती थीं। 75 वर्ष में उनकी नैसर्गिक स्वस्थता 50 वर्ष की होती थी।
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3 .स्वयं के रोज के कार्य बिना मशीनों के करना निश्चित ही आप को स्वस्थ रखता है -यही श्रम की महत्ता है -प्रभा जैन ,इंदौर
आधुनिक युग मशीनी युग आगया है ।हर तरह की मशीन,,और इंसान भी स्वभाव से मैकेनिक होगया है।जो प्राकृतिक पद्धतिसे कार्य होते थे,,उसमें बहुत बदलाव आया है।घर गृहस्थी के सारे काम आज से 60 साल पहले हाथ से ही होते थे।भोर होते ही पानी ,पशु पालन ,दाना पानी व्यवस्था,सुबह से साफ सफाई,वस्त्र धुलाई,नीचे बैठकर कार्य करना,रसोई आदि के खाण्डना,,कूटना,पीसना,आदि सभी कार्य हाथों से होते थे।जिससे भले ही थोड़ा समय और मेहनत लगती थी किन्तु वे स्वास्थ के लिए बहुत लाभदायी होते थे कुंवे,नदी से पानी लाना,वस्त्र धुलाई सभी मे शारीरिक अंगों का व्यायाम होता था जो स्व्स्थ रहने के लिए बहुत लाभदायी होता था।हार्ट,ब्लडप्रेशर आदि जैसी बीमारियों में भी कमी थी।सचमुच मेरा तो स्वयं का अनुभव है कि ,जितने अधिक इस शरीर को आराम देंगे,उतनी ज्यादा बीमारियां घेरती है।अर्थात स्व्स्थ रहना हो तो शरीर के हर अंग का व्यायाम,एक्यूप्रेशर ,एवम प्राकृतिक जीवन जीने की पद्धति स्व्स्थ रहने में अत्याधिक लाभ दायी है।यह एक रोजिन्दा का व्यायाम पूरक है।स्वयं के रोज के कार्य बिना मशीनों के करना निश्चित ही आप को स्व्स्थ रखती है।
4 .एक वर्किंग लेडी समय को साधने के लिए अपनी सहायता के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व सहायकों की मदद लेने लगी है–संध्या राणे,इंदौर
आधुनिक युग में महिलाओं ने घरेलू कामों में शारीरिक श्रम कम कर दिया है उस का करण एकल परिवार है। पहले संयुक्त परिवार में गृह कार्य को प्राथमिकता दी जाति थी। संयुक्त परिवार में कार्यों का बटवारा हो जाता था। किंतु आधनिक युग
महिलाओं को नौकरी के लिए घर से बाहर निकलना पड़ रहा है सब समय की मांग है।
आज एक व्यक्ति पर घर चलाने का दायित्व नहीं डाल सकते, अतः आधुनिक महिलाएं चाह करभी अकेल सारे काम नहीं कर सकती। समय को साधने के लिये वे मेड वगैरह की सहायता लेती है जो उनके कुछ कामों को करके उनका कुछ समय बचा देती है। आधुनिक महिलाऐं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने लगी है जिससे उनकी मेहनत व समय दोनों ही बच जाते है। क्योंकि एकल परिवार है खर्चे सबके बढ़े हुए हैं, समय की मांग है आजकल सबसे ज्यादा बच्चों के एजुकेशन के खर्चे ज्यादा बढ़ गए हैं अतः इस आधुनिक युग में महिलाओं का घर से बाहर निकल कर जॉब करना जरूरी हो गया है। अपने जॉब के टारगेट उन्हें तय समय में पूरे करने होते हैं और उनके वर्किंग अवर्स भी बहुत ज्यादा होते हैं। अतः एक वर्किंग लेडी समय को साधने के लिए अपनी सहायता के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व सहायकों की मदद लेने लगी है इसी कारण वे शारीरिक श्रम कम करने लगी है।
5 .अब कामकाजी महिलाएं अपना ज्यादा समय अपने कामकाज को दे रही हैं जो उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बना रहा है-अचला गुप्ता,इंदौर
आधुनिक युग मशीनीकरण का युग है। पहले महिलाएं गृहणी के कर्तव्य निभाने को प्राथमिकता देतीं थीं ।घरेलू कामकाज स्वयं करतीं थीं।घर के सारे काम चाहे कपड़े धोने हो, बर्तन करने हो या सफाई करनी हो ,सारे काम महिलाएं खुद करती थी और वह स्वस्थ भी रहतीं थीं। लेकिन अब महिलाएं कामकाजी हैं ।आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं ।उनके पास समय भी नहीं है कि वे घर का सारा काम खुद ही करें इसीलिए उन्होंने मशीनों का सहारा लेना उचित समझा है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है।
अगर हमें सुविधाएं मिल रहीं हैं तो क्यों ना हम उसका लाभ उठाएं! इससे महिलाओं का काम भी आसान हो गया है और वे स्वयं कोपहले से ज्यादा सक्षम पा रही हैं ।क्योंकि अब कामकाजी महिलाएं अपना ज्यादा समय अपने कामकाज को दे रही हैं जो उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बना रहा है ।घर के कामों के लिए या तो वे सहायिका रख रही है या फिर मशीनों का सहारा ले रही हैं। वे स्वास्थ्य के प्रति भी सजग हैं।स्वस्थ रहने के लिए वे योग कर रहीं हैं, मेडिटेशन कर रहीं हैं या सुबह की सैर करतीं हैं ।
इस प्रकार वे अपने जीवन में संतुलन बनाए हुए हैं।
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए घर के कार्य करना जरूरी नहीं है बल्कि स्वयं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना अधिक आवश्यक है।
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