स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं मिलना भी मतदान में कमी का एक कारण!

जानिए दोनों पार्टियों के कई नेता और कार्यकर्ता क्यों बैठे घर,नही कर रहे प्रचार!

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स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं मिलना भी मतदान में कमी का एक कारण!

भोपाल: भाजपा और कांग्रेस में कई लोकसभा क्षेत्रों में स्थानीय नेताओं को चुनाव की जिम्मेदारी नहीं मिलने से घर बैठे हुए हैं। दोनों ही दलों में व्याप्त हुई इस स्थिति ने लोकसभा की 12 सीटों पर मतदान प्रतिशत पर सीधा-सीधा अंतर डाल दिया है। हालांकि ऐसा हर लोकसभा सीट पर नहीं हैं, जिन सीटों पर पार्टी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को तवज्जो दे रही है, वहां पर ये भरी गर्मी में काम भी कर रहे हैं।

कांग्रेस में इन क्षेत्रों में समस्या
सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार और संगठन अपने कई नेताओं को चुनाव में सक्रिय करने में कामयाब नहीं हो पाया है। यह स्थिति कांग्रेस के साथ भोपाल, विदिशा, इंदौर, उज्जैन लोकसभा क्षेत्रों में ज्यादा सामने आई है। विदिशा में पूर्व विधायक शशांक भार्गव के कांग्रेस में खासे समर्थक थे, भार्गव के भाजपा में आने के बाद उनके कई समर्थक अब भी कांग्रेस में हैं, लेकिन वे कांग्रेस के लिए चुनाव में काम नहीं कर रहे हैं। इस तरह इस क्षेत्र में सुरेश पचौरी के समर्थक भी कई हैं, लेकिन वे फिलहाल कांग्रेस में हैं, वे भी काम नहीं कर रहे हैं। यही स्थिति भोपाल लोकसभा क्षेत्र में भी बनी हुई है। कांग्रेस की गुटबाजी यहां पर हावी दिखाई दे रही है। कई नेता चुनाव में सक्रिय नहीं हैं। उज्जैन और इंदौर में भी यही स्थिति है। इंदौर में भी विशाल पटेल और संजय शुक्ला के भाजपा में शामिल होने के बाद भी कई समर्थक अब भी कांग्रेस में हैं, उनके ये समर्थक कांग्रेस का काम करने से परहेज कर रहे हैं।

भाजपा में भी कुछ जगह दिक्कतें
इधर भाजपा में भी कई लोकसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को जिम्मेदारी नहीं दी गई है। इसमें भोपाल, राजगढ़, देवास, मंदसौर, इंदौर, धार जैसे लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में पार्टी अपने सभी स्थानीय नेताओं का उपयोग ही नहीं कर पा रही है। इसके चलते कई नेता घर पर ही बैठे हुए हैं, या फिर पूर्व की तरह इस चुनाव में उनकी सक्रियता कम नजर आ रही है। इससे पहले 12 सीटों पर हुए चुनाव में यह समस्या मंडला में सबसे ज्यादा आई थी। इसी तरह की समस्या बालाघाट में भी थी, हालांकि पार्टी के बड़े नेताओं ने ऐनवक्त पर मंडला और बालाघाट में अपने सभी नेताओं को महत्व देते हुए उन्हें सक्रिय करने का प्रयास किए, लेकिन ये पूरे चुनाव में सक्रिय नहीं रहे।