‘शंकर’ में विलीन हो गया ‘लाल’…

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‘शंकर’ में विलीन हो गया ‘लाल’…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

मीसाबंदी से विधायक तक का सफर तय करने वाले विंध्य प्रदेश के कद्दावर नेता शंकर लाल तिवारी ने 12 अक्टूबर 2025 को इस दुनिया से विदा ले ली। 18 महीने तक मीसाबंदी रहे और यातनाएं सहीं, पर सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। 2003 से 2013 तक सतना से भाजपा से तीन बार विधायक रहे। चौथी बार विधायक बनने की ख्वाहिश मन में ही दफन कर आखिरकार सतना का यह ‘लाल’ भगवान ‘शंकर’ में विलीन हो गया। मध्य प्रदेश की राजनीति के एक बेबाक और संघर्षपूर्ण चेहरे, पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी का निधन 12 अक्टूबर 2025 को हो गया। 8 अप्रैल 1953 को सतना जिले के चकदही गांव में जन्मे तिवारी ने जीवन भर गरीबों और सर्वहारा वर्ग की आवाज बनी रही। दिल्ली के एम्स अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। पूर्व विधायक के रूप में सात साल का सफर तय करने वाले शंकर लाल तिवारी वैसे तो मुखर थे लेकिन अपनी पार्टी के खिलाफ कभी नहीं गए और मोहन ही रहे। उसी तरह दुनिया छोड़ने से पहले भी सात दिन से वह अस्पताल में मौन ही रहे और एक दिन पहले ही लिखकर वापस अपने घर सतना ले जाने की बात जरूर कही। हालांकि उन्हें अपनी अंतिम सांस दिल्ली के एम्स अस्पताल में ही लेनी पड़ी। बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े तिवारी की बेबाकी ऐसी थी कि दुश्मन भी उनकी हिम्मत की तारीफ करते थे। तो जब भी वह विधानसभा में दिखते, तब भी सभी दलों के नेता उनसे आदर और सम्मान से ही बात करते थे।

 

शंकरलाल तिवारी का जीवन संघर्षशील रहा। उनके जीवन में हर कदम पर संघर्ष और साहस की मिसाल मिलती है। मात्र 10-12 साल की उम्र में वे आरएसएस के बाल स्वयंसेवक बन गए थे। 1975 तक वे स्थानीय स्तर पर युवाओं के बीच ‘बेबाक नेता’ के रूप में पहचान बना चुके थे। आपातकाल के काले दिनों में उनकी हिम्मत की सबसे बड़ी परीक्षा हुई। इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 18 महीने तक रीवा, टीकमगढ़ और सतना की जेलों में ‘मीसाबंदी’ के रूप में गुजारे। जेल से बाहर आते ही उन्होंने भाजपा की कमान संभाली। जिले में विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने युवाओं को संगठित किया। एक बार जेल से रिहा होने पर उन्होंने कहा था, “जेल ने मुझे नहीं तोड़ा, बल्कि मजबूत बनाया। अब संघ की ज्योति और तेज जलाऊंगा।” यह किस्सा आज भी सतना के युवाओं को प्रेरित करता है।

राजनीतिक सफर में तिवारी की चतुराई और जनसंपर्क कला कमाल की थी। 1998 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा, जो एक साहसिक कदम था। लेकिन असली कमाल 2003, 2008 और 2013 में हुआ, जब भाजपा के टिकट पर वे लगातार तीन बार सतना से विधायक बने। हर चुनाव में वे गरीबों के मुद्दों को इस तरह उठाते कि विरोधी भी चुप हो जाते। 2013 की जीत के बाद उन्होंने विधानसभा में सर्वहारा वर्ग के लिए विशेष योजनाओं का प्रस्ताव रखा, जो मध्य प्रदेश की राजनीति में मील का पत्थर साबित हुआ। तिवारी की सभाओं में हंसी-मजाक के बीच गंभीर मुद्दे सुलझ जाते थे। वे कहते, “राजनीति तलवार की धार पर चलना है, लेकिन जनता की सेवा ही असली हथियार है।” उनके जैसे नेता दुर्लभ होते हैं, जो जेल की सलाखों से विधानसभा की कुर्सी तक पहुंचे। सतना के लोग उन्हें प्यार से ‘बाबू’ कहकर पुकारते थे।

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने शंकरलाल तिवारी के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर लिखा है कि, “वरिष्ठ भाजपा नेता एवं सतना विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी जी के निधन का समाचार अत्यंत दुःखद है। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें तथा शोकाकुल परिजनों को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें।” भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक हेमंत खण्डेलवाल ने दिल्ली एम्स पहुंचकर पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी के दुःखद निधन पर उनकी पार्थिव देह के दर्शन कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

शंकर लाल तिवारी ने एक पत्रकार के रूप में भी कार्य किया था। उन्होंने सतना में दैनिक वीर अर्जुन दिल्ली और दैनिक युगधर्म जबलपुर के ब्यूरो चीफ के रूप में कार्य किया तो बेधड़क भारत का संपादन भी किया। उन्होंने कई आंदोलन का नेतृत्व किया तो राम जन्म भूमि संघर्ष समिति के भी सदस्य रहे। बड़ी हुई सफेद दाढ़ी में हमेशा संत की तरह छवि से सभी को प्रभावित करने वाला सतना का यह ‘लाल’ अंततः राम भक्त के रूप में उनके इष्ट ‘शंकर’ में विलीन हो गया है। निश्चित तौर से शंकर लाल तिवारी को याद किया जाता रहेगा…।