Land Declared Government : लीज की शर्तों का उल्लंघन करने पर 86 साल बाद होप टेक्सटाइल की जमीन सरकारी घोषित!

गुरुवार सुबह एसडीएम और तहसीलदार की टीम ने जमीन का कब्जा भी हासिल किया!

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Land Declared Government : लीज की शर्तों का
उल्लंघन करने पर 86 साल बाद होप टेक्सटाइल की जमीन सरकारी घोषित!

गुरुवार सुबह एसडीएम और तहसीलदार की टीम ने जमीन का कब्जा भी हासिल किया!

Indore : बंद हो चुकी होप टेक्सटाइल की एक हजार करोड़ की मौके की जमीन को कलेक्टर आशीष सिंह ने कल अपने आदेश से सरकारी घोषित करते हुए लीज निरस्त कर उसे सरकारी घोषित कर दिया। आज गुरुवार को एसडीएम और तहसीलदार की टीम ने जमीन का कब्जा भी हासिल कर लिया। प्रशासन ने वहां अपना बोर्ड भी लगा दिया है। 86 साल पहले 1939 में होलकर स्टेट ने सिक्का ऑर्डर के जरिए मिल को जमीन का आवंटित की थी।

एमजी रोड पर जिला कोर्ट के पीछे होप टेक्सटाइल (जिसमें पोद्दार प्लाजा की जमीन भी शामिल है) को हासिल करने के लिए पिछले दिनों कलेक्टर ने नोटिस जारी किए थे। उसके बाद मिले जवाब से असंतुष्ट होकर कलेक्टर कोर्ट द्वारा सुनवाई के बाद पारित किया गया। इसमें कस्बा इंदौर की सर्वे नम्बर 282/2 की 22.24 एकड़ जमीन की लीज तत्काल प्रभाव से निरस्त करने और तहसीलदार को मौके पर जाकर कब्जा लेने के निर्देश दिए गए।

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आज सुबह राजस्व अमला होप टेक्सटाइल मिल की जमीन पर पहुंचा और कब्जा लेने की कार्रवाई के साथ प्रशासन का बोर्ड भी लगा दिया। वर्तमान में 4.93 एकड़ जमीन पर जिला कोर्ट की अस्थायी पार्किंग सुविधा यथावत रखी जाएगी। पिछले कुछ समय से कार्यालय प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पार्किंग सुविधा इस जमीन पर उपलब्ध कराई गई थी। क्योंकि, कोर्ट परिसर में पार्किंग के लिए जगह ही नहीं है।

86 साल पहले होलकर स्टेट के प्रधानमंत्री ने सिक्का ऑर्डर के जरिए इस जमीन को 99 साल की लीज पर दिया था। उसके दुरुपयोग के चलते प्रशासन ने आज लीज निरस्त कर उस जमीन का कब्जा वापस हासिल कर लिया। पिछले दिनों प्रबंधक होप टेक्सटाइल स्नेहलतागंज को नोटिस भी जारी किया था। एसडीएम जूनी इंदौर प्रदीप सोनी द्वारा तैयार किए गए प्रतिवेदन के आधार पर कलेक्टर कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की। उसमें कहा गया था कि 99 साल की लीज पर मिल चलाने के लिए दी गई थी, पर मिल बंद हो गई।

जमीन पर न्यू सियागंज बना दिया

कलेक्टर आशीष सिंह ने अपने 16 पेज के विस्तृत आदेश में जहां सुप्रीम कोर्ट के भी कई आदेशों का हवाला दिया, उसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि प्रश्राधीन भूमि की लीज शासन द्वारा दी गई थी और आवेदक शासकीय पट्टेदार की श्रेणी में आता है। लिहाजा उसके खिलाफ सुनवाई करने का शासन या न्यायालय कलेक्टर को विधिक अधिकार प्राप्त है।

दरअसल, अपने जवाब में मिल संचालकों की ओर से यह तर्क दिया था कि न्यायालय कलेक्टर को सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है, जिसके चलते कलेक्टर ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली विकास प्राधिकरण विरुद्ध एसजीजी टॉवर्स एवं शांति शर्मा विरुद्ध वेदप्रभा सहित मेजर जनरल कपिल मेहरा विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया सहित अन्य न्याय दृष्टांत देते हुए उक्त विस्तृत आदेश जारी किया।

यहां तक कि अनावेदक को बीआईएफआर के आदेश 26 जून 1988 में शर्तों के तहत सरप्लस जमीन को बेचने की अनुमति भी दी गई थी और विक्रय से प्राप्त होने वाली सम्पूर्ण राशि का उपयोग बीमार इकाई के लिए बनाई जाने वाली पुनर्वास योजना में खर्च किया जाना था। मगर होप टेक्सटाइल मिल संचालकों ने जहां सरप्लस जमीन बेच दी और न्यू सियागंज मार्केट का निर्माण भी उस पर करवाया। बदले में मिली राशि का उपयोग बंद पड़ी मिल को पुन: चालू करने या पुनर्वास के किसी भी कार्य में नहीं किया, जिसके चलते उक्त शर्त का भी उल्लंघन किया गया।

इसके साथ ही हाईकोर्ट में भी दायर रीट याचिका में कहा कि क्यों न शासकीय पट्टे (लीज) को निरस्त कर दिया जाए। कोर्ट द्वारा जारी कारण बताओ सूचना-पत्र में भी यह लेख किया गया कि जमीन जिस प्रयोजन के लिए दी गई उसका पालन नहीं किया गया। उक्त सरकारी जमीन होल्कर स्टेट के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सिक्का ऑर्डर नम्बर 3248, 2 सितंबर 1939 के जरिए 99 साल की लीज पर मेसर्स नंदलाल भंडारी एंड संस को दी थी। पट्टे की इस जमीन का विक्रय या उसे सब लीज करने का अधिकार नहीं था। मगर इस शर्त का भी उल्लंघन किया गया और 1955 में इस जमीन का विक्रय भी कर दिया।

तहसीलदार नजूल ने 2012 के अपने प्रतिवेदन में भी उक्त 22.24 एकड़ जमीन पर कोई मिल संचालित होना नहीं पाया। यानी टेक्सटाइल उपयोग के लिए दी गई लीज का उद्देश्य समाप्त हो गया और 40% जमीन विक्रय से प्राप्त राशि का इस्तेमाल भी मिल के नवीनीकरण के लिए आज तक नहीं किया। शासन के आवास और पर्यावरण विभाग के आदेश में भी यह स्पष्ट गया कि कुल 22.24 एकड़ में से 8.24 पर मिल स्थित थी। शेष 14 एकड़ में से 1.97 एकड़ पर 60 फुट चौड़ी रोड का निर्माण हुआ और शेष 12.3 एकड़ जमीन में से 60% यानी 7.218 एकड़ शासन में वैस्थित मानी जाएगी।

वाणिज्यिक और आवासीय उपयोग के आधार पर भूमि का विकास करने का भी अधिकार कम्पनी को दिया। मगर उससे प्राप्त राशि का उपयोग पुनर्वास के कार्य में नहीं किया गया। कलेक्टर आशीष सिंह ने हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश 01/04/2025 में दिए निर्देशों के तहत ही इस जमीन को लेकर नोटिस और फिर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी की और प्रस्तुत जवाब आधारहीन और असंतोष पाए जाने पर लीज शर्तों के उल्लंघन के चलते तत्काल प्रभाव से 20 अगस्त को अपने आदेश के जरिए तहसीलदार को निर्देश दिए कि लीज पर दी गई सभी भूमि का कब्जा शासन हित में प्राप्त कर तीन दिन में उसकी रिपोर्ट कलेक्टर कोर्ट में प्रस्तुत करें। 4.93 एकड़ पर जिला कोर्ट पर अस्थायी पार्किंग सुविधा यथावत जारी रहेगी।