लता जी ने गायन को माना है आराधना

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लता जी

आज लता जी 92 साल की हो गईं।वे सदी की गायिका हैं।

मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर लता जी नाम पर अलंकरण साल -दर -साल देते हुए अनेक कला धर्मियों का वास्तविक सम्मान करने का कार्य किया है .

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स्वयं लता मंगेशकर मध्य प्रदेश की इस भावना को विशिष्ट मानती हैं . लता ताई के लिए सेहतमंद बने रहने और सवा सौ साल जीने की कामना भी करते हैं. यह लता जी के लिए और मध्य प्रदेश दोनों के लिए बहुत अच्छा होगा यदि वे कोरोना के खत्म होते ही अपने प्रदेश के नजदीक आ जाएँ। ऐसा लगता है मध्य प्रदेश लता जी को अब उतना आकर्षित नहीं कर पा रहा। लेकिन यहां की जनता उन्हें बहुत सम्मान देती है।ईश्वर तुल्य मानती है। कभी भक्त के पास भगवान आ जाए,वो कितना दुर्लभ पल होता है,भक्त के लिए।कल्पना कीजिए।

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यह कितना सुखद होगा कि एक लता ताई मध्य प्रदेश आयें और यहाँ गायें। मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस के भव्य समारोह में 2012 में आशा भोसले जी भोपाल आयीं थीं। लता जी भी अपने जन्म प्रदेश में पधारें, यह लाखों -लाख लोगों की ख्वाहिश है। वैसे भी घर की बुआ या किसी बुजुर्ग का खामोश रहना ठीक नहीं। नाराज रहना तो बिल्कुल ठीक नहीं। यदि कोई गुस्सा हो भी तो, लता जी उस त्याग दें,यह उम्मीद यहां का हर नागरिक करता है।ऐसा लगता है। अपने जन्म स्थल कोई क्यों न आना चाहेगा आप जतन तो कीजिये। जीवन की शाम में लता जी के लिए विशिष्ट अनुभव भी होगा। वे सवा सौ साल जिएं,बस एक बार एक गीत मंच से गाएं आकर,अपने जन्म प्रदेश में,लाखों लोगों और संगीत गीत प्रेमियों की भावना है ये।

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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने लता जी को जन्म वर्षगांठ की बधाई देते हुए उनके स्वस्थ,सुखी जीवन की कामना की है। यही भाव मध्यप्रदेश के हर व्यक्ति का है।
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लता जी के लिए क्या कहा है लेखकों ने
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लता मंगेशकर की जन्म वर्षगांठ पर देश के बहुत से फिल्म समीक्षक और कला मर्मज्ञ, संगीत साधक न सिर्फ उन्हें बधाई और शुभकामनाएं देते हैं बल्कि उनके बारे में अपने अभिमत आलेखों में प्रस्तुत करते हैं ।पत्र-पत्रिकाओं में इतने आलेख किसी एक गायिका के बारे में कभी प्रकाशित नहीं होते। देश का हिंदी का शायद ही कोई ऐसा प्रमुख अखबार हो जो लता जी के जन्मदिवस पर उनके बारे में सामग्री का प्रकाशन न करता हो। लता जी का जन्म इंदौर में हुआ ,उन्होंने बहुत छोटी उम्र से गाना शुरू कर दिया था, उन्होंने कई भाषाओं के गीत गाए हैं ,उन्होंने हर उम्र की नायिका को आवाज दी। इन सब रवाजी बातों से हटकर मैंने इस आलेख में देश के कुछ प्रमुख फिल्म रसिकों और लेखकों के लता जी के बारे में विचारों को संकलित कर प्रस्तुत किया है। आशा है यह प्रयोग संगीत प्रेमियों, सिने प्रेमियों और लता जी को संगीत की देवी मानने वाले अवश्य पसंद करेंगे।

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समीक्षक अजातशत्रु का मानना है कि लता जी सर्वोत्तम ,अनुपम ,गजब और फैंटास्टिक जैसे शब्दों से काफी ऊपर हैं। लता की आवाज की खूबी को समझना है तो हम कह सकते हैं कि यह खूबी संयोग से मिलती है, न रियाज से और न किसी के आशीर्वाद से। इसको समझने के लिए हमें विवेक और विज्ञान से बाहर जाकर एक अंधविश्वासी शब्दावली बनानी पड़ेगी। एक ऐसी खूबी जिसे लता के प्रसंग में यह कहा जाए तो ठीक रहेगा कि वह हजारों साल में किसी गायक या गायिका को नसीब होती है ।बल्कि हजारों सालों में भी नहीं ।

क्योंकि लता रिपीट होने वाली चीज नहीं है। खूबी है इस आवाज की कि वह निर्मलता और पवित्रता से लबरेज है। कहना यह चाहिए कि हमारी नजर में अंधविश्वास की हद पर जाकर लता को ईश्वर या प्रकृति ने दिव्य आवाज का यह तोहफा दिया है। बाबा तेरी सोन चिरैया नाम से 2008 में प्रकाशित पुस्तक में लता जी के गीतों की मीमांसा कर चुके अजातशत्रु जी ने यह अभिमत लता जी के मिस्ट्री गीतों पर लिखे अपने आलेख ” गुजरी सदियों की धुंध में लौटाती एक आवाज” में लिखा है। (साहित्यिक,सांस्कृतिक पत्रिका कस्तूरी ,संपादक माणिक वर्मा,प्रकाशन वर्ष 2001)

हिंदी और डोगरी की जानी-मानी लेखिका पद्मा सचदेव लता जी के साथ बिताए समय को याद करते हुए लिखती हैं ।मैंने लता जी को कभी किसी को टोकते हुए नहीं देखा अपनी रिकॉर्डिंग और प्रोग्राम के लिए वे चिंतित और मुस्तैद रहती हैं। मैं बड़ी हैरान होती हूं जब यह सुनती हूं कि लता जी रिकॉर्डिंग पर समय से नहीं पहुंचती या रिकॉर्डिंग कैंसिल कर देती हैं। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं देखा दीदी रिकॉर्डिंग पर आ चुकी हैं। यहां कोई जल्दी में दिखाई नहीं दे रहा साज, सुर में होने को है और एलपी (लक्ष्मीकांत प्यारेलाल )भी मजे में खड़े हैं.लता दीदी कोरस की लड़कियों के साथ बातें कर रही हैं ।

वह कहीं से भी लता मंगेशकर नहीं लगती ।आर्केस्ट्रा जोर जोर से बज रहा है ।लता जी की आवाज कोयल जैसी सुरीली आवाज, जैसे शोर का सारा नशा तोड़ कर उस पर छा जाती है। मैंने यह भी सुना था दीदी जब लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की रिकॉर्डिंग पर जाती हैं तो वे दोनों इन्हें हार पहनाकर पांव छुते हैं । लेकिन ऐसी तो कोई रीति नहीं हुई।बांसुरी की मीठी आवाज उभरती है फिर शोर में खो जाती है ।

तेज आर्केस्ट्रा के शोर में दीदी की आवाज राहत की एक थपकी लेकर उभर रही है ।एक नशे की तरह चढ़ती जा रही है। मोहम्मद रफी साहब जैसे गायक कभी-कभी पैदा होते हैं ।वह भी स्वर में ऐसे डूबते हैं कि गाना सजीव हो उठता है। लता जी और रफी साहब का युगल गीत रिकॉर्ड होते देखा।हम 11 बजे सब लोग आए थे ,अभी दोपहर का 1:30 बज रहा था ।इसी तरह एक रिकॉर्डिंग शंकर जयकिशन जी की थी जिसमें लता जी भैरवी राग में सजी कोई धुन गा रही थी । दूसरे स्टूडियो में इसी दिन सोनिक ओमी की रिकॉर्डिंग है ।गीत साहिर लुधियानवी का है।

सोनिक ओमी लता दीदी को धुन सुना रहे हैं ।आर्केस्ट्रा पर थोड़े झुंझलाते हैं । ये सुर के सिपाही थोड़ा सा भी सुर हिले तो हिल जाते हैं।गाने के तीन चार टेक हुए हैं। लता दीदी के चेहरे पर शिकन तक नहीं है। इसी तरह एक बार हृदयनाथ भाई साहब के बेटे आदिनाथ के नामकरण का दिन था। महाराष्ट्र में रिवाज है, नाम रखते समय बेटे को पालने में झुलाते हुए बुआ लोग लोरी गाती हैं ।आशा जी ने गीत गाना शुरू किया कोई कहे कृष्ण कोई कहे… फिर लता दीदी, मीना जी, उषा जी सब गाने लगी ।भारत की सर्वश्रेष्ठ गायिकाएं पालने को झुलाते हुए गा रही थी छोटा सा प्यारा सा चेहरा सुकून में डूब गया। लता दीदी का स्वर उसकी मुखाकृति पर सुख की एक महीन सी परत ओढ़ा गया था। पद्मा सचदेव ने यह अभिमत भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित पुस्तक लता मंगेशकर: ऐसा कहां से लाऊं प्रथम संस्करण वर्ष 2012 में लिखा है।

जाने माने फिल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज का मानना है कि लता मंगेशकर के लिए इससे अधिक संतोष की बात क्या हो सकती है की फिल्मी दुनिया में छह सात दशक तक उनकी सक्रियता, रचनात्मकता और कलात्मकता का निखार देखने को मिला है ।लता की प्रशंसा में बीसवीं शताब्दी के अनेक दिग्गजों ने दिल खोल कर लिखा है। इनमें कुमार गंधर्व, यहूदी मेनुहिन, अमीर खान ,बड़े गुलाम अली खान, भीमसेन जोशी, पंडित जसराज, इलैयाराजा रविशंकर सरीखे नाम शामिल है ।लता जी को किसी प्रमाण पत्र या प्रशंसा की क्या जरूरत है ।

लता जी ने अपने कैरियर में उन गीतों को गाने से बचने का भरसक प्रयास किया जो मादक अथवा चालू संगीत वाले माने जाते हैं। लेकिन इंतकाम में साधना पर फिल्माए कैसे रहूं चुप या हेलेन पर फिल्माए ओ जाने जा ,संगम में वैजयंती माला पर फिल्माए मैं क्या करूं राम.. रोटी कपड़ा और मकान में जीनत अमान पर पिक्चराइज अरे हाय हाय ये मजबूरी.. और चांदनी में श्रीदेवी पर फिल्माए मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां..जैसे गीत भी उन्होंने बखूबी गाए। ये लता जी की परिपाटी से हटकर थे। विनोद भारद्वाज ने यह अभिमत सिनेमा कल, आज कल ( वाणी प्रकाशन ,दिल्ली)वर्ष 2006 में अपने आलेख एक मीठी महानता का नाम है लता में लिखा है।

लेखक यतींद्र मिश्र का कहना है कि लता जी ने अपने स्वरों की थाती से फिल्मी गीतों भजनों, गजलों, अभंग पदों नात, कव्वाली, श्लोक और मंत्र गायन, लोकगीतों, कविताओं तथा देशभक्ति गीतों के माध्यम से जितनी रोशनी बिखेरी हुई है उसके अनुपात में कोई कवि, संगीत विश्लेषक या सिनेमा अध्येता अपनी बात कभी भी मुकम्मल तौर पर पूरी तरह नहीं कह सकता। उनका लिखा, सोचा विचारा कुछ ना कुछ छूट अवश्य जाएगा। उनके द्वारा बनाई गई कला की बड़ी परिधि पर वामन के डग की तरह पृथ्वी नापने का काम शायद ही कोई करने में समर्थ हो।श्री यतींद्र मिश्र ने यह बात अपनी पुस्तक लता सुर गाथा (प्रकाशक वाणी प्रकाशन नई दिल्ली) वर्ष 2016 की भूमिका में लिखी।