Lateral Entry Controversy : ‘लेटरल एंट्री’ से भर्ती वाला विज्ञापन केंद्र ने रद्द किया, कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC चीफ को पत्र लिखा!

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Lateral Entry Controversy

Lateral Entry Controversy : ‘लेटरल एंट्री’ से भर्ती वाला विज्ञापन केंद्र ने रद्द किया, कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC चीफ को पत्र लिखा!

विपक्ष और सरकार के सहयोगी दलों ने लेटरल इंट्री में आरक्षण न होने का मुद्दा उठाया था!

New Delhi : केंद्र सरकार ने आरक्षण को लेकर हो रहे विवाद के बीच देश की शीर्ष नौकरशाही में लेटरल एंट्री से भर्ती वाले विज्ञापन को रद्द कर दिया। विपक्ष के साथ BJP के कई सहयोगी दल भी इसके खिलाफ थे। विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम को आरक्षण खत्म करने की कोशिश बताया था। कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC की चेयरमैन प्रीति सुदन को पत्र लिखकर इस भर्ती रद्द करने को कहा। UPSC ने शीर्ष नौकरशाही में 45 नियुक्तियों को लेकर विज्ञापन जारी किया था, जिसे लेकर विवाद लगातार बढ़ रहा था।

पत्र में जितेंद्र सिंह ने UPSC को यह लिखा

केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने अपने पत्र में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण ‘हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।’ सिंह ने कहा कि चूंकि इन पदों को विशिष्ट मानते हुए एकल-कैडर पद के रूप में नामित किया गया है, इसलिए इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। प्रधानमंत्री के सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, इस कदम की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है।’ उन्होंने कहा कि मैं UPSC से 17 अगस्त 2024 को जारी लेटरल एंट्री भर्ती विज्ञापन को रद्द करने का आग्रह करता हूं। जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कदम सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति होगा।

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पूरा मामला जिस पर विवाद गहराया

हाल ही में UPSC ने शीर्ष नौकरशाही में 45 पदों के नोटिफिकेशन जारी किया था। इनने 10 संयुक्त सचिव और 35 उप सचिव के पद थे। इन पदों को लेटरल एंट्री के माध्यम से भरा जाना था। इस फैसले के बाद विपक्षी दलों ने इसे लेकर सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया। उनका दावा था कि इससे अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण के अधिकार कमजोर होंगे। उनका कहना था कि UPSC की तरफ से ‘लेटरल एंट्री’ के लिए जारी किए विज्ञापन में आरक्षण का कोई जिक्र नहीं है।

यह होता है लेटरल एंट्री?

केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर पर ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती 2018 से ही की जा रही है। इसमें संबंधित क्षेत्र में व्यक्ति के एक्सपीरियंस को ध्यान में रखा जाता है। इन स्तरों पर अधिकारी नीति-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अब तक ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए 63 नियुक्तियां की गई हैं, जिनमें से 35 नियुक्तियां निजी क्षेत्र से हैं।

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लेटरल एंट्री पर क्यों उठ रहे हैं सवाल

2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में बहुमत के साथ आई तो उसने कई बड़े फैसले लिए, इन्हीं फैसलों में से एक फैसला था UPSC में लैटरल एंट्री का यानी IAS बनने के लिए UPSC की तीन (प्री, मेन्स और इंटरव्यू) परीक्षाएं नहीं देकर सीधी भर्ती की जाना। कोई भी अनुभवी सीधे भारतीय प्रशासनिक सेवा में अफसर बन सकते हैं। हालांकि इसके लिए भी एक प्रक्रिया है जिसके तहत कम से कम किसी निजी क्षेत्र में काम करने का 15 साल का अनुभव हो, साथ ही उम्र 40 से 55 वर्ष के बीच हो तभी UPSC में लैटरल एंट्री मिलती है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल उठता है वह यह है कि क्या ये संवैधानिक है? और क्या इससे UPSC में मिलने वाला आरक्षण खत्म हो जाएगा!