छतरपुर के ऐतिहासिक पत्रकार उत्पीड़न कांड पर दस्तावेजी किताब ‘गोलियों के सामने अडिग कलम’ का लोकार्पण

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छतरपुर के ऐतिहासिक पत्रकार उत्पीड़न कांड पर दस्तावेजी किताब ‘गोलियों के सामने अडिग कलम’ का लोकार्पण

भोपाल । माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान परिसर में शुक्रवार को आंचलिक पत्रकारिता पर एक गंभीर विमर्श हुआ। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार और बायोपिक फ़िल्म निर्माता राजेश बादल की पुस्तक गोलियों के सामने अडिग कलम का लोकार्पण हुआ।

मुख्य अतिथि जाने माने संपादक और प्रेस कौंसिल के पूर्व सदस्य तथा एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पूर्व महासचिव प्रकाश दुबे थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह थे। अध्यक्षता संस्थान के संस्थापक संयोजक पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर थे।

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए लेखक एवं नेशनल बुक ट्रस्ट के पूर्व संपादक पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि भारत के इतिहास में यह एक अनूठा मामला है, जिसमें पत्रकारों को सताने की न्यायिक जाँच कराई गई। पत्रकार इसमें जीते और प्रेस कौंसिल की जांच में भी पत्रकारों को सही ठहराया गया। इस अवसर पर छतरपुर से आए शुभ भारत के प्रधान संपादक श्याम अग्रवाल को पत्रकारिता में उनके 50 साल पूरे होने पर सम्मानित किया गया।

श्री अग्रवाल ने पत्रकार उत्पीड़न मामले में सबसे अधिक उत्पीड़न झेला। श्याम जी ने अपने सम्मान के उत्तर में भावुक संबोधन दिया और कहा कि इस मामले के कारण उनके परिवार को चौदह साल तक इस मामले में मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ा है।

उनके अलावा छतरपुर से आए राष्ट्रभ्रमण के प्रधान संपादक सुरेन्द्र अग्रवाल, कृष्णक्रांति के प्रधान संपादक अजय दोसाज, वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला और सेवानिवृत आईएएस एल एस बघेल, जनसंपर्क विभाग के अतिरिक्त संचालक कबीर खान तथा एडवोकेट श्याम सुंदर श्रीवास्तव का भी सम्मान किया गया।

वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह ने कहा कि चार दशक बाद इस मामले की गूंज अभी तक सुनाई देती है और इस मामले ने साबित किया कि आंचलिक पत्रकारों की चुनौतियां और जोख़िम कम नहीं होते। श्री सिंह ने कहा कि राजेश बादल ने किस तरह इस घटना का दस्तावेजीकरण किया, वह सराहनीय है। श्री सिंह ने इस मामले पर अपनी तीखी टिप्पणियां लिखी थीं।

मुख्य अतिथि प्रकाश दुबे ने कहा कि पत्रकारिता के ऐसे मामलों को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए ।उन्होंने उस ज़माने की प्रेस कौंसिल और वर्तमान प्रेस कौंसिल की तुलना करते हुए कहा कि वर्तमान प्रेस कौंसिल का गठन अरसे से लंबित है। पत्रकारिता के लिए ताकतवर मीडिया कौंसिल की सख़्त ज़रूरत है।

पुस्तक के लेखक राजेश बादल ने कहा कि आमतौर पर किसी एक मामले की दो अर्ध न्यायिक जांच नहीं कराने की परंपरा है। लेकिन छतरपुर के मामले की एक साथ दो जांच हुईं। दोनों में पत्रकार जीते। उन्होंने कहा कि श्रीधर जी के कारण ही यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों की जीत के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने नई दुनिया के प्रधान संपादक स्वर्गीय राजेंद्र माथुर और रविवार के तत्कालीन संपादक स्वर्गीय एस पी सिंह के इस मामले में दिए गए सहयोग को याद किया ।इस मामले के एक और नायक स्वर्गीय शिव अनुराग पटेरिया को भी उन्होंने श्रद्धांजलि दी।

समारोह के अध्यक्ष पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि छतरपुर के इस मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता की साख बढ़ाई है। मध्यप्रदेश आंचलिक पत्रकार संग ने इस मामले को अपने हाथ में लिया और इसे अंजाम तक पहुंचाया। उन्होंने कहा कि सरोकारों की पत्रकारिता ही असली है। यह मार्ग कठिन है, लेकिन सफलता का यही मुख्य मार्ग है। उन्होंने छतरपुर के सभी पत्रकारों की सराहना की और लगातार अपने सिद्धांतों पर टिके रहने के लिए बधाई दी।

समारोह का संचालन डॉक्टर मंगला अनुजा ने किया और आभार प्रदर्शन जाने माने पत्रकार डाक्टर सुधीर सक्सेना ने किया। सुधीर सक्सेना ने कहा कि इस पुस्तक को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए। यह एक ऐसा दस्तावेज़ है, जिसे आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगीं।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यकार,लेखक और पत्रकार उपस्थित थे।