
कानून और न्याय: संविधान और मतदाता सूचियों का गहन पुनरीक्षण
– विनय झैलावत
भारत निर्वाचन आयोग ने 24 जून को,घोषणा की थी कि वह बिहार विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) शुरू करेगा। इस प्रक्रिया का उद्देश्य राज्य में मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण करना है ताकि सभी पात्र मतदाताओं को शामिल किया जा सके और सभी अपात्र मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाया जा सके। अधिसूचना में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग मतदाता सूची के पुनरीक्षण में मतदाताओं की पात्रता और अयोग्यता संबंधी संवैधानिक प्रावधानों का ईमानदारी से पालन करेगा। निर्वाचन आयोग ने कहा कि यह प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 के तहत स्पष्ट रूप से वर्णित है। अधिसूचना के अनुसार, 2003 के बाद से बिहार मतदाता सूची का यह पहला गहन पुनरीक्षण है। इसका उद्देश्य मतदाता सूची की अखंडता को बनाए रखना है।
क्योंकि, यह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए मूलभूत है। इसका उद्देश्य बिहार में तीन लक्ष्य हासिल करना है। एक, प्रत्येक पात्र नागरिक का नामांकन हो और कोई भी मतदाता सूची से बाहर न रहे। दुसरा, कोई भी अपात्र मतदाता मतदाता सूची में न रहे। तीसरा, मृत/स्थानांतरित/अनुपस्थित मतदाताओं को हटाना। चुनाव आयोग ने इस गहन कवायद को तेजी से बढ़ते शहरीकरण, लगातार हो रहे प्रवास, नए पात्र युवा मतदाताओं के जुड़ने, मौतों की कम रिपोर्टिंग और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने जैसे कारकों का हवाला देते हुए उचित ठहराया है। इसी कारण संसद पांच दिनों तक विरोधी दलों के विरोध के कारण नहीं चल सकी है।
अधिसूचना में कहा गया है कि एसआईआर, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम धारा 21 और भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत प्रदत्त शक्तियों के माध्यम से संचालित किया जाता है। अनुच्छेद 324, भारत में चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार निर्वाचन आयोग को प्रदान करता है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21, निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और संशोधित करने का अधिकार देती है।
एसआईआर के लिए अर्हता तिथि 1 जुलाई 2025 निर्धारित की गई है। इसलिए, उस तिथि को या उससे पहले 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके लिए पात्र होगा। जबकि अनुच्छेद 326 के अनुसार, 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति मतदान के लिए पात्र है। धारा 16 मतदाता बनने से अयोग्य ठहराए जाने वाले व्यक्ति के मानदंड निर्धारित करती है। इन मानदंडों में भारत का नागरिक न होना, मानसिक रूप से अस्वस्थ होना, या भ्रष्ट आचरण या अन्य चुनावी अपराधों से संबंधित किसी भी कानून के तहत मतदान से अयोग्य होना शामिल है।
चुनाव आयोग ने घर-घर जाकर सत्यापन करने के लिए बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) को नियुक्त किया है। इसमें बीएलओ द्वारा घर-घर जाकर सर्वेक्षण शामिल होगा, जो पात्र या अपात्र मतदाताओं की पहचान करेंगे। इसने मौजूदा मतदाताओं के लिए पहले से भरे हुए गणना फॉर्म प्रिंट करने के लिए निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) को नामित किया है। बीएलओ अपने दौरे के दौरान गणना फॉर्म वितरित करेंगे और उन्हें सहायक दस्तावेजों के साथ एकत्र करेंगे। ये फॉर्म चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाउनलोड के लिए उपलब्ध होंगे। वैकल्पिक रूप से, मतदाता इन फॉर्म को संबंधित दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन भरकर अपलोड कर सकते हैं।
मतदाता गोपनीयता बनाए रखते हुए पारदर्शिता बढ़ाने के लिए, अधिसूचना में कहा गया है कि पात्रता सत्यापित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले दस्तावेज अपलोड किए जाएंगे। ये केवल अधिकृत चुनाव अधिकारियों के लिए ही सुलभ होंगे। बिहार में आयोग अपनी कार्यवाही लगभग समाप्त कर चुका है।
चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से सक्रिय भागीदारी का आह्वान किया है और उनसे प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए बूथ स्तरीय एजेंट (बीएलए) नियुक्त करने का आग्रह किया है। इस तरह यदि कोई विसंगतियां हों, तो उन्हें तैयारी के चरण में ही हल कर लिया जाएगा, जिससे दावे, आपत्तियां और अपील दायर करने की घटनाओं में कमी आएगी। दावे और आपत्तियां कोई भी मतदाता या राजनीतिक दल दायर कर सकता है। इन शिकायतों का मूल्यांकन सहायक निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी द्वारा किया जाएगा।
सभी दावों और आपत्तियों के निराकरण के बाद चुनाव आयोग द्वारा अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। यह सूची मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के साथ साझा की जाएगी और चुनाव आयोग तथा मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइटों पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाएगी। मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त 2025 को लाइव होगी।
जुलाई की शुरुआत में, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, स्वराज पार्टी के सदस्य और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुनाव आयोग की अधिसूचना को चुनौती दी। उनका दावा है कि एसआईआर मनमाना है और वयस्क मताधिकार के सार्वभौमिक अधिकार का उल्लंघन करता है।अपनी याचिका में, एडीआर ने चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को रद्द करने की मांग की है। यह तर्क दिया गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
एनजीओ ने तर्क दिया कि एसआईआर का आदेश बिना किसी उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है। इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रभावित होंगे। यह भी तर्क दिया गया कि आयोग ने मतदाता पात्रता साबित करने का भार राज्य से व्यक्तिगत नागरिकों पर अनुचित रूप से स्थानांतरित कर दिया है। आधार और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को बाहर करने से गरीब और हाशिए के समुदायों पर असमान रूप से प्रभाव पड़ेगा। 6 जुलाई को, चुनाव आयोग ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि एसआईआर का प्रारंभिक चरण पूरा हो गया है। 7 जुलाई 2025 को, सर्वोच्च न्यायालय ने एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की।
10 जुलाई 2025 को मामले की सुनवाई हुई और चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा गया। 10 जुलाई के अपने आदेश में, बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर रोक लगाने से इनकार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय खंडपीठ ने आयोग को इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया था। पीठ ने कहा था कि हमारे प्रथम दृष्टया विचार में, चूँकि यह सूची संपूर्ण नहीं है, इसलिए न्याय के हित में होगा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड, चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता फोटो पहचान पत्र और राशन कार्ड पर भी विचार करे।
आयोग ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए कई आँकड़े पुराने हैं और वर्तमान परिदृश्य का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। आयोग ने कहा कि पूरी रिपोर्ट संलग्न नहीं की गई है और याचिकाकर्ताओं ने जानबूझकर इस तथ्य को दबाया है कि ये रिपोर्ट समकालीन आंकड़ों को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं। सर्वोच्च न्यायालय अब इस मामले की आगे सुनवाई करेगा। लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग की कार्यवाही पर कोई भी रोक लगाने से इंकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान यह जानना चाहा कि आखिर आधार कार्ड को वोटर कार्ड से क्यों नहीं जोड़ा जा रहा है। इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि राशन कार्ड जैसे कई दस्तावेज फर्जी बन रहे हैं, इसलिए उन्हें शामिल नहीं किया गया।
इसी बीच चुनाव आयोग ने अपनी प्रक्रिया पूर्ण कर ली है। साथ ही आयोग ने यह घोषणा की है कि यही प्रक्रिया देश के अन्य राज्यों में भी अपनाई जाएगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया चुनाव आयोग की इस घोषणा पर क्या होगी? यह भी देखना होगा कि सर्वोच्च न्यायालय इस पर क्या निर्णय देता है। मोटे तौर पर चुनाव आयोग को संविधान यह अधिकार देता है और आयोग ने यही किया भी है।





