कानून और न्याय: नए कानून में आतंकवाद की परिभाषा भी शामिल!

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कानून और न्याय: नए कानून में आतंकवाद की परिभाषा भी शामिल!

पहले आतंकवाद की परिभाषा नहीं थी। लेकिन भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद को लेकर प्रावधान किया गया है। आतंकवाद को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाया गया है। बैंगलुरू की नेशनल लाॅ स्कूल ऑफ इंडिया युनिवर्सिटी के एक एनलिसिस के मुताबिक, आतंकवाद की परिभाषा फिलिपींस के आतंकवाद विरोधी अधिनियम, 2020 से ली गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आतंक के वित्त पोषण से जुड़े अपराध नए कानून में व्यापक है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों कानून एक साथ कैसे काम करेंगे। भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा।

आतंकवाद की परिभाषा में आर्थिक सुरक्षा शब्द को भी परिभाषा में जोड़ा गया है। इसके तहत, अब जाली नोट या सिक्कों की तस्करी या चलाना भी आतंकवादी कृत्य माना जाएगा। इसके अलावा किसी सरकारी अफसर के खिलाफ बल का इस्तेमाल करना भी आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा। भारतीय न्याय संहिता में धारा 113 में इन सभी कृत्यों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। इसके तहत, आतंकी कृत्य का दोषी पाए जाने पर मौत की सजा या उम्रकैद की सजा हो सकती है।

आत्महत्या के प्रयास को भी नए सिरे से परिभाषित किया गया है। नए प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति किसी भी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन करने के लिए मजबूर करने या रोकने के इरादे से आत्महत्या करने की कोषिष करता है तो यह अपराध माना जाएगा और जेल की सजा निर्धारित की जाएगी। इसे सामुदायिक सेवा के साथ एक साल तक बढ़ाया जा सकता है। विरोध प्रदर्षनों के दौरान आत्मदाह या भूख हड़ताल को रोकने के लिए भी यह प्रावधान लागू होगा। सामुदायिक सेवा को एक ऐसी सजा माना जाएगा जो समाज के लिए फायदेमंद होगी।

सरकार का दावा है कि अब इंसाफ के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। अब देश में कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज करवा सकेंगे। इसमें धाराएं भी जुड़ेगी। अब तक जीरो एफआईआर में धाराएं नहीं जुड़ती थीं। पंद्रह दिन के भीतर जीरो एफआईआर संबंधित थाने को भेजनी होगी। छोटे-छोटे मामलों और तीन साल से कम सजा के अपराधों के मामलों में समरी ट्रायल किया जाएगा। इससे सेशन कोर्ट में 40 प्रतिशत से ज्यादा मामले खत्म होने की उम्मीद है। पुलिस को नब्बे दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी। परिस्थिति के आधार पर अदालत नब्बे दिन का समय और दे सकती है। 180 दिन यानी छह महीने में जांच पूरी कर ट्रायल शुरू करना होगा।

अदालत को साठ दिन के भीतर आरोपी पर आरोप तय करने होंगे। सुनवाई पूरी होने के बाद तीस दिन के अंदर फैसला सुनाना होगा। फैसला सुनाने और सजा का ऐलान करने में सात दिन का ही समय मिलेगा। अगर किसी दोषी को मौत की सजा मिली है और उसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय से भी खारिज हो गई है, तो तीस दिन के भीतर दया याचिका दायर करनी होगी।

नए कानून में कैदियों के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। एक तिहाई सजा काट चुके अंडर ट्रायल कैदी के लिए जमानत का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा सजा माफी को लेकर भी कई प्रावधान किए गए हैं। अगर मौत की सजा मिली है तो उसे ज्यादा से ज्यादा आजीवन कारावास में बदला जा सकता है। आजीवन कारावास है तो सात साल की सजा काटनी होगी। सात साल या उससे ज्यादा की सजा है तो कम से कम तीन साल जेल में रहना पड़ेगा। पहले आईपीसी की धारा 377 में अप्राकृतिक यौन गतिविधियों के बीच समलैंगिकता को अपराध मानती थी। लेकिन, नए कानून में इसे निरस्त कर दिया गया है। हालांकि, धारा 377 पूरी तरह हटा दिए जाने से नई चिंताएं भी बढ़ गई हैं। क्योंकि, यह प्रावधान अभी भी गैर-सहमति वाले यौन कृत्यों से निपटने में मददगार है। खासकर जब बलात्कार कानूनों में लैंगिक आधार पर भेदभाव जारी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला ऐतिहासिक फैसला दिया था। आईपीसी में धारा 153 बी का प्रावधान है। इसमें राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आरोप और दावों को लेकर नियम हैं। भारतीय न्याय संहिता ने यहां एक नया प्रावधान किया है। इसमें झूठी और भ्रामक जानकारी प्रकाशित करने को अपराध माना गया है। दया याचिका दायर करने के लिए सजा पाने वाले व्यक्ति की तरफ से अदालत से सजा मिलने के तीस दिनों के भीतर प्रस्तुत किया जा सकता है। किसी भी अन्य पक्ष दया याचिका नहीं डाल सकती है।

ये अधिकार सिर्फ सजा पाने वाले व्यक्ति को ही मिलेगा। इसी तरह किसी गंभीर अपराध में जहां सजा तीन से सात साल तक है, पुलिस को प्रारंभिक जांच चौदह दिनों के भीतर पूरी करनी होगी और एफआईआर दर्ज करनी होगी। अब एफआईआर को लेकर पुलिस के लिए सख्त समय-सीमा निर्धारित की गई है। यदि कोई शिकायत दर्ज की जाती है तो पुलिस को तीन दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी।

पहले आरोप पत्र 60-90 दिनों के भीतर दाखिल करना होता था। लेकिन दोबारा जांच का हवाला देकर इसमें देरी की जाती थी। नए विधेयक के तहत पुलिस को विशेष रूप से कोर्ट पर निर्भर रहना होगा। आगे की जांच के लिए अदालत को आदेश देना होगा और निर्धारित समय सीमा के भीतर आरोप पत्र दाखिल करना होगा। समय पर सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए आरोपियों के पास बरी होने की दलील देने के लिए सात दिन का समय होगा। न्यायाधीश को उन सात दिनों के भीतर सुनवाई करनी होगी और अधिकतम 120 दिनों के भीतर मामले की सुनवाई होगी। पहले प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई समय सीमा नहीं थी। अब अगर कोई अपना अपराध करने के तीस दिन के भीतर स्वीकार कर लेता है तो सजा कम होगी। गवाहों की सुरक्षा का भी ख्याल रखा जाएगा। बयान दर्ज करने और साक्ष्य एकत्र करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मोड की अनुमति दी गई है।

जो महिला शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहतीं, उनके लिए इलेक्ट्रॉनिक एफआईआर की सुविधा शुरू की गई है। इसमें एक पुलिस अधिकारी 24 घंटे के भीतर घर जाएगा। विधेयक में सात साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं, जिससे फोरेंसिक जांच अनिवार्य हो जाएगी। नए कानूनों के तहत पुलिस हिरासत केवल पंद्रह दिनों के लिए होगी। हालांकि, इसका प्रयोग किसी भी समय किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और फिर चिकित्सकीय जरूरत के कारण अस्पताल भेजा जाता है, तो अदालत द्वारा फिर से हिरासत की मांग करनी होगी। इस अवधि के दौरान अदालत व्यक्ति को जमानत भी दे सकती है।

इन सबके अलावा हिट एंड रन मामलों से जुड़ी धाराओं पर भी काफी बहस हो रही है। इसके चलते वाहन चालकों एवं ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल भी हुई है। हिट एंड रन मामलों में नया कानून सभी वाहनों पर लागू होगा, न कि केवल टैंकरों या ट्रकों पर। ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस की परिवहन समिति के अध्यक्ष सीएल मुकाती ने बताया कि हिट एंड रन के मामलों में सरकार द्वारा अचानक पेश किए गए कड़े प्रावधानों को लेकर चालकों में आक्रोश है। उनकी मांग है कि इन प्रावधानों को वापस लिया जाए। इस नए कानून में कहा गया है कि घातक और भीषण दुर्घटना की सूचना न देने पर गाड़ी के ड्राइवर को दस साल की सजा हो सकती है या फिर सात लाख रूपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

ये प्रावधान भारतीय न्याय संहिता में किए गए हैं। इससे पहले आईपीसी की धारा 304 ए के तहत ऐसे मामलों में सिर्फ दो साल की सजा हो सकती थी। अब इस पर ट्रक ड्राइवरों का कहना है कि इस नए कानून से ट्रक ड्राइवरों में डर पैदा होगा और नए लोग इस काम में भी नहीं आएंगे। ट्रक ड्राइवरों के अलावा ऑटो चालक भी इसके खिलाफ है। कुल मिलाकर आजादी के बाद इन कानूनों को बदलने का एक गंभीर प्रयास इस सरकार द्वारा किया गया है। आज तक सरकारों ने इस दिशा में प्रयास ही नहीं किए गए है। लेकिन, व्यावहारिक रूप से कुछ कठिनाईयां भी भविष्य में आ सकती है, जिन्हें संशोधन के माध्यम से बदलना होगा।