पांच राज्यों में चुनावों के दौरान चुनाव आयोग के कार्यकलापों पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा उंगली उठाई जा रही है। इस कारण अनायास ही पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की याद आ रही है। उनकी निष्पक्षता, निर्ममता, कर्तव्यपरायणता तथा कानूनों का सख्ती से पालन करवाने की क्षमता अद्वितीय थी। किसी भी राजनीतिक दल अथवा राजनीति की हिम्मत चुनाव आयोग पर उंगली उठाने की नहीं होती थी।
दरअसल, चुनावों में चुनाव आयोग की भूमिका अहम होती है। भारत का चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो देश में संघ और राज्यों में चुनाव प्रक्रिया का संचालन करता है। भारतीय संविधान में इसकी व्यवस्था की गई है। चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और इसके सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल पात्रता आदि की व्याख्या करता है। अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग में चुनाव के लिए निहित दायित्व, अधीक्षण, निर्देश और नियंत्रण के प्रावधान करता है। चुनाव आयोग देश में लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करता है।
मूलतः चुनाव आयोग में एक चुनाव आयुक्त का ही प्रावधान किया गया था। बाद में 16 अक्टूबर 1989 को इसे तीन सदस्यीय बनाया गया। वर्तमान में निर्वाचन आयोग में एक मुख्य आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त एक आईएएस अधिकारी होता है तथा इनकी एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इनका कार्यकाल 6 वर्ष अथवा 65 वर्ष की उम्र होती है। इन्हें हटाने की प्रक्रिया भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान होती है।
इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है। इसके लिए संसद में दो तिहाई सदस्यों के बहुमत की आवश्यकता होती है तथा इसके लिए 50 प्रतिशत से अधिक मतदान होना आवश्यक है। निर्वाचन आयोग के चुनाव कार्यो में चुनाव कार्यक्रम तय करना, निर्वाचन नामावली तैयार करना, मतदाता पहचान पत्र जारी करना, राजनीतिक दलों को मान्यता देना, विवादों को निपटाना, सलाह देना, आचार संहिता जारी करना तथा सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनाव अभियान निर्धारित करना और उसकी निगरानी करना जैसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य सम्मिलित है। लेकिन दुर्भाग्य से आयोग के पास राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने की पर्याप्त शक्तियां मौजूद न होने के कारण चुनाव आयोग कई मामलों में स्वयं को असहाय महसूस करता है।
दुर्भाग्य से गत कुछ वर्षों से आयोग की निष्पक्षता पर राजनीतिक दल प्रश्न उठाने लगे हैं। कई बार जनता में यह संदेश जा रहा है कि आयोग कार्यपालिका के दबाव में काम करता है। आयोग की निष्पक्षता के लिए द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट महत्वपूर्ण मानी जाएगी। इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक कॉलेजियम बनाया जाए जिसके उपाध्यक्ष राज्यसक्षा के अध्यक्ष (अर्थात उप-राष्ट्रपति), कानून मंत्री और विपक्ष के नेता सम्मिलित हो। यह कॉलेजियम राष्ट्रपति के समक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों के नाम प्रस्तावित करें। यह एक अच्छा सुझाव है जिसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए। इससे आयोग की विश्वसनीयता में वृद्धि होगी।
वर्तमान में नई पीढ़ी भले ही टीएन शेषन को नहीं जानती है। लेकिन पुरानी पीढ़ी उन्हें भली भांति पहचानती है। पहले चुनाव आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त होते थे। इसी एकल सदस्यीय आयोग के चुनाव आयुक्त थे टी.एन. शेषन। उन्होंने सन् 1990 में चुनाव आयुक्त का पदभार ग्रहण किया। विभिन्न पदों पर रहने के बाद प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में वे मुख्य चुनाव आयुक्त बने। उन्होंने अपने कार्यकाल में चुनाव व्यवस्था में जो सुधार किए उसने उनका नाम चुनाव आयोग के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित कर दिया।
उनका कार्यकाल चुनाव आयोग के कार्यों में ‘‘मील का पत्थर‘‘ माना जाता है। उस समय उनका नाम आते ही राजनीतिक दलों में खौंफ पैदा हो जाता था। सत्ताधारी दलों सहित किसी की भी हिम्मत नहीें होती थी कि उनकी क्षमता अथवा कार्यप्रणाली पर उंगली उठाए। उस समय उनके द्वारा चुनाव सुधारों हेतु किए गए कार्यों, ईमानदारी एवं उनकी क्षमता ने उन्हें देष की जनता में जननायक बना दिया था। पद से हटने के बाद भी लाखों की भीड़ उनके भाषण सुनने आती थी। इंदौर में भी उनकी एक सभा हुई थी जिसे ऐतिहासिक एवं यादगार माना जाता है।
उनके द्वारा प्रारंभ किए गए कार्यों का प्रतिफल ही है आज का चुनाव संचालन। उनके कार्यकाल में ही चुनाव पहचान पत्रों की शुरुआत हुई थी। उस समय चुनाव में बोगस मतदान एक आम बात थी। बिहार व उत्तर प्रदेश इस प्रकार की घटनाओं के केंद्र थे। शेषन के पहले आचार संहिता सिर्फ कागजों पर थी। लेकिन शेषन ने कड़ाई से इसे लागू किया। पहले चुनाव प्रचार में नियमों का पालन भी नहीं होता था। प्रत्याषी अनाप-शनाप खर्च करते थे। शेषन ने आचार संहिता को सख्ती से लागू किया तथा आयोग चुनाव खर्च पर सख्ती से नजर रखने लगा।
रात 10 बजे के बाद चुनाव प्रचार पर रोक लगी। प्रत्याशियों की मनमानी पर रोक के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति तथा उनकी रिपोर्ट पर त्वरित कार्यवाही यह शेषन का मूल मंत्र था। राज्य मशीनरी के दुरुपयोग के लिए केन्द्रीय बल की तैनाती भी शेषन की देन है। मतदाता बगैर भय के वोट डाल सके, इस पर सख्ती से अमल हुआ। साथ ही वोटों को मिलाने की कार्य योजना भी उन्हीं के कार्यकाल में बनी। इसके पीछे मकसद यह था कि वोटर ने वोट किसमें कहां डाला इसकी जानकारी राजनेताओं को न हो।
चुनाव आयुक्त के रूप में टी.एन. शेषन ने शानदार कार्य किए। इसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने 6 वर्ष के अपने कार्यकाल में अपनी अमिट छाप छोड़ी। शेषन की इमेज उस समय ऐसी थी कि वे भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अपने निर्देशों का सख्ती से पालन कराया उन्हें खूब आता था। शेषन की ‘‘आदर्ष आचार संहिता‘‘ चुनाव सुधारों में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जानी जाएगी।
शेषन ने सभी राजनीतिक दलों पर चुनाव आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करके चुनाव आयोग की ताकत का अहसास कराया। उन्होंने चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था के रूप में स्थापित किया। उन्होंने कई बार यह कहा भी कि चुनाव आयोग सरकार का हिस्सा नहीं है। शेषन की निर्भीकता और स्पष्टवादिता उल्लेखनीय थी। यह उल्लेखनीय है कि चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री काल में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी कानूनी मंत्री थे।
शेषन ने उन्हें पढ़ाया था। स्वामी को उनकी योग्यता पर पूरा विश्वास भी था। उन्होंने ही शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका थी। शेषन ने एक बार सरकार को लिखा था कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं करती, तब तक आयोग चुनाव कराने में असमर्थ है। उन्होंने अगले आदेष तक सभी चुनावों को स्थगित भी किया था। इस कारण बंगाल में राज्यसभा के चुनाव नहीं हुए तथा केन्द्रीय मंत्री प्रणव मुखर्जी को त्याग पत्र देना पड़ा था। ऐसे ही कई महत्वपूर्ण कार्य एवं योगदान उनके थे।
आज चुनाव आयोग पर राजनीतिक दलों द्वारा बार-बार उंगली उठाना हमें बरबस ही टीएन शेषन की याद दिला रहा है। चुनाव आयोग जैसी संस्था को ऐसे ही मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्त की आवश्यकता है ताकि आयोग की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष छवि को लौटाया जा सके तथा किसी की भी इतनी हिम्मत न हो कि वह चुनाव आयोग के कार्यों पर एवं आदेशों पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा सके।