कानून और न्याय:पर्यावरण निर्माण व नष्ट होने के लिए मानव जवाबदार

376

कानून और न्याय:पर्यावरण निर्माण व नष्ट होने के लिए मानव जवाबदार

इस विषय पर पिछले आलेख में लिखा था की राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा था कि धरती माता स्पष्ट रूप से कार्यवाही का आह्वान का आग्रह कर रही है। न्यायालय के अनुसार पर्यावरण पृथ्वी पर सभी जीवित चीजों के लिए बुनियादी जीवन समर्थन प्रणाली है। यह प्राकृतिक और मानव निर्मित घटकों का एक संयोजन है। प्राकृतिक घटकों में वायु, जल, भूमि और जीवित जीव शामिल हैं। सड़कें, उद्योग, भवन आदि मानव निर्मित घटक हैं। प्राकृतिक पर्यावरण को चार मुख्य घटकों में विभाजित किया जा सकता है। जीवमंडल, स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल। पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत को स्थलमंडल कहा जाता है, जो चट्टानों और खनिजों से बनी मिट्टी की एक पतली परत है। जलमंडल में विभिन्न प्रकार के जल निकाय जैसे समुद्र, महासागर, नदियाँ, झीलें, तालाब आदि शामिल हैं। वायुमंडल, जिसमें जलवाष्प, गैस और धूल के कण होते हैं, हवा की वह परत है जो पृथ्वी को घेरती है। मनुष्यों, पौधों और जानवरों से मिलकर बना जीवित संसार जीवमंडल का गठन करता है।

IMG 20240624 WA0030

भारतीय संविधान के तहत निर्देशात्मक सिद्धांत कल्याणकारी राज्य के निर्माण के आदर्शों की ओर निर्देशित थे। स्वस्थ पर्यावरण भी कल्याणकारी राज्य के तत्वों में से एक है। अनुच्छेद 47 में यह प्रावधान है कि राज्य अपने लोगों के पोषण के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य के सुधार में पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार भी शामिल है जिसके बिना सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 48 कृषि और पशुपालन के संगठन से संबंधित है। यह राज्य को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर कृषि और पशुपालन को व्यवस्थित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देता है। विशेष रूप से, इसे नस्लों के संरक्षण और सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए और गायों और बछड़ों और अन्य दूध देने वाले और भार वाले मवेशियों के वध पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

संविधान का अनुच्छेद 48-ए कहता है कि ‘‘राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने और देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।‘‘ भाग प्प्प् के तहत भारत का संविधान मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है जो प्रत्येक व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक हैं और जिनके लिए एक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से केवल मानव होने के कारण हकदार है। पर्यावरण का अधिकार भी एक अधिकार है जिसके बिना व्यक्ति का विकास और उसकी पूरी क्षमता का एहसास संभव नहीं होगा। इस भाग के अनुच्छेद 21, 14 और 19 का उपयोग पर्यावरण संरक्षण के लिए किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है। मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अनुच्छेद 21 को समय-समय पर उदार व्याख्या मिली है। अनुच्छेद 21 जीवन के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। बीमारी और संक्रमण के खतरे से मुक्त पर्यावरण का अधिकार इसमें निहित है। स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार मानव गरिमा के साथ जीने के अधिकार की महत्वपूर्ण विशेषता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के हिस्से के रूप में एक स्वस्थ वातावरण में रहने के अधिकार को पहली बार ग्रामीण मुकदमेबाजी हकदारी केंद्र बनाम राज्य, के मामले में मान्यता दी गई थी। यह भारत में इस तरह का पहला मामला है, जिसमें पर्यावरण और पारिस्थितिकी संतुलन से संबंधित मुद्दे शामिल हैं, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत खुदाई (अवैध खनन) को रोकने का निर्देश दिया था। एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा माना।

अत्यधिक शोर, भी समाज में प्रदूषण पैदा करता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के साथ पठित अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भारत का संविधान सभ्य पर्यावरण के अधिकार और शांति से रहने के अधिकार की गारंटी देता है। पीए जैकब बनाम कोट्टायम के पुलिस अधीक्षक प्रकरण में केरल उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में लाउड स्पीकर या ध्वनि एम्पलीफायरों का उपयोग करने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है। इस प्रकार, लाउड स्पीकरों के कारण होने वाले ध्वनि प्रदूषण को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत नियंत्रित किया जा सकता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (जी) प्रत्येक नागरिक को किसी भी पेशे का अभ्यास करने या किसी भी व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय को करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। यह उचित प्रतिबंधों के अधीन है। एक नागरिक व्यावसायिक गतिविधि नहीं कर सकता है, अगर यह समाज या आम जनता के लिए स्वास्थ्य के लिए खतरा है। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण के लिए सुरक्षा उपाय इसमें निहित हैं। कुवरजी बी. भरूचा बनाम आबकारी आयुक्त, अजमेर मामले में शराब के व्यापार से संबंधित मामले का निर्णय लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि पर्यावरण संरक्षण और व्यापार और व्यवसाय की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच टकराव होता है, तो न्यायालयों को किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए मौलिक अधिकारों के साथ पर्यावरण हितों को संतुलित करना होगा।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत जनहित याचिका के परिणामस्वरूप पर्यावरणीय मुकदमेबाजी की एक लहर पैदा हुई। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किए गए प्रमुख पर्यावरणीय मामलों में देहरादून क्षेत्र में चूना पत्थर की खदानों को बंद करने का मामला शामिल है। दिल्ली में क्लोरीन संयंत्र में सुरक्षा की स्थापना एमसी मेहता बनाम भारत संघ प्रकरण उल्लेखनीय है। वेल्लोर नागरिक कल्याण मंच बनाम भारत संघ प्रकरण में न्यायालय ने कहा कि एहतियाती सिद्धांत और प्रदूषक भुगतान सिद्धांत और सतत विकास‘‘ की आवश्यक विशेषताएं हैं। स्थानीय और ग्राम स्तर पर भी, पंचायतों को संविधान के तहत संरक्षण, जल प्रबंधन, वानिकी और पर्यावरण की सुरक्षा और पारिस्थितिक पहलू को बढ़ावा देने जैसे उपाय करने का अधिकार दिया गया है।

पर्यावरण संरक्षण हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का हिस्सा है। अथर्ववेद में कहा गया है ‘मनुष्य का स्वर्ग पृथ्वी पर है यह जीवित संसार सभी का प्रिय स्थान है इसमें प्रकृति की कृपा का आशीर्वाद है एक सुंदर भावना में रहें। पृथ्वी हमारा स्वर्ग है और यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने स्वर्ग की रक्षा करें। भारत का संविधान प्रकृति के संरक्षण और संरक्षण के ढांचे का प्रतीक है जिसके बिना जीवन का आनंद नहीं लिया जा सकता है। पर्यावरण संरक्षण के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों का ज्ञान अधिक से अधिक जन भागीदारी, पर्यावरण जागरूकता, पर्यावरण शिक्षा लाने और पारिस्थितिकी और पर्यावरण के संरक्षण के लिए लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए इस दिन की आवश्यकता है।