कानून और न्याय:पति भी होते हैं पत्नी की क्रूरता के शिकार!

पति भी होते हैं पत्नी की क्रूरता के शिकार!

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कानून और न्याय:पति भी होते हैं पत्नी की क्रूरता के शिकार!

विनय झैलावत

आम धारणा है कि विवाह के बाद हमेशा पत्नियां ही पति के हाथों क्रूरता और बुरे व्यवहार का शिकार होती हैं। यह सच नहीं है। अनुपात कम है, लेकिन कई बार पतियों के साथ ही घर में क्रूरतापूर्ण व्यवहार हो सकता है। भारत का कानून उन्हें भी न्याय का अधिकार देता है। आजकल देश में तलाक के जितने भी प्रकरण प्रस्तुत किए जाते हैं, अधिकांश में क्रूरता को तलाक की वजह बताया जाता है। आखिर कब पति अथवा पत्नी का व्यवहार मानसिक अथवा शारीरिक क्रूरता में बदल जाता है और कब इसके आधार पर तलाक लिया जा सकता है, इसे समझना आवश्यक है। न्यायालयों के फैसलों में दो तरह की क्रूरता की बात कही गई है। पहली मानसिक क्रूरता और दूसरी शारीरिक क्रूरता। शारीरिक क्रूरता सीधे तौर पर शारीरिक हिंसा से जुड़ी हुई है। इसे साबित करना या परिभाषित करना मुष्किल नहीं। लेकिन मानसिक क्रूरता की स्थिति में इसे साबित करना और परिभाषित करना थोड़ा कठिन होता है। साफ शब्दों में कहें तो कानून की नजरों में क्रूरता की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। विभिन्न न्यायालयों के अलग-अलग फैसले इसकी व्याख्या करते रहे हैं।

उदाहरण के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि सालों तक पत्नी का शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना भी पति और वैवाहिक जीवन के प्रति क्रूरता है। एक अन्य फैसले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पत्नी की कमाई खाने वाले पति के व्यवहार को मानसिक क्रूरता करार दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि जब वैवाहिक रिश्ते में कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष पर ऐसी शर्तें लात दे, जिसके साथ जिंदगी बसर करना मुश्किल हो तो इसे मानसिक क्रूरता माना जाएगा।

हाल ही में टीम इंडिया के क्रिकेटर शिखर धवन का तलाक हो गया है। दिल्ली की पटियाला हाउस की पारिवारिक अदालत ने क्रिकेटर शिखर धवन को उनकी पत्नी आयशा मुखर्जी से मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक की मंजूरी दे दी। न्यायाधीश हरीश कुमार ने धवन द्वारा पत्नी के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि वह खुद का बचाव करने में विफल रही। शिखर और आयशा ने 2012 में शादी की थी। अदालत ने माना कि आयशा ने धवन को अपने इकलौते बेटे से सालों तक अलग रहने के लिए मजबूर करके मानसिक पीड़ा दी। 4 अक्टूबर को तलाक का फैसला सुनाने से पहले कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता एक मशहूर क्रिकेटर के साथ साथ देश के लिए गौरव है। अगर वो भारत सरकार से अपने बेटे की कस्टडी को लेकर मदद मांगते हैं, तो भारत सरकार द्वारा आस्ट्रेलिया सरकार से बात करके उनके बेटे की कस्टडी या मुलाकात के अधिकार पर मदद की कोशिश की जानी चाहिए।

धवन ने कोर्ट में जो याचिका प्रस्तुत की थी उसके अनुसार, उनकी पत्नी आयशा ने पहले धवन से उनके साथ भारत आकर रहने की बात कही थी। लेकिन, बाद में अपने पूर्व पति से प्रतिबद्धता के कारण अपनी ही बात से मुकर गई। धवन द्वारा आयशा पर आस्ट्रेलिया में अपने पैसे से खरीदी गई तीन संपत्तियों में से 99 प्रतिशत का मालिक बनाने के लिए मजबूर करने के तथ्य को अदालत ने स्वीकार कर लिया। अदालत ने माना कि धवन पर दबाव डालने, बदनाम करने और अपमानित करने के मकसद से आयशा ने कई लोगों को मानहानिकारक संदेश भेजे थे। अदालत ने यह भी आरोप स्वीकार किया कि कोरोना महामारी से संक्रमित होने के बावजूद भी आयशा ने धवन से अपने बीमार पिता को अस्पताल ले जाने के लिए समय निकालने को लेकर झगड़ा किया था।

लंबे समय तक ऐसी मान्यता रही की क्रूरता सिर्फ पति कर सकता है और पत्नी हमेशा पीड़ित होगी। लेकिन, 2017 में मायादेवी बनाम जगदीश प्रसाद के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि रिश्ते में क्रूरता का शिकार पति या पत्नी कोई भी हो सकता है। इस मामले में पति ने कोर्ट से कहा था कि पत्नी उसे और बच्चों को भरपेट खाना खाने से रोकती और मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है। कोर्ट ने इसे पत्नी की मानसिक क्रूरता मानते हुए पति की तलाक की अर्जी स्वीकार कर ली। इस मामले के बाद मानसिक क्रूरता में पतियों को हमेशा दोषी और पत्नी को पीड़ित मानने की सोच खत्म हुई। साल 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में एक पत्नी को रिश्ते में क्रूरता का दोषी माना। इस मामले में पत्नी अपने पति की शारीरिक स्थिति का मजाक बनाते हुए उसे मोटा हाथी कहकर ताने मारती थी। कोर्ट ने इस आधार पर पति की तलाक याचिका स्वीकार कर ली।

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक फैसले में कहा कि किसी भी पति के पास, मानसिक क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक लेने का अधिकार है। अदालत एक महिला की अपील पर सुनवई कर रही थी। महिला ने परिवार अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे अपने पति को तलाक देना था। उच्च न्यायालय ने महिला की अपील को यह कहकर खारिज कर दिया कि अपने पति को उसके माता-पिता और परिवार से अलग करने का प्रयास क्रूरता के बराबर था। अभियोग के मुताबिक, महिला, अपने पति पर दबाव बना रही थी कि वह अपने माता-पिता को छोड़ दे और वह दोनों पति-पत्नी कहीं अलग रहने लगे।

जबलपुर जिले के कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश केएन सिंह ने तलाक के एक मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि पति को माता-पिता से अलग रहने के लिए विवश करने वाली पत्नी क्रूरता की दोषी है। इस आधार पर पति द्वारा प्रस्तुत तलाक की अर्जी मंजूर की गई। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया वृद्ध माता-पिता की देखभाल करना पुत्र का नैतिक व विधिक दायित्व है। ऐसी स्थिति में पत्नी का परम धर्म व सामाजिक कर्तव्य है कि पति के साथ संयुक्त रहते हुए उसके वृद्ध माता-पिता की सेवा करें। लेकिन, इस मामले में सेवा तो दूर, वह अपने पति को उसके वृद्ध माता-पिता से पृथक होकर स्वयं के साथ मायके जबलपुर में रहने के लिए दबाव डालती थी। इस तथ्य को लेकर विवाद भी करती थी। हिंदू समाज में एक पुत्र से अपने वृद्ध माता-पिता के साथ रहकर उसकी देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है। एक पत्नी को बिना किसी कारण से पृथक रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में पत्नी द्वारा पति को उसके वृद्ध माता-पिता व परिवार से पृथक रहने के लिए मजबूर करना उचित नहीं है। पत्नी का यह आचरण पति के लिए मानसिक क्रूरता की परिधि में आता है।

यदि किसी मर्द या औरत के साथ जीवन साथी शारीरिक क्रूरता कर रहा हो तो शरीर पर पड़े चोट के निशान या मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उसे कोर्ट में साबित किया जा सकता है। लेकिन, भावनात्मक या मानसिक क्रूरता को मापने का कोई पैमाना नहीं है। ऐसे मामलों में कोर्ट अपने विवेक के आधार पर फैसले लेता है। ऐसी स्थिति में अगर कोई पति अपनी पत्नी के खिलाफ मानसिक क्रूरता का दावा करना चाहता है, तो उसे कोर्ट के पुराने फैसलों को देखना चाहिए। उसे कोर्ट में यह साबित करना होगा कि पत्नी ने उसके सामने ऐसी शर्त रखी हैं, जिसके साथ जीना किसी भी सामान्य इंसान के लिए मुश्किलों से भरा है।

भारत में घरेलू हिंसा के कानून महिलाओं के पक्ष में है। जबकि कई पश्चिमी देशों में यह लिंग निरपेक्षता (जेंडर न्यूट्रल) है। ऐसे में कई बार पुरूषों को लगता है कि रिश्ते में क्रूरता से बचने के लिए उनके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। लेकिन, घरेलू हिंसा के मामलों से इतर अगर पति के पास अपनी पत्नी के खिलाफ क्रूरता के वाजिब सबूत मौजूद हैं, तो वह इन कानूनी अधिकारों का सहारा ले सकता है। ये कानून लिंग निरपेक्षता (जेंडर न्यूट्रल) पर आधारित है। कोर्ट के कई फैसलों में यह भी कहा गया है कि छोटी-मोटी बात पर नाराज होना, एक बार कुछ बुरा कह देना, पैसे देने से इनकार कर देना या किसी रात रोमांस से इनकार कर देना क्रूरता नहीं माना जाएगा। लेकिन, जब ऐसी चीजें जीवन साथी आदतन और लगातार करने लगे, तभी उसे क्रूरता और तलाक का आधार माना जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि रिश्तों में होने वाली खट्टी-मीठी नोकझोंक और क्रूरता में फर्क समझा जाए।