कानून और न्याय:सरकारी तथ्य जांच इकाई का उद्देश्य क्या सेंसरशिप?

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कानून और न्याय:सरकारी तथ्य जांच इकाई का उद्देश्य क्या सेंसरशिप?

 

हाल ही में आईटी एक्ट नियम 2023 हुए संशोधन पर एक याचिका दायर की गई थी। 2021 के आईटी संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने बाॅम्बे हाईकोर्ट को बताया गया कि एक सरकारी तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) का उद्देश्य जनता को गलत सूचना से बचाना नहीं है। इसके विपरीत इसका उद्देश्य किसी भी ऐसी चीज पर पूर्ण राज्य सेंसरशिप लाना है। यह लोकहित याचिका कुणाल कामरा की ओर से प्रस्तुत की गई। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज सिरवई ने तर्क दिया कि यह संशोधन किसी भी चीज की पूर्ण राज्य सेंसरशिप है। सरकार नहीं चाहती है कि लोग सरकार को जानें, चर्चा करें, बहस करें या सवाल करें। यही विवादित नियम का वास्तविक उद्देश्य है। सिरवई ने कहा कि नियम का उद्देश्य जनता को सही जानकारी देना नहीं है, बल्कि सरकार को विचारों के बाजार में आलोचना से बचाना है।

बाॅम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एएस चंदूरकर कॉमेडियन कुणाल कामरा और अन्य लोगों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के नियम 3 (1) (बी) (वी) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। आईटी नियम, 2021 में 2023 का संशोधन सरकार को सोशल मीडिया पर अपने व्यवसाय के बारे में नकली, झूठी और भ्रामक जानकारी की पहचान करने के लिए एक एफसीयू स्थापित करने का अधिकार देता है। वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज सिरवई ने जोर देकर कहा कि किसी भी संस्था, विशेष रूप से सरकार के पास यह परिभाषित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए कि क्या सच है या क्या गलत। उन्होंने तर्क दिया कि विवादित नियम में एक अंतर्निहित धारणा है कि केवल सरकार ही अपने मामलों के बारे में पूर्ण सत्य जानती है।
सिरवई ने जोर देकर कहा कि वास्तव में किसी भी लोकतांत्रिक देश ने सच्चाई और झूठ को मध्यस्थता करने के लिए सरकार द्वारा नियंत्रित सरकारी तथ्य जांच एजेंसी नियुक्त करने का सहारा नहीं लिया है। इसके स्थान पर लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने वाले तंत्र का चयन किया है। आईटी नियमों के तहत मौजूदा प्रावधानों की ओर इशारा करते हुए, सिरवई ने संशोधन की आवश्यकता पर सवाल उठाया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन किए बिना गलत सूचना को संबोधित करने के लिए आईटी नियमों के नियम 3 (1) (बी) (अपप) के साथ-साथ आईटी अधिनियम की धारा 69ए और उस धारा के तहत ब्लाॅकिंग नियमों को पर्याप्त तंत्र के रूप में रेखांकित किया।

अभिभाषक सिरवई ने तर्क दिया कि फ्लैग की गई सामग्री में अस्वीकरण जोड़ना पर्याप्त अनुपालन पूरी तरह से भ्रमपूर्ण होगा। उन्होंने तर्क दिया कि डिस्क्लेमर जोड़ना सूचना को संशोधित करने, धारा 79 (2) (बी) (पपप) का उल्लंघन करने और एक सुरक्षित बंदरगाह को कम करने के बराबर होगा। यह खंड यह प्रावधान करता है कि यदि वह जानकारी को संशोधित नहीं करता है तो मध्यस्थ के पास उसके द्वारा होस्ट की गई किसी भी तीसरे पक्ष की जानकारी के लिए दायित्व से सुरक्षित आश्रय होगा। सिरवई ने तर्क दिया कि संशोधन बिचैलियों को उचित परिश्रम करने के उनके कर्तव्य में विवेकाधिकार को समापत कर देता है, जो नकली, गलत या भ्रामक है, उसके निर्धारण को पूरी तरह से सरकारी एफसीयू के व्यक्ति परक निर्धारण पर छोड़ देता है।
विवादित नियम इस तरह से काम करता है कि मध्यस्थ के पास यह निर्धारित करने की कोई गुंजाइश नहीं है कि क्या फ्लैग की गई सामग्री वास्तव में नकली झूठी या भ्रामक है। सरकारी एफसीयू द्वारा फ्लैग की गई सामग्री को फर्जी या भ्रामक के रूप में पहचानने के बाद इसे हटाने में विफल रहना सुरक्षित बंदरगाह खोने के लिए पर्याप्त है। विवादित नियम के माध्यम से, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से उपयोगकर्ताओं को ऐसी जानकारी प्रकाशित करने से रोकने के लिए उचित प्रयास करने की अपेक्षा की जाती है, जिसे सरकार की तथ्य जांच इकाई, केंद्र सरकार के किसी भी व्यवसाय के संबंध में, नकली या गलत या भ्रामक के रूप में पहचाना जाता है।
कुणाल कामरा की याचिका के अनुसार, वह एक राजनीतिक व्यंग्यकार है जो अपनी सामग्री साझा करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर निर्भर है। नियमों के कारण उसकी सामग्री को मनमाने ढंग से अवरुद्ध किया जा सकता है, हटा दिया जा सकता है, या उनके सोशल मीडिया खातों को निलंबित या निष्क्रिय कर दिया जा सकता है। बाॅम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ द्वारा संषोधन को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं में विभाजित निर्णय देने के बाद यह मामला न्यायमूर्ति एएस चंदूरकर को सौंपा गया। जबकि, न्यायमूर्ति पटेल ने कहा कि नियम को पूरी तरह से रद्द कर दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति गोखले ने कहा कि नियम अधिकार के भीतर था। सभी पहलुओं पर निर्णय अलग-अलग थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले महीने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023 के तहत फैक्ट-चेक यूनिट (एफसीयू) की केंद्रीय अधिसूचना पर रोक लगा दी थी। यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक कि बाॅम्बे हाईकोर्ट अंततः आईटी नियम संशोधन 2023 की चुनौतियों का फैसला नहीं कर लेता। उच्चतम न्यायालय ने नियमों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने से इंकार करने वाले बंबई उच्च न्यायालय के 11 मार्च के आदेश और केंद्र को- एफसीयू को अधिसूचित करने की अनुमति देने वाले परिणामी आदेश को रद्द कर दिया। इस बीच सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया है कि तथ्य जांच इकाई को अगले दस दिनों तक अधिसूचित नहीं किया जाएगा। न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को संरक्षण के किसी भी और विस्तार की मांग के लिए उपयुक्त मंच के समक्ष आवेदन करने की स्वतंत्रता प्रदान की है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि दोनों नियम धारा 79 के अधिकार से बाहर हैं जो बिचौलियों को तीसरे पक्ष की सामग्री और आईटी अधिनियम 2000 की धारा 87 (2) (जेड) और (जेडजी) के खिलाफ कार्रवाई से बचाते हैं। इसके अलावा उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 19 (1) (जी) के तहत नागरिकों को कानून के तहत समान संरक्षण देने वाले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।

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विनय झैलावत

लेखक : पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं इंदौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं