कानून और न्याय: जनता का चुनाव आयोग पर विश्वास होना जरूरी!

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कानून और न्याय: जनता का चुनाव आयोग पर विश्वास होना जरूरी!

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता पर बल देते हुए कहा कि यह लोकतंत्र में लोगों की आकांक्षा से जुड़ा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव बिना संदेह के निष्पक्ष होना चाहिए। इसकी शुद्धता सुनिश्चित करना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। चुनाव आयोग को संवैधानिक ढांचे और कानून के दायरे में काम करना चाहिए।

अभी कुछ समय पूर्व चुनाव आयोग के कामकाज में अधिक विश्वसनीयता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। न्यायालय ने कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब सीधे केंद्र सरकार नहीं करेगी। इन अहम पदों पर नियुक्ति की सिफारिश प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधिपति की कमेटी करेगी। अगर लोकसभा में नेता विपक्ष का पद खाली है, तो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता इस कमेटी के सदस्य होंगे। राष्ट्रपति इस कमेटी की तरफ से चुने गए व्यक्ति को पद पर नियुक्त करेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जब तक इस बारे में संसद से कानून पारित नहीं हो जाता, तब तक यही व्यवस्था लागू रहेगी। सर्वोच्च न्यायालय की इस संविधान पीठ ने कहा है कि लोकतंत्र में लोगों का भरोसा बना रहना जरूरी है। ऐसा तभी हो सकता है, जब चुनाव आयोग का कामकाज उन्हें विश्वसनीय लगे।

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इस मामले में चार लोकहित याचिकाएं प्रस्तुत की गई थी। इन याचिकाओं में मांग की गई थी कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की व्यवस्था पारदर्शी होनी चाहिए, चुनाव आयोग को आर्थिक स्वायत्ता मिलनी चाहिए और मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने के लिए जो प्रक्रिया है, वही चुनाव आयुक्तों पर भी लागू होनी चाहिए। खंडपीठ के सदस्य न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने अलग से लिखे अपने फैसले में खंडपीठ के साझा फैसले से सहमति जताई है। साथ ही, उन्होंने अपनी तरफ से यह भी जोड़ा कि चुनाव आयुक्तों को पद से हटाने के लिए भी वही प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, जो मुख्य चुनाव आयुक्त पर लागू होती है। वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ही हटाया जा सकता है। लेकिन, चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर सरकार हटा सकती है। न्यायमूर्ति रस्तोगी ने सुझाव दिया कि बाकी दोनों चुनाव आयुक्तों को भी वहीं संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए, जो मुख्य चुनाव आयुक्त को हासिल है।

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को आर्थिक स्वायत्तता देने और चुनाव आयोग के लिए अलग से सचिवालय बनाए जाने की मांग को भी सही बताया। संवैधानिक पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग का कामकाज सत्ता में बैठी पार्टी के भरोसे नहीं चल सकता। उस देश के कंसोलिडेटेड फंड में से राशि आवंटित की जानी चाहिए ताकि वह स्वायत्त और स्वतंत्र रूप से अपना काम कर सके। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के लिए अलग सचिवालय के गठन और आर्थिक स्वायत्ता पर सीधे कोई आदेश नहीं दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार और संसद से अनुरोध किया कि वह इस पर कानून बनाएं। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़े नियम बदल दिए हैं। अब इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई की सदस्यता वाली कमेटी करेगी। वैसे आठ साल पहले लॉ कमीशन ने भी कुछ इसी तरह की सिफारिश की थी।
चुनाव में शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का दूरगामी असर होगा। पांच जजों की बेंच ने कहा है कि चुनावी प्रक्रिया का काफी समय से बेरहमी से दुरुपयोग निश्चित तौर पर लोकतंत्र के लिए गंभीर है। लोकतंत्र में चुनाव में शुद्धता व निष्पक्षता निश्चित तौर पर बरकरार रखना होगा अथवा इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। संयोग से लाॅ कमीशन ने सन् 2015 में ही सिफारिश की थी कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसा कोई सिस्टम हो जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई सदस्य हों।

सर्वोच्च न्यायालय ने 23 अक्टूबर 2018 को उस जनहित याचिका को संवैधानिक बेंच को भेजा था। इसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की तरह सिस्टम होना चाहिए। इस मामले में संवैधानिक खंडपीठ ने गुरुवार को दिए गए फैसले में कहा कि चुनावी प्रक्रिया में शुद्धता होनी चाहिए। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर जोर देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र में यह लोगों की इच्छा से जुड़ा हुआ है। अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में निष्चित तौर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और पवित्रता सुनिष्चत करना चुनाव आयोग के लिए जरूरी है। चुनाव की निष्पक्षता बनाई रखनी चाहिए अन्यथा इसके विनाषकारी परिणाम होंगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता पर बल देते हुए कहा कि यह लोकतंत्र में लोगों की आकांक्षा से जुड़ा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव बिना संदेह के निष्पक्ष होना चाहिए। इसकी शुद्धता सुनिष्चित करना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। चुनाव आयोग को संवैधानिक ढांचे और कानून के दायरे में काम करना चाहिए। वह अनुचित तरीके नहीं अपना सकता है। चुनाव आयोग प्रक्रिया में स्वतंत्र व निष्पक्ष भूमिका सुनिश्चित नहीं करता है तो फिर कानून का शासन ध्वस्त हो सकता है और यह लोकतंत्र का आधार है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति की ओर से जारी अधिसूचना से होता है। इसके लिए विधि मंत्रालय नामों की सिफारिश प्रधानमंत्री को करता है। प्रधानमंत्री की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति से नियुक्ति पर मुहर लगाई जाती है। आमतौर पर नौकरशाहों की नियुक्ति इस पद पर की जाती है। इसका अधिकतम कार्यालय छह साल होता है। यह अवधि अथवा पैसठ वर्ष की उम्र जो भी पहले हो वह अवधि लागू होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयोग की नियुक्ति पर संविधान सभा में जो बहस हुई थी उससे यह स्पष्ट है कि सभी सदस्यों का स्पष्ट मत था कि चुनाव एक स्वतंत्र आयोग द्वारा आयोजित किये जाने चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि संविधान सभा ने संसद द्वारा भारतीय निर्वाचन आयोग की नियुक्तियों को नियंत्रित करने के लिए मानकों को स्थापित करने की परिकल्पना की थी।

आमतौर पर न्यायालय विशेष विधायी शक्तियों के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। लेकिन संविधान के संदर्भ में विधायिका की निष्क्रियता और उससे उत्पन्न शून्यता को देखते हुए न्यायालय को निश्चित रूप से हस्तक्षेप करना चाहिये। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त को हटाए जाने की प्रक्रिया समान होनी चाहिये अथवा नहीं, के सवाल पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यह एक समान नहीं हो सकती। इसका कारण यह है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त का दर्जा विशेष होता है और इसके बिना अनुच्छेद 324 की सक्रियता काफी प्रभावित हो सकती है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग, स्थायी सचिवालय के वित्तपोषण और भारत के समेकित कोष पर खर्च किये जाने वाले वित्त की आवश्यकता के प्रश्नों का समाधान न करते हुए यह सवाल को सरकार के निर्णय के लिए छोड़ दिया।