कानून और न्याय : मौत की सजा के क्रूर तरीकों पर विचार मंथन जरूरी! 

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कानून और न्याय:मौत की सजा के क्रूर तरीकों पर विचार मंथन जरूरी! 

सर्वोच्च न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा है कि मौत की सजा का ऐसा विकल्प कौन सा हो सकता है जिसमें मृत्युदंड प्राप्त बंदी को कम से कम तकलीफ हो। भारत में मृत्युदंड फांसी के द्वारा दी जाती है। वैसे तो विश्व में इसके विकल्प तो कई है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि वे फांसी से बेहतर विकल्प है अथवा नहीं। इस पर गहन अध्ययन तथा वैधानिक शोध जरूरी है। फांसी को जितना भारत में क्रूर समझा जा रहा है उससे कई ज्यादा क्रूर पद्धतियां दुनिया में ना केवल इस्तेमाल होती है बल्कि उनसे होने वाले कष्टों को पूरी दुनिया में देखा जा रहा है।

कुछ समय से फांसी पर अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर दिलचस्प बहस चल रही है। फांसी की सजा एक क्रूर सजा है, इसे दी जाना चाहिए अथवा नहीं, इस पर निरंतर विचार-विमर्श चल रहा है। यदि दी जानी चाहिए तो उसे किस तरीके से दी जाए, ताकि मृत्यु की सजा प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कम से कम तकलीफ हो। मृत्यु दंड के विरोध में जो सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह दिया जाता है कि क्रूर अपराध की सजा क्रूर नहीं हो सकती। क्या फांसी मौत का सबसे बर्बर तरीका है! सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से इस पर विचार मंथन शुरू करने के लिए कहा है। मौत की सजा के लिए फांसी की जगह किसी दूसरे विकल्प की मांग वाली जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में हाल ही में सुनवाई हुई थी। इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में एक विशेषज्ञों की समिति बनाने के संकेत भी दिए। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने एनएलयू एम्स सहित कुछ बड़े अस्पतालों से संबंधित आंकड़े उपलब्ध कराने के लिए भी कहा है। इस संबंध में केंद्र सरकार की और से पेश अटॉर्नी जनरल वेंकटरमनी ने कहा कि अगर कोई समिति बनती है, तो सरकार को आपत्ति नहीं होगी। लेकिन इस संबंध में उन्हें सरकार से निर्देश लेने होंगे।

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यह याचिका एक अभिभाषक ऋषि मल्होत्रा ने प्रस्तुत की है। उन्होंने कहा कि गरिमापूर्ण तरीके से मृत्यु व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। जब किसी व्यक्ति को फांसी दी जाती है, तो उस मौत में गरिमा जरूरी है। एक दोषी, जिसका जीवन समाप्त होना है, उसे फांसी का दर्द नहीं सहना चाहिए। दूसरे देशों में भी फांसी धीरे-धीरे खत्म की जा रही है। अमेरिका के 36 राज्यों ने फांसी की सजा को खत्म कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि फांसी में शरीर को 30 मिनट तक लटकाए रखा जाता है। इसके बाद डॉक्टर जांच करते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु हुई है या नहीं। इसलिए फांसी अमानवीय है। याचिका में फांसी को मौत का सबसे बर्बर तरीका बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि मौत की सजा के लिए फांसी के अलावा अन्य प्रणाली अपनाई जानी चाहिए। मौत की सजा ऐसी हो जिसमें दर्द एवं यातना कम हो। साथ ही मौत का डर भी न सताए। मौत से ज्यादा मौत का खौफ दुखदायी होता है। याचिका में यह तर्क भी दिया गया है कि फांसी की सजा में लगभग 40 मिनट लगते हैं, जबकि इंजेक्शन, गोली मारने और बिजली के झटके से मारने में महज कुछ मिनिट। ऐसे में मौत की सजा में ऐसे ही किसी तरीके को अपनाया जाना चाहिए।

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने यह जानकारी चाही कि फांसी देने से कितना दर्द होता है! फांसी लगने के बाद मौत होने में कितना समय लगता है। फांसी के लिए किस तरह के संसाधनों की जरूरत होती है। क्या देश या विदेश में मौत की सजा के विकल्प के कोई आंकड़े उपलब्ध है। कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि क्या ये अभी भी यह सबसे अच्छा तरीका है? साइंस और टेक्नोलॉजी के आधार पर और क्या बेहतर मानवीय विकल्प हो सकते हैं। मुख्य न्यायाधिपति ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि क्या यह तरीका बेहतर विकल्प है। यदि अन्य कोई और तरीका है, जिसे अपनाया जा सकता है तो क्या फांसी से मौत को असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 415 किसी मृत्यु दंडादेश को स्थगित किए जाने की प्रक्रिया का भी उल्लेख करती है। जब उच्च न्यायालय द्वारा किसी अपील या पुनरीक्षण की कार्यवाही में किसी दोषसिद्ध अपराधी को मृत्यु दंडादेश दिया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 134(1) क या ख अथवा अनुच्छेद 134(2) अथवा अनुच्छेद 134, 132 के अधीन उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है। जब सुप्रीम कोर्ट में किसी मृत्यु दंडादेश के विरूद्ध अपील की जाती है तो ऐसी परिस्थिति में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 415 के अंतर्गत दंड देने वाला उच्च न्यायालय उस समय तक दंड के निष्पादन को स्थगित कर देगा जिस समय तक अपील का निपटारा नहीं कर दिया जाता या फिर अपील की समयावधि नहीं बीत जाती। साथ ही जब किसी ऐसी स्त्री को मृत्यु दंडादेश दिया गया है जो गर्भवती है तो ऐसी स्थिति में दिए गए मृत्यु दंडादेश को स्थगित कर दिया जाता है। सीआरपीसी 1973 की धारा 1973 की धारा 416 के अंतर्गत यह प्रावधान है।
समय-समय पर मृत्युदंड को हटाने की मांग होती रहती है। विश्व में फांसी, मृत्युदंड का सबसे आम तरीका है। ईरान में सन् 2013 में 369 लोगों को मौत की सजा दी गई थी। ईरान फांसी के मामले में दुनिया में सबसे आगे है। फांसी देने वाले अन्य देशों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, बोत्सवाना, भारत, इराक, जापान, कुवैत, मलेशिया, नाइजीरिया, गाजा, दक्षिण सूडान और सूडान में फिलिस्तीनी प्राधिकरण शामिल हैं। इंडोनेशिया में बंदूक से मारना प्रचलन में है। वहां बारह हथियारबंद जल्लादों का एक दल है। उनके द्वारा कैदी के सीने में गोली मार दी जाती है। यदि कैदी तब भी ना मरें तो कमांडर उसके सिर पर एक अंतिम गोली मारता है। पिछले साल मार्च में इंडोनेशिया में फायरिंग स्क्वाड द्वारा एक नाइजीरियाई नागरिक को मृत्युदंड दिया गया था। उसे ड्रग्स बेचने का दोषी पाया गया था। एक अत्यधिक प्रचलित मामले में, जनवरी 2013 में इंडोनेशिया ने 56 वर्षीय ब्रिटिश महिला लिंडसे सैंडीफोर्ड को बाली के नगुराह राय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में कोकीन की तस्करी के आरोप में फायरिंग दस्ते द्वारा मौत की सजा सुनाई।
सन् 2013 में फायरिंग स्क्वॉड द्वारा मृत्युदंड देने वाले अन्य देशों में चीन, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, सोमलिया, ताइवान और यमन शामिल हैं। यह संयुक्त अरब अमीरात द्वारा भी उपयोगी तरीका है। आखिरी बार संयुक्त राज्य अमेरिका ने 18 जून 2010 को दोषी ठहराए गए हत्यारे रोनी ली गार्डनर पर फायरिंग दस्ते द्वारा सजा का निष्पादन किया गया था। सऊदी अरब दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां मौत की सजा के लिए सिर कलम करने को एक तरीके के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पिछले साल मई में, सऊदी अरब ने पांच यमनी पुरुषों और एक सऊदी का सिर कलम करने की सजा दी थी। यमनी पुरुषों को एक सशस्त्र गिरोह बनाने, सशस्त्र डकैती और हत्या का दोषी ठहराया गया था। एक सऊदी को भी हत्या का दोषी ठहराया गया था। वहां तलवार से सिर कलम करने का कार्य सार्वजनिक रूप से किया जाता है। हालांकि मृत्युदंड के सभी तरीकों में मृत्यु का अंतिम परिणाम समान है, लेकिन घातक इंजेक्शन को अक्सर सबसे कम क्रूर के रूप में देखा जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में मौत की सजा पाने वाले कैदियों को घातक खुराक का इंजेक्शन देना, मृत्युदंड के निष्पादन का प्राथमिक तरीका बन गया है। हालांकि, घातक दवाओं की आपूर्ति करने वाले राज्यों से जुड़े विवाद के परिणामस्वरूप, दवा कंपनियों ने घातक उपयोग के लिए अपनी दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस कमी को भरने के लिए कई राज्यों ने मिश्रित दवाओं का इस्तेमाल करने के लिए कंपाउंडिंग फार्मेसियों पर भरोसा किया है। लेकिन यह हाल ही में हुई मौतों में अविश्वसनीय साबित हुआ। ओक्लाहोमा के एक कैदी को इन मिश्रित दवाओं ने गलत परिणाम दिया। इससे उसके दांत कुड़कुड़ाने, मरोड़ने और दांत भींचने लगे, जिससे जेल अधिकारियों को मौत से पहले कार्यवाही रोकनी पड़ी।
सन् 2013 में चीन और वियतनाम में भी घातक इंजेक्षन का इस्तेमाल किया गया था। गौरतलब है कि ना केवल घातक इंजेक्शन सबसे क्रूर तरीका है पर सरकार को सबसे ज्यादा महंगा पड़ने वाला तरीका भी है। आंकड़ों की माने तो केवल एक अमेरिकी प्रदेश एरिजोना को एक मृत्युदंड करीब 13 हजार अमेरिकी डाॅलर के खर्च पर करना पड़ रहा है। अमेरिका एकमात्र देश है जिसने 2013 में इलेक्ट्रोक्यूशन का उपयोग करके मृत्युदंड प्रदत्त किया गया था। अलग-अलग मौकों पर दो व्यक्तियों की हत्या के दोषी, 42 वर्षीय राॅबर्ट ग्लीसन जूनियर को 16 जनवरी, 2013 को वर्जीनिया में बिजली की कुर्सी का इस्तेमाल कर मृत्युदंड किया गया था। इससे पहले इलेक्ट्रिक चेयर के दंड से काफी आक्रोश फैल गया था। सन् 1997 में, दोषी हत्यारे, पेड्रो मदीना को फ्लोरिडा में बिजली की कुर्सी से मृत्युदंड दिया गया था। कार्रवाई के दौरान उसका सर आगे से फट गया था। इसके अलावा फ्लोरिडा में, 1999 में, सजायाफ्ता हत्यारे एलन ली डेविस को एक इलेक्ट्रिक चेयर में मृत्युदंड दिया गया था। जिसकी खून से लथपथ चेहरे की तस्वीरें ऑनलाईन देखी गई थी।
सन् 2008 में नेब्रास्का सर्वोच्च न्यायालय ने क्रूर और असामान्य सजा होने के बिजली के झटके से मृत्युदंड के निष्पादन को अवैध घोषित किया। इससे स्पष्ट है कि फांसी को जितना भारत में क्रूर समझा जा रहा है उससे कई ज्यादा क्रूर पद्धतियां दुनिया में ना केवल इस्तेमाल होती है बल्कि उनसे होने वाले कष्टों को पूरी दुनिया में देखा जा रहा है। इसीलिए फांसी की सजा पर विचार मंथन तथा फांसी के समय होने वाली वेदना पर वैज्ञानिक शोध आवश्यक है, ताकि फांसी की सजा पाने वाले बंदी को मृत्यु के समय कम वेदना हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन याचिका के मंथन (निराकरण) से ऐसा कोई अमृत (रास्ता) निकल कर सामने आएगा जिसमें मृत्यु की सजा प्राप्त बंदी को मृत्यु के समय कम से कम वेदना सहन करना पड़े।