कानून और न्याय: अब शुरू होगा चुनाव याचिकाओं का दौर
पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता विनय झैलावत का कॉलम
चुनाव याचिका उस मतदाता या उम्मीदवार के लिए एक सुलभ कानूनी उपाय है जो महसूस करता है कि चुनावी कदाचार हुआ है। एक चुनाव याचिका को एक सामान्य प्रकरण के रूप में नहीं माना जाता है। इसे एक लड़ाई के रूप में माना जा सकता है, जिसमें मानो पूरा निर्वाचन क्षेत्र भाग ले रहा हो। चुनाव याचिकाओं की सुनवाई राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। इस प्रकृति की याचिका चुनाव परिणामों की तारीख के पैतालीस दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए। यद्यपि 1951 के लोक प्रतिनिधि अधिनियम में उच्च न्यायालय को छह महीने के भीतर मुकदमे को पूरा करने का प्रयास करने चाहिये। लेकिन इसमें आम तौर पर काफी अधिक समय लगता है। कई बार तो अगले चुनाव भी आ सकते हैं।
उच्च न्यायालय को भारत के चुनाव आयोग और सदन के अध्यक्ष या राज्य विधानमंडल के अध्यक्ष को चुनाव याचिका की सुनवाई समाप्त होने के बाद अपने फैसले से जल्द से जल्द सूचित करना चाहिए। उच्च न्यायालय को निर्वाचन आयोग को फैसले की एक अधिकृत प्रति भी प्रदान करनी चाहिए। यदि चुनाव याचिका पर फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में है, तो अदालत नए चुनाव का आदेश दे सकती है या किसी पराजित उम्मीदवार को विजेता घोषित कर सकती है। उच्च न्यायालय द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय किसी भी मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील के अधीन है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 100 किसी निश्चित उम्मीदवार के चुनाव को अमान्य घोषित करने की अनुमति देती है। एक चुनाव याचिका एक या अधिक आधारों पर दायर की जा सकती है। पूर्व में चुनाव लड़ने वाला चुनाव के दिन अथवा उम्मीदवारी के लिए अयोग्य अथवा ऐसे उम्मीदवार या उनके चुनाव एजेंट, उनके चुनाव एजेंट की मंजूरी से कोई अन्य व्यक्ति, किसी भी भ्रष्ट गतिविधि में लिप्त है तो चुनाव याचिका प्रस्तुत की जा सकती है। इसके अलावा किसी भी नामांकन की अनुचित स्वीकृति भी एक आधार हो सकता है। साथ ही किसी भी वोट को अनुचित रूप से प्राप्त करने, अस्वीकार करने या अमान्य वोट प्राप्त करना तथा संविधान या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों, या इस अधिनियम के तहत जारी किसी भी नियम या निर्देषों का कोई उल्लंघन भी इसके आधार हो सकते हैं।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के तहत भ्रष्ट कार्यों में रिश्वत (उम्मीदवार या उसके एजेंट द्वारा मतदाता या पद के लिए चुनाव लड़ने वाले किसी अन्य उम्मीदवार को दिया गया कोई भी उपहार, प्रस्ताव, वादा या किसी भी प्रकार का आनंद) अनुचित प्रभाव, उम्मीदवार या उसके एजेंट द्वारा प्रयोग किया गया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव इसमें सम्मिलित है। इसमें अन्य बातों के अलावा धमकियां, मतदाताओं या अन्य उम्मीदवारों को समझाने के प्रयास, सार्वजनिक नीति या कार्रवाई का बयान, या कानूनी अधिकार का सरल प्रयोग भी शामिल है। इसके अलावा एक उम्मीदवार या उसके चुनाव एजेंट द्वारा यह अनुरोध करना कि मतदाता धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर मतदान करने से बचना, भी आधार हो सकता है। उम्मीदवार की चुनाव संभावनाओं को आगे बढ़ाने या किसी अन्य उम्मीदवार के चुनाव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए राष्ट्रीय प्रतीकों, राष्ट्रीय झंडों का उपयोग तथा उम्मीदवार या उसके चुनाव एजेंट द्वारा दिए गए झूठे बयान भी आधार हो सकते हैं। ऐसी टिप्पणी भी शामिल हो सकती है जो उस उम्मीदवार के चुनाव की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए की गई हो।
चुनावी संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं प्राप्त करने का प्रयास भी इसमें सम्मिलित है। इन सरकारी कर्मचारियों में राजपत्रित अधिकारी, मजिस्ट्रेट, सशस्त्र बलों के सदस्य, पुलिस अधिकारी, आबकारी अधिकारी, राजस्व अधिकारी और अन्य शामिल हो सकते हैं। चुनाव अभिकर्ता के उम्मीदवार द्वारा बूथ कैप्चरिंग भी एक आधार है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम में विधानसभा चुनाव के परिणामों पर विवाद करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक चुनाव मुकदमा दायर किया है, जहां उन्होंने चुनाव लड़ा और हार गई। सबसे प्रसिद्ध 1975 का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला है, जिसने कथित भ्रष्टाचार के कारण रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से इंदिरा गांधी के चार साल पुराने चुनाव को पलट दिया था। एक अन्य हाई-प्रोफाइल मामला 2008 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता सीपी जोशी की एक वोट से हार थी। ऐसा ही एक मामला 2008 के विधानसभा चुनाव का धार विधानसभा चुनाव का भी है जहां बालमुकुंद गौतम ने अपनी एक वोट से हार को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी और अदालत ने उन्हें एक वोट से विजयी घोषित किया था। इससे पहले विजयी उम्मीदवार का चुनाव शून्य घोषित किया गया था।
चुनाव आयोग की जिम्मेदारी परिणामों की घोषणा के साथ समाप्त होती है। इसके बाद एक मतदाता या उम्मीदवार के लिए एकमात्र कानूनी उपाय चुनाव याचिकाएं हैं। चुनाव याचिका संसदीय या स्थानीय सरकार के चुनावों में चुनाव परिणामों की वैधता को चुनौती देने का एक विधिक रास्ता है। उच्च न्यायालय ऐसी किसी भी निर्वाचन याचिका को खारिज कर देगा जो धारा 81 या 82 या धारा 117 के उपबंधों का अनुपालन नहीं करती है। इस उपधारा के अधीन निर्वाचन अर्जी को खारिज करने वाला उच्च न्यायालय का आदेश धारा 98 के खंड (क) के अधीन किया गया आदेश समझा जाएगा। उच्च न्यायालय को निर्वाचन अर्जी प्रस्तुत किए जाने के पश्चात न्यायाधीशों में किसी एक को निर्दिष्ट किया जाएगा जो निर्वाचन अर्जियों के विचार के लिए मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा धारा 80 क की उपधारा (2) के अधीन रोस्टर में निर्धारित किया गया हो। जहां कि उसी निर्वाचन की बाबत एक से अधिक निर्वाचन अर्जियां उच्च न्यायालय को स्थापित की जाती हैं, वहां उनमें से सब उसी न्यायाधीश को विचार के लिए निर्दिष्ट की जाएगी जो अपने विवेकानुसार उनको अलग-अलग अथवा एक या अधिक समूहों में विचार कर सकेगा।
कोई अभ्यर्थी जो पहले से ही प्रत्यर्थी न हों, विचारण के प्रारम्भ की तारीख से चैदह दिन के भीतर उच्च न्यायालय से उसके द्वारा आवेदन किए जाने पर और खर्चों के लिए प्रतिभूति के बारे में किसी ऐसे आदेश के अधीन, जो उच्च न्यायालय द्वारा किया जाए, प्रत्यर्थी के रूप में संयोजित किए जाने का हकदार होगा। इस उपधारा और धारा 97 के प्रयोजनों के लिए किसी अर्जी का विचार उस तारीख को प्रारम्भ हुआ समझा जाएगा जो प्रत्यर्थियों के उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होने और अर्जी में किए गए दावे या दावों का उत्तर देने के लिए नियत की गई है। उच्च न्यायालय खर्चों के बारे में और अन्यथा ऐसे निबंधनों पर, जिन्हें वह ठीक समझे, अर्जी में अभिकथित किसी भ्रष्ट आचरण की विशिष्टियों के ऐसी रीति में संशोधन किए जाने या परिवर्तित किए जाने की अनुमति दे सकेगा। हर निर्वाचन अर्जी यथासंभव शीघ्रता से विचारित की जाएगी और उस तारीख से, जिसको निर्वाचन अर्जी उच्च न्यायालय को विचार के लिए स्थापित की गई है, छह मास के भीतर विचारों को समाप्त करने का प्रयास किया जाएगा।
यदि उच्च न्यायालय यह पाता है कि निर्वाचित उम्मीदवार अपने निर्वाचन के लिए चुने जाने के लिए संविधान या इस अधिनियम के ø(या संघ राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1963 (1963 का 20) के अधीन पात्र नहीं था या उसके अपात्र घोषित कर दिया गया हो, तो अपात्र घोषित किया जा सकता है। निर्वाचित व्यक्ति या उसके निर्वाचन एजेंट द्वारा या निर्वाचित व्यक्ति या उसके निर्वाचन की सम्मति से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई भ्रष्ट आचरण किया गया हो तो भी निर्वाचन निरस्त किया जा सकता है। साथ ही कोई नाम निर्देशन अनुचित रूप से प्रस्तुत किया गया हो अथवा निर्वाचन परिणाम किसी नाम-निर्देशन के अनुचित प्रतिग्रहण, किसी भ्रष्ट आचरण से, जो निर्वाचित अभ्यर्थी के हित में उसके एजेंट भिन्न एजेंट द्वारा किया गया हो अथवा किसी मत के अनुचित तौर पर लिए जाने के इंकार करने जैसे कुछ अन्य आधारों पर चुनाव निरस्त अथवा शून्य घोषित किया जा सकता है। हमें यह याद रखना होगा कि चुनाव याचिका एक महत्वपूर्ण अधिकार है। इसके लिए साक्ष्य का होना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही बेहद तकनीकी उपाय है, जिसका उपयोग सोच समझकर किया जाना चाहिए।
विनय झैलावत
लेखक : पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं इंदौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं